पिछली पोस्ट पर “यादों के मौसम” का “तुझसे बिछुड़कर जिंदा है, जान बहुत शर्मिंदा है” , “जब हिज्र की शब पानी बरसे, जब आग का दरिया बहने लगे..” गीत सुनवाये थे आज सुनिये यह गाना –“चौदहवीं रात है, अब चाँद दिखा दे अपना, हम कई दिन से तेरी छत को तका करते हैं ..”
बहुत सुंदर गजल के लिये आप का धन्यवाद
वाह भाई मजा आ गया…बहुत बहुत धन्यवाद
एक बेहद उम्दा पोस्ट के लिए आपको बहुत बहुत बधाइयाँ और शुभकामनाएं !
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क्या कहने !
फ्लैट के ज़माने में छतें कहाँ से लायेंगे।