हा हा हा बहुत ही सुंदर. चित्रकार का नाम नहीं पता चला उन्हें साधुवाद. वास्तविकता भी यही है कि पहले चित्र बना लिया जाता है फिर जैसे चाहे उसपर तरह तरह की परिभाषाएं गढ़ ली जाती हैं.
चित्र से स्पष्ट है कि निचले तबके और उच्च वर्ग के लिये ऊपर काफ़ी "ओपन स्पेस" है, जबकि मध्यमवर्ग ठीक से सो भी नहीं सकता… लालू की बीच वाली बर्थ की तरह… 🙂 🙂
गौरतलब बात ये है की गरीब रो रहे है, पर गरीब का बच्चा मस्ती में हंस रहा है, उसको पैसे, अमीरी गरीबी के फ़ालतू पचड़ों में फँसना ही नहीं, वो तो मिटटी से खेल के खुश! अपन तो सन्देश ऐसे ही पढते है !
इस प्रतीक का दूसरा पहलु यह है की इस देश की अर्थव्यवस्था को आधार देने वाले ७७% लोग गरीब हैं,इसे टिकाये रखने और सहारा देने वाले १५% लोग मध्यमवर्गीय हैं लेकिन इन सबकी मेहनत और लगन से बने इस देश की अर्थ व्यवस्था को लूट कर उसका उपयोग करने वाले ८% लोग हैं जिनका इस रूपये को बनाने में कोई योगदान नहीं है लेकिन ये रुपया इनकी बपौती और ये देश इनका जागीर है ,यही इस देश की नियति है ,बुद्धिजीवी भी जीने की मजबूरी में इनलोगों के ही साथ हैं …अब तो इस रूपये को पलटने की जरूरत है …अंग्रेजों से भी ज्यादा हैवान हैं ये ८% लोग …?
gazab,, gazaba गज़ब
एक सच्चाई
जो मीठी भी हो सकती है
जिससे मधुमेह भी नहीं होती
आपको यकीन नहीं होता न
तो यकीन कीजिए।
सत्य को जबरदस्त अंदाज में प्रस्तुत किया गया है !!!
yahee he sach..|
ye to Rs. meM bhee thaa
सन्न्नाट!
bhot sahi..
हा हा हा
बहुत ही सुंदर. चित्रकार का नाम नहीं पता चला उन्हें साधुवाद. वास्तविकता भी यही है कि पहले चित्र बना लिया जाता है फिर जैसे चाहे उसपर तरह तरह की परिभाषाएं गढ़ ली जाती हैं.
@ काजल जी – चित्रकार का नाम चित्र में नीचे सीधी तरफ़ के कोने में है, पर हमें भी समझ नहीं आया।
चित्र से स्पष्ट है कि निचले तबके और उच्च वर्ग के लिये ऊपर काफ़ी "ओपन स्पेस" है, जबकि मध्यमवर्ग ठीक से सो भी नहीं सकता… लालू की बीच वाली बर्थ की तरह… 🙂 🙂
वाकई मध्यमवर्ग "बीच का" ही बनकर रह गया है… 🙂
पता नहीं कितने भाव कह रहा है यह चित्र। वाह।
🙂
गौरतलब बात ये है की गरीब रो रहे है, पर गरीब का बच्चा मस्ती में हंस रहा है, उसको पैसे, अमीरी गरीबी के फ़ालतू पचड़ों में फँसना ही नहीं, वो तो मिटटी से खेल के खुश! अपन तो सन्देश ऐसे ही पढते है !
सटीक …
इस प्रतीक का दूसरा पहलु यह है की इस देश की अर्थव्यवस्था को आधार देने वाले ७७% लोग गरीब हैं,इसे टिकाये रखने और सहारा देने वाले १५% लोग मध्यमवर्गीय हैं लेकिन इन सबकी मेहनत और लगन से बने इस देश की अर्थ व्यवस्था को लूट कर उसका उपयोग करने वाले ८% लोग हैं जिनका इस रूपये को बनाने में कोई योगदान नहीं है लेकिन ये रुपया इनकी बपौती और ये देश इनका जागीर है ,यही इस देश की नियति है ,बुद्धिजीवी भी जीने की मजबूरी में इनलोगों के ही साथ हैं …अब तो इस रूपये को पलटने की जरूरत है …अंग्रेजों से भी ज्यादा हैवान हैं ये ८% लोग …?
sachchai yahi hai
वाह! वाह! वाह्!
आज का भारत !
सच्चाई का सही चित्रण।
………….
जिनके आने से बढ़ गई रौनक..
…एक बार फिरसे आभार व्यक्त करता हूँ।
सही आंकलन ।
लगता है आपने सच बयान कर दिया है…… 🙂
मेरी ग़ज़ल:
मुझको कैसा दिन दिखाया ज़िन्दगी ने
कार्टूनिस्ट ने कमाल की दृश्य-अभिव्यंजना रची है।
शुक्रिया।