आपमें से कितने लोग ऐसे हैं जो कि स्वास्थ्य के लिये शुल्क सोच समझकर देते हैं, अगर शुल्क ज्यादा होता है तो तकाजा करते हैं या डॉक्टर को बिना दिखाये वापिस आ जाते हैं, एक भी नहीं ? आश्चर्य हुआ !!! आखिर आप अपने स्वास्थ्य के लिये कोई जोखिम नहीं लेना चाहते हैं, आप हमेशा अच्छे डॉक्टर को ही चुनेंगे, भले ही उनके यहाँ कितनी भी भीड हो, नहीं, पर क्यों ??
जब स्वास्थ्य प्रबंधन के लिये आप इतना खर्च कर सकते हैं तो अपने वित्तीय प्रबंधन के लिये क्यों नहीं ?? ओह मुझे लगता है कि यहाँ आपको लगता है कि आप बहुत ही विद्वान हैं और अपने धन को बहुत अच्छे से प्रबंधन कर रहे हैं, आपसे अच्छा प्रबंधन कोई कर ही नहीं सकता है, ये वित्तीय प्रबंधन करने वाले लोग तो फ़ालतू का शुल्क ले लेते हैं, या फ़िर अगर कोई वित्तीय प्रबंधक ज्यादा शुल्क लेता है तो कम शुल्क वाले वित्तीय प्रबंधक को ढूँढ़ते हैं। नहीं ??
जैसे स्वास्थ्य के लिये कोई समझौता नहीं करते हैं फ़िर वित्तीय प्रबंधन के लिये कैसे करते हैं ?
जैसे स्वास्थ्य के लिये कोई तकनीकी ज्ञान आपके पास नहीं है, वैसे ही वित्तीय प्रबंधन के लिये है ?
जैसे स्वास्थ्य के लिये आप अपने चिकित्सक को सभी परेशानियाँ बता देते हैं, क्या वैसे ही वित्तीय प्रबंधक को अपनी सारी आय, खर्च, जमा और ऋण बताते हैं ?
क्या आपने कभी सोचा है कि कम शुल्क देकर आप अपने पैर पर ही कुल्हाड़ी मार रहे हैं, जी हाँ, क्यों ?
अगर वित्तीय प्रबंधक ने गलत सलाह दे दी तो ? आपके वित्त की ऐसी तैसी हो जायेगी ।
और अगर ज्यादा शुल्क वाला अच्छा वित्तीय प्रबंधन करता है तो शुल्क थोड़ा ज्यादा लेगा परंतु आपको वित्तीय रुप से सुरक्षित कर देगा, और यकीन मानिये कि आप सोच भी नहीं सकते आपके वित का इतनी अच्छी तरह से प्रबंधन कर देगा। क्योंकि आपको आज के बाजार के बहुत सारे उत्पाद पता ही नहीं होंगे और होंगे भी तो कैसे कार्य करते हैं, उसका पता नहीं होगा।
एक छोटी सी बात –
अगर आपके शहर में ४ चिकित्सक हैं, और आपके घर में कोई बीमार पड़ गया, तो आप किस चिकित्सक को दिखायेंगे, आप शहर में नये हैं, तो दवाई की दुकान पर पूछेंगे या फ़िर अपने आस पड़ौस में पूछताछ करेंगे। आपको पता चलेगा कि ३ चिकित्सक तो ऐसे ही हैं पर जो चौथा चिकित्सक है, उसके हाथ में जादू है, उसकी फ़ीस भले ही ज्यादा है परंतु उसका ईलाज बहुत अच्छा है। तो आप उस ज्यादा फ़ीस वाले चिकित्सक के पास जाना पसंद करेंगे।
परंतु वित्तीय प्रबंधक चुनते समय ऐसा बिल्कुल नहीं है, क्योंकि सब कहीं न कहीं पढ़ लिखकर अपने आप को ज्ञानी समझने लगते हैं, कि हमें वित्तीय प्रबंधक की कोई जरुरत ही नहीं है, और खुद ही प्रबंधन करके अपने वित्त को बढ़ने में बाधा बन जाते हैं। पहले पता कीजिये कि कौन अच्छा प्रबंधन करता है, शुल्क कितना है ये आप मत सोचिये क्योंकि अगर वित्तीय प्रबंधन अच्छे से हो गया तो शुल्क बहुत भारी नहीं होता है।
वित्तीय प्रबंधन के लिये सर्टिफ़ाईड फ़ाईनेंशियल प्लॉनर को बुलायें, जैसे हमारे देश में सी.ए., सी.एस. होते हैं वैसे ही सी.एफ़.पी. होते हैं, जो कि भारत सरकार द्वारा अंतर्राष्ट्रीय मापद्ण्डों पर दिया जाने वाला सर्टिफ़िकेट है। ये लोग वित्तीय प्रबंधन में विशेषज्ञ होते हैं, और भारत में यह तीन वर्ष पहले ही शुरु हुआ है। इसमें भविष्य बहुत ही अच्छा है इसके बारे में तो बहुत से लोगों को पता ही नहीं है, और तीन वर्ष में केवल १००४ सी.एफ़.पी. (CFP) ही बाजार में आ पाये हैं।
सी.एफ़.पी. (CFP) के अंतर्जाल के लिये यहाँ चटका लगाईये।
तो अब आपको फ़ैसला करना है कि आपको अपने वित्त का प्रबंधन वित्तीय चिकित्सक से करवाना है या फ़िर जैसा अभी तक चल रह है वैसे ही करना है। अपनी सोच बदलिये और जमाने के साथ नये उत्पादों में निवेश कर अपने वित्त को नई उँचाईयों पर पहुँचाइये।
उम्दा आलेख!
बढ़िया जानकारी ….यही होता है कि हम जिंदगी के अन्य पहलुओं पर ध्यान नहीं देते 🙂
वित्तीय अनुशाशन जरूरी है …
बढ़िया जानकारी 🙂
विवेक जी, आपने इस पोस्ट का बुलावा दिया, धन्यवाद ।
स्पष्टतः यह पोस्ट मेरे लिये तो नहीं ही है, क्योंकि एक सीमा के बाद मैं ठहर गया हूँ, अपनी ज़रूरतों के मुताबिक धनार्जन ही पर्याप्त है ।
जी हाँ, मैं धन सँचय में विश्वास नहीं रखता.. क्योंकि उसे समेटने सहेजने और निवेश की जटिलतायें मुझे अपने वास्तविक जीवन से दूर कर देती हैं… और यह सत्य है, कुश, डा. अनुराग, समीर भाई और सँभवतः अनूप शुक्ल यह जानते हैं कि 31 वर्ष से चल रही सफल और सम्मानपूर्ण प्रैक्टिस के बावज़ूद मेरा अपना कोई मकान नहीं है । जो था वह भी इसी वर्ष फरवरी में बेच दिया । मुझे तरस आता है उन पर, जो अपनी पासबुकें दबाये हुये बैंकों में बदहवास चक्कर लगाया करते हैं ।
साथ ही यह भी सत्य है कि मैंनें अपने माता-पिता, पत्नी, बच्चों को कभी मन मारने का अवसर नहीं दिया । मेरे कर्मचारी दत्तक सँता्नों के समान सभी सुविधायें और वेतन पाते हैं, और ज़रूरत भर का टैक्स मैं भर भी देता हूँ.. इसी बहती गँगा में फुटकर सामाजिक कार्य भी कर लेता हूँ , और क्या चाहिये ? इसमें निवेश के लिये स्थान ( Slot ) कहाँ है, और एक व्यक्ति के रूप में हम सँस्थागत निवेश की दौड़ में क्यों शामिल हों ? जबकि मेरा कोई व्यसन शेष नहीं रह गया और मुझे अपने ख़र्चों के लिये और अपने अस्तित्व को बनाये रखने हेतु जीवनपर्यन्त कार्यरत रहना ही है ।
निश्चय ही यह पोस्ट मेरे लिये नहीं है, शारीरिक और वित्तीय रूप से अपने को इतना अस्वस्थ ही क्यों होने दो, कि डॉक्टर की फीस की चिन्ता करनी पड़े ?
मोटापा और ( शरीर या धन की ) चर्बी ही दस रोगों की जड़ है !
सँदर्भ : वित्तीय प्रबंधक चुनते समय ऐसा बिल्कुल नहीं है, क्योंकि सब कहीं न कहीं पढ़ लिखकर अपने आप को ज्ञानी समझने लगते हैं, कि हमें वित्तीय प्रबंधक की कोई जरुरत ही नहीं है, और खुद ही प्रबंधन ….
उत्तर : एक स्माईली सहित मैं निवेदन करना चाहूँगा कि ऎसे में वित्तीय प्रबंधक चुनते समय, मैं यह ध्यान रखूँगा कि अन्य विभागों सहित टैक्स-विभाग में उसकी पैठ कितनी है ? क्योंकि आज के भारत में यही एक सर्वोपरि सँजीवनी योग्यता है !
विवेक जी.. ये दो अलग बातें है.. या कहें तो ये दो अगल अवस्थाएं है.. पहली बाद हम स्वास्थ्य प्रबंधन नही करते… क्यों हमारी अप्रोच प्रिवेंटिव नहीं है… हम स्वास्थ्य के लिए जो करते है तो क्यूरेटिव है.. बीमार है तो खुद से गोली खा ली.. एक दो दिन अपना ज्ञान आजमा लिया फिर कुछ नहीं हुआ तो डाक्टर के पास… हम कितनी बार खुद से जांच करवाने जाते है.. कभी नहीं… वैसे ही हम वित्तीय प्रबंधन नहीं करते.. हां अगर फँस गए तो जरुर कहीं सलाह लेते है…
मेरे अनुसार हम दोनों में एक जैसे व्यवहार करते है…
बहुत सुंदर जानकारी के लिये आप का धन्यवाद
@ डा. अमर कुमार जी – आपने बिल्कुल सही कहा यह पोस्ट आपके लिये नहीं है, यह तो आम जनता में वित्तीय जागरुकता फ़ैलाने के लिये लेखन है।
आपके बारे में मैं नहीं जानता था पर अब तो ऐसा लगता है कि जो मेरे विचार हैं आगे जीवन जीने के, वैसा जीवन तो आप अभी जी रहे हैं। आप तो बिल्कुल आदर्श हैं हमारे लिये। नमन है आपको ।
वित्तीय स्वतंत्र होने के लिये मेरा एक और आलेख जरुर देखियेगा।
वित्तीय स्वतंत्रता पाने के लिये ७ महत्वपूर्ण विशेष बातें [Important things to get financial freedom…]
टीप – वित्तीय प्रबंधक ने अगर सही तरीके से वित्तीय प्रबंधन किया तो फ़िर कभी भी टैक्स विभाग वालों को सैटिंग करने की जरुरत ही नहीं होती, क्योंकि वह उनकी प्लानिंग भी साथ ही करता है।
@ रंजन जी – आप ऐसा भी कह सकते हैं, परंतु वित्तीय मामलों में कितने लोग ऐसा करते हैं, नहीं करते हैं बहुत कम लोग हैं ऐसे।
अगर शेयर बाजार से नुकसान लग गया तो बंद करके बैठ जाते हैं, न कि किसी विशेषज्ञ से राय लेते हैं।
स्वास्थ्य के मामले में वित्त को अहमियत नहीं दी जाती इस समाज में ।