अनुग्रहित करो मुझे
पासंग में अपने लेकर,
अपने संभाषण में
सम्मिलित करो,
जीवन की धारा में
साथ साथ
ले चलो अनुषंगी बनाकर,
कट रहा है
इसे जीने दो
अपनी मौज में
अपने उच्छश्रंखल अवस्था में
रंगीन रंग में
करतल ध्वनि में
जीवन की ताल से
जोड़ते हुए
ले चलो कहीं,
दूर पठारों पर, वादियों में,
झाड़ के झुरमुट में
पतंगों की गुनगुनाहट में
मन की अंतरताल में,
शामिल करलो मुझे
अनुग्रहित करो मुझे।
बहुत अच्छी कविता।
हिंदी, नागरी और राष्ट्रीयता अन्योन्याश्रित हैं।
कुछ तो छूटा रह जाता है
जीवन एक उपलब्धि भले हो,
आ भर दो ये रिक्त मरुस्थल,
सकुचाकर क्यों दूर खड़े हो।
अच्छी इच्छाएं व्यक्त की हैं ।
हिंदी के कई शब्द पसंद आये ।
बहुत सुंदर जी धन्यवाद
बढ़िया रचना …आभार
बात मान ले जो अरमान हमारी , तो बस मजा आ जाए
बहुत ही कोमल भावनाओं से लबरेज़ इस कविता के लिये आप मुबारकबाद के मुस्तहक़ हैं।