कुछ है क्या मेरे लिये ?
या सब पहले ही खर्च हो चुका है
मेरे आने से पहले,
कुछ है क्या करने के लिये ?
या सब पहले ही हो चुका है
मेरे आने से पहले,
कुछ है क्या कहने के लिये ?
या सब पहले ही कह चुके हैं
मेरे आने से पहले,
कुछ है क्या सुनने के लिये ?
या सब पहले ही सुन चुके हैं
मेरे आने से से पहले,
हमेशा जिंदगी में सब कुछ,
मेरे आने से पहले ही क्यों हो जाता है,
और जो मैं करता हूँ, वह
बाद मैं सोचता हूँ क्या मैं इसे ऐसा कर सकता था ?
बस सोचता हूँ कि सब पहले ही क्यों हो चुका होता है
मेरे आने से पहले ?
दर्शनबोध समेटे कह दी गहरी बात।
मेरे दिन के पहले ही क्यों आती रात।
यही जीवन है…उस पार खड़े होकर देखोगे तो बाद में नजर आयेगा. 🙂
सुन्दर दर्शन!
जीवन की अनुभूति है ये तो ..
क्या बात है विवेक जी बड़े दार्शनिक मूड में हैं आप।
सुंदर प्रस्तुति
ख़ूबसूरत रचना। बहुत सारी बातें बाद में भी होगी वो सब आपका इंतज़ार कर रहीं हैं ।
प्रवीण जी जैसा ही कहूगा कुछ!!
मेरे साथ भी तो ऐसा होते ही रहा है…. 🙂