चांसलर सिगरेट लेकर टेकरी के पीछे छुपते हुए दोनों साईकिल से जाते थे…… किसी पहाड़ी में छिपकर रोज वो चांसलर सिगरेट जो गहरे चाकलेटी रंग की होती थी…थोड़ी मीठी सी लगती थी … पर दो-चार कश लेने के बाद फ़िर कड़वी लगने लगती थी… क्यों वो बाद में पता चला .. सिगरेट तो पीनी आती नहीं थी ….. पहले कश में ही सिगरेट का फ़िल्टर अपनी जीभ से गीला कर देते थे और फ़िर वो कसैलापन मुँह में चढ़ता ही जाता ।
सिगरेट के जलते हुए सिरे को देखते हुए उस सिगरेट को खत्म होते देखते थे… सिगरेट का धुआँ और उसकी तपन शुरु में असहनीय होती थी… बाद में पता चला कि जब सिगरेट जलती है और जो आग उस सिगरेट को ऐश में बदलती है उसका तापमान १०० डिग्री होता है… पहली बार हमारे भौतिकी विज्ञान के प्रोफ़ेसर ने बताया था कि इसे ऐश कहते हैं…
हम तब तक जिंदगी के मजे लेने को ही ऐश समझते थे, पर उस दिन हमें असलई ऐश समझ आई कि सिगरेट की राख जो कि जिंदगी को भी राख बना देती है, उसे ऐश कहते हैं… पता था कि ऐश करना अच्छी बात नहीं है… परंतु बहुत देर बाद समझ में आई ये बात…
एक मित्र था कालिया कहता था कि किसी भी नये शहर में जाओ तो सिगरेट और दारु से दांत काटे मित्र बड़ी ही आसानी से बन जाते हैं, किसी भी पान की गुमटी को अपना अडडा बना लो और फ़िर देखो …. जब शहर बदला तो यही फ़ार्मुला अपनाया और चांसलर छोड़ विल्स के साथ बहुत से दोस्त बनाये…
अब लगता है वो ऐश खत्म होने से अच्छी दोस्ती खत्म हो गई, लोग आपस में बात करने के लिये समय नहीं निकाल पाते… कम से कम ऐश करते समय आपस में पाँच मिनिट बतिया तो लेते हैं…
पर क्या करे हम ऐश करना छोड़ चुके हैं…. पर वो चांसलर का कसैलापन अभी भी याद है…
आप भी!!! मुझे पता नहीं था..
अरे!…मैं तो समझता था कि बचनवा की बहु का नाम ऐश है….
भैया हम चार दोस्त एक में निपटते थे फ़िर बिटको का काला मंजन करते थे गुड्डू ने तो पनामा की बास छिपाने के लिये कई बार कच्ची प्याज़ चबाई थी
हा हा ऐसी ऐश ? मैंने सोचा की ऐश्वर्या का कोई लफड़ा है क्या ? ऐश का हश्र सचमुच ऐसयिच ही होता है .
आगी पढ़कर तो ग़मगीन भी हो गए ..बहुत कुछ सोचने विचारने को कह जाती है यह पोस्ट …!
चलों देर आये दुरस्त आए।
किसी की आग को अपने दिल में ले जाने में यही हश्र होता है।
अच्छी पोस्ट
हम्म्म तो ये तरीक़ा भी है यारी गांठने का 🙂
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धन्यवाद!
हमारीवाणी टीम</
@ PD – 🙂 सबकी अपनी अपनी कहानियाँ होती हैं पर सिगरेट हमेशा कॉमन होती है 😀
@ राजीव जी – बचनवा की बहुरिया का नाम ऐश्वर्या है ऐ तो लोगहोन बिगाड़ दिये नाम 🙂
@गिरीश जी – ऐसे ही कितने उपाय हम और हमारे दोस्त भी कर चुके हैं।
@ अरविन्द जी – बात की गंभीरता को कोई समझता नहीं है, धन्यवाद ।
@ अजीत जी – बहुत मुश्किल से आये, पर आये भले ही देर से।
@ प्रवीण जी – आग तो आग होती है फ़िर कहीं भी लगी हो।
@एक विचार – धन्यवाद
@ काजल कुमारजी – सबसे सटीक तरीका है यारी गांठने का, बिल्कुल जाँचा परखा 🙂
सबको रिप्लाई किये.. मगर हमारीवाणी को कौन रिप्लाई करेगा? 🙂
मुझे लग रहा है सबने पीनी छोड़ दी है क्योंकि विवेक जाग गया है इसलिए सिगरेट की कंपनी बंद होने के कगार पर है। पर यह वो आग है जो बुझ नहीं सकती। आग लगाकर नफा कमाने का गर्मागर्म धंधा है। चांस तो हमने भी दिया है खूब। जब पीने में बुराई नहीं समझी तो मानने स्वीकारने में क्यों समझें ?
मुझे लग रहा है सबने पीनी छोड़ दी है क्योंकि विवेक जाग गया है इसलिए सिगरेट की कंपनी बंद होने के कगार पर है। पर यह वो आग है जो बुझ नहीं सकती। आग लगाकर नफा कमाने का गर्मागर्म धंधा है। चांस तो हमने भी दिया है खूब। जब पीने में बुराई नहीं समझी तो मानने स्वीकारने में क्यों समझें ?
@ अविनाश जी – एक टिप दूँ कि अगर आप को कोई शेयर खरीदना हो तो केवल सिगरेट कंपनी और दारु कंपनी का खरीदें जब मार्केट नीचे हो, इन दोनों क्षेत्रों की कंपनियाँ कभी डूब ही नहीं सकतीं और इनका रेवेन्यू कभी कम हो नहीं सकता । धंधा चोखा है, बोलो तो अपन भी एक सिगरेट कंपनी खोल लें दिन बीसगुनी और रात सौ गुना तरक्की करेंगे।
मैंने भी जब सिगरेट पी थी पहली बार … तो ऐसे ही पिया था…. पूरा मुँह कड़वा हो गया था….कसैलापन अभी भी याद है…….