सीन १ – ऑफ़िस से निकलते हुए
ऑफ़िस से निकले, गलियारे से होते हुए पैसेज में आये, वहाँ चार लिफ़्ट हैं बड़ी बड़ी, २५ लोग तो आराम से आ जायें इतनी बड़ी, पर हम साधारणतया: आते जाते समय सीढ़ियों का ही इस्तेमाल करते हैं, जिससे मन को शांति रहती है कि चलो कुछ तो व्यायाम हो गया। जैसे ही पैसेज में पहुँचे तो एक लिफ़्ट का इंडिकेटर नीचे जाने का इशारा कर रहा था, और हम लिफ़्ट के लोभ में उसमें सवार हो लिये।
लिफ़्ट से नीचे जाते समय एक सुविधा होती है कि कोई न कोई पहले से रहता है तो ग्राऊँड फ़्लोर का बटन नहीं दबाना पड़ता है, जबकि इसके उलट ऊपर जाना हो तो बटन दबा है या नहीं अपने फ़्लोर का ध्यान रखना पड़ता है।
जैसे ही लिफ़्ट में पहुँचे तो देखा कि एक लड़की पहले से थी, मोबाईल हाथ में और मोबाईल का हेंड्स फ़्री कान में लगा हुआ, किसी गाने का आनंद उठा रही थी, हमने एक नजर देखा और लिफ़्ट के कांच में अपने को निहारने लगे कि कितने मोटे हो गये हैं, बाल बराबर हैं या नहीं, तो ध्यान दिया कि वो लड़की टकाटक हमारी ओर देखे जा रही थी, बस हमें शरम आ गई, वैसे ये कोई विशेष बात नहीं है, विपरीत लिंगी आकर्षण में सब देखते हैं।
पर मुंबई में लोगों की नजरें बहुत खराब होती हैं, आप नजर से पहचान सकते हैं कि साधारण तरीके से देख रहा है या हवस की नजर से, कोई भी कैसा भी हो बस हवस का शिकार होता है, फ़िर भले ही वो नजर की हवस हो या मन को तृप्त करने की।
सीन २ – बस को पकड़ने की जद्दोजहद
हम सबकुछ भूलकर ऑटो लेने निकल पड़े, तो बस स्टॉप से होकर गुजरे थोड़ा आगे सिग्नल है लिंक रोड का, जिस पर शाम के समय लम्बा ट्राफ़िक रहता है, बसें एक के पीछे एक लगी रहती हैं, एक बस स्टॉप पर नहीं रुकी और एक लड़का और एक लड़की उस बस के पीछे दौड़ने लगे, क्योंकि आगे सिग्नल था और बस की गति कम थी और जैसे तैसे बस में सवार हो लिये, लड़के और लड़की ने जमकर सुनाई कंडक्टर को, इतने मॆं उसके पीछे वाली बस से एक लड़की उतरी और आगे वाली बस में चढ़ने की कोशिश में दौड़ने लगी, परंतु जब तक चढ़ पाती सिग्नल हरा हो गया और बस की गति तेज हो गई और इस चक्कर में वह चढ़ नहीं पाई।
उसके बाद उसने बस न पकड़ पाने और अपनी नादानी में पहले तो अपना पैर पटका और फ़िर एक हाथ की हथेली पर दूसरे हाथ से मुक्का बनाकर बस न पकड़ पाने की असफ़लता प्रदर्शित की, जब उसे ध्यान आया कि वह सड़क पर यह कर रही है तो सकपकाकर आसपास देखा तो पाया कि हम उसकी गतिविधियों को देख रहे हैं, तो मुस्करा उठी और हम भी।
सीन ३ – हो सकता है कि गलती लड़्की की ही हो।
ऑटो में घर जा रहे थे कि एस.वी.रोड मलाड पर एक नजारा देखा, मोटर साइकिल पर एक लड़का बैठा था और एक लड़की उसके पास में खड़ी थी, लड़के ने लड़की की सूट की कॉलर पकड़ रखी थी और दूसरे हाथ से घूँसा दिखा रखा था।
तो ऑटो वाला बोला कि इस लड़के को लोग अभी जम कर पिटेंगे तभी इसको समझ में आयेगा। तो मैं बोला कि तुम ये क्यों सोचते हो कि लड़के की गलती होगी हो सकता है कि लड़की सड़क पर बीच में चल रही होगी और लड़का बाईक से गिरते हुए या उसकी दुर्घटना होने से बच गया होगा, इसलिये गुस्सा हो रहा होगा। ऑटो वाला बोला परंतु ऐसा थोड़े ही होता है।
मैंने उसको बोला कि स्कूटर और ट्रक की टक्कर में लोग बेचारे ट्रक वाले को ही मारते हैं, क्यों क्योंकि स्कूटर छोटी गाड़ी है, पर गलती तो स्कूटर की भी हो सकती है ना !! तो बोलता है कि हाँ साहब बराबर बोलते हैं। हो सकता है कि गलती लड़्की की ही हो।
आजकल कोई किसी से कम नहीं हैं !!
zamana badal gaya hai…….
अब आप थ्रिलर राईटिंग में भी हाथ आजमाईये विवेक जी -सांस थामे पढ़ गया मैं यह ….अब इसी में एक फंतासी जोड़ दीजिये बस ….लिफ्ट वाली लडकी बस में फिर मिल जाय बगल वाली सीट पर …और फिर हो शुरू एक नयी कहानी …
बहुत सुंदर जी लेकिन आप तो टकले हो गये थे, फ़िर यह बाल किस के चुरा लिये??
सीन एक में समझ नहीं आया –कौन किसको कैसे देख रहा था ।
दूसरा सही लगा ।
तीसरा टेढ़ा मामला रहा ।
:)बिलकुल सत्य वचन्.
@ संगीता जी – बिल्कुल सही कहा, किसी को भी सही नहीं कहा जा सकता है।
@ रश्मि जी – जमाना बदल गया है और वर्जनाएँ टूट रही हैं, पर ये जाने क्यों हम लोगों को नहीं पच रही है।
@ अरविन्द जी – ऐसी ही राईटिंग जल्दी शुरु करेंगे, अभी तो लगता है कि वित्तीय मामले में लिखना रुचिकर होगा।
@ राज जी – हम तो टकले ही हैं, बाल मतलब सर पर छोटे छोटे बाल 🙂
अच्छी बुनावट है।
कई बार लड़कियाँ भी जिम्मेवार होती हैं | मैं उन कट्टरपंथियों की तरह नहीं बोलूँगा कि उनके कपड़े जिम्मेवार होते हैं, बल्कि बात यह है कि कई बार कई बातें जब बहुत आगे निकाल जाती है तो अपनी "इज्ज़त" के ये दूसरे पर सरासर इल्ज़ाम लगा देती हैं|
SACH KAHA HAI APNE, AKSAR LADKIYON KI HI GALTI HOTI HAI AUR PITTE BECHARE HAIN
If I go by what you have written then the biggest mistake is to be born as a female
why dont you start promoting female fetocide on your blog
@ रचना जी – पता नहीं आपने मेरी पोस्ट में क्या समझा और क्या आपको ऐसा लगा जो आप टीपना चाहती हैं, मैं समझ ही नहीं पाया, हतप्रभ हूँ ऐसी टिप्पणी देखकर !!!
सुन्दर लघु घटनायें, कुछ बताती, कुछ सिखाती ।
see the heading of the post
its means that woman "may " be responsible for the crime "lust"
in todays context this heading is totally wrong because in mumbai a serial killer is killing girls for lust
be a little more sensitive to woman oriented issues dont blame woman for crimes that are against them
@ रचना जी – बिल्कुल, women may be !!!
क्या आप कॉन्फ़ीडेन्स के साथ कह सकती हैं कि women may not !!!
और वैसे भी मैंने बात कुछ ओर की थी, आपने अपना दूसरा ही सुर छेड़ दिया, आप पता नहीं कौन सी दुनिया में जीती हैं, मुझे और मेरे ब्लॉग को पढ़ने वाले तो कम लोग हैं, जब अखबार लिखते हैं, न्यूज चैनल बोलते हैं उनके लिये क्यों नहीं कुछ करतीं आप,
उम्मीद है कि उनपर आप कोई कार्यवाही करेंगी, ये टीवी सीरियल्स जिन पर महिलाएँ षड़यंत्रों का तानाबाना बुनते हुए दिखाई देती हैं, उनके विरुद्ध कुछ करेंगी।
अब आगे से अगर आपकी कोई भी टिप्पणी आयेगी तो मैं उसका जबाब नहीं दे पाऊँगा, क्योंकि मैं आपकी मानसिकता से नहीं सोच सकता हूँ।
बहुत ही अच्छी प्रस्तुती लेकिन शीर्षक से मैं भी सहमत नहीं हूँ | विवेक जी ओरतों को आज हर जगह सिर्फ इस्तेमाल किया जाता है इसलिए उनको किसी भी प्रकार दोषी करार देना ठीक नहीं है | कुछ अपवाद को छोड़कर …..इस देश की व्यवस्था में बैठे हैवान लोग ओरतों की मजबूरी का हर वक्त सौदा करते हैं |
आनन्द ही आनन्द है ऐसे लघु अनुभव पढने में.
रोचक् एवं विचारोत्तेजक्.
मुझे स्नेह क्या मिल न सकेगा ?
स्तब्ध दग्ध मेरे मरु का तरु
क्या करुणाकर, खिल न सकेगा ?
जग दूषित बीज नष्ट कर,
पुलक-स्पन्द भर खिला स्पष्टतर,
कृपा समीरण बहने पर क्या,
कठिन हृदय यह हिल न सकेगा ?