रात को घर लौटते समय प्रोफ़ेसर कॉलोनी की सड़क पर घुप्प अँधेरे में से होकर चले जा रहे थे, और मस्ती करते हुए तीनों निकले जा रहे थे, पतझड़ का मौसम था तो पेड़ों के पत्ते सड़क पर बिछे हुए थे, और तीनों के स्पोर्ट्स शूज से उन पत्तों के कुचलने की आवाजों से वह वीरान कॉलोनी और वह सन्नाटा उनकी गप्पों के साथ अजीब सी कर्कश ध्वनि पैदा कर रहा था।
इतने में ही पुलिया के पास थोड़ी लाईट नजर आई, और वहाँ पर एक बुलेट खड़ी थी और तीन चार लोग बैठे थे, सिगरेट के धुएँ के छल्ले दूर से ही नजर आ रहे थे, लगा कि लौंडे लपाटे हैं जो प्रोफ़ेसर कॉलोनी के वीरान सन्नाटे में बीयर और सिगरेट पीने आये हैं, बात सही भी निकली, तीन के हाथ में हेवर्ड्स १०००० बीयर की बोतल थी और चौथे के हाथ में ऐरिस्ट्रोकेट व्हिस्की का अद्धा, पानी की बोतल और गिलास भी।
देखा तो पता चला कि शाहरोज अपने दोस्तों के साथ बैठकर मजा मस्ती कर रहा है, दीपक जो कि उसका खास दोस्त था और भी दो दोस्त… जिन्हें मैं पहचानता नहीं..
जब तक हम उनके पास पहुँचे तब तक सब ठीक था, पर हमारे पास पहुँचते पहुँचते दीपक के चेहरे का रंग बदलने लगा था, उसने तीनों को रोका और पूछा कि “क्यों बे इधर से क्यों आ रहे हो,और किधर जा रहे हो”
तो राकू थोड़ा हड़बड़ाया और बोला “तेरे को इससे मतलब, चल निकल”
अब दीपक खड़ा हुआ और बोला “अबे ओ कॉलेज की नई फ़सल, नाके से पॉलिटेक्निक के पास सुट्टा मार कर आ रहे हो ना ?”
राकू “तो तेरे को क्या ..”
दीपक “और स्साले कमीने तू ही है न जो क…? को छेड़ता है, परेशान करता है”
राकू को देखकर अब तो ऐसा लगा कि जैसे काटो तो खून नहीं..
दीपक “बोल स्साले बोल, अब निकाल आवाज.. तेरी तो मा…..?”
राकू “तेरे को क्या, अपन किसी के साथ भी कुछ करेगा तो क्या स्साले तेरे को जबाब देना पड़ेगा, क्या तूने पूरे गाँव का ठेका ले रखा है”
दीपक “अबे क…? की माँ मेरी बहन है, और तो मैं उसका हुआ मामा, समझा, मतलब समझाऊँ”
राकू के कान से शुन्य सी सांय सांय आवाज आने लगी ऐसा लगा कि कान अपने आप ही एक हजार डिग्री के तापमान के हो गये हों।
दीपक “मामा का मतलब, दो माँ, बोल अब मैं तेरा क्या करुँ”
राकू बेचारा क्या बोलता चुपचाप गर्दन झुकाकर खड़ा रहा ।
दीपक बोला “और सुन राकू अगर आज के बाद तू उसके आसपास नजर आया तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा”
अपुन कुछ बोला नहीं, क्योंकि मुझे पता था कि यह सब चमकाईटिस का ड्रामा है।
शाहरोज खड़ा हुआ और अपुन के पास चलता हुआ आया और आँख मारते हुए बोला “चल निकल, कल मिलते हैं”
कभी कभी अपने दोस्तों को ऐसी चमकाईटिस भी देनी पड़ती है, नहीं तो स्साले बर्बाद हो जायेंगे, इन मायाओं के चक्कर में पड़कर…
कोंलेज प्रसंग चल रहे हैं.. रोचक हैं..
🙂
अरे भईया थोड़ा धीरे तो पोस्ट कीजिये, इतना जल्दी जल्दी आपका पोस्ट आ जाता है की पढ़ने का वक्त भी नहीं मिलता…
खैर, आपकी पिछली पोस्ट और ये तो मस्त थे 🙂
मजा आ रहा है…जारी रखिये 🙂
सड़क पर घुप्प अँधेरे में हेवर्ड्स १०००० और ऐरिस्ट्रोकेट दिख गए! आपसे संभल कर रहना पड़ेगा विवेक जी!! क्या पता अगली बार अंधेरे में और क्या क्या देख लें
हा हा हा
अपुन को तो हेवर्ड्स का १०००० कभी नहीं मिला. बस ५००० तक ही पहुँच पाए.
@ अभि – पोस्ट तो धीरे धीरे ही कर रहे हैं, पढ़ने की रफ़्तार बढ़ाईये।
@ पाबला जी – वहाँ पर हल्की रोशनी भी थी.. तभी तो ये बोटलचंद दिख गये। 🙂
@ सुब्रहमानयम जी – १०,००० और ५,००० और २,००० तीन नंबर आते थे हेवर्ड्स के 🙂
ये क्या लफडा है भाई , अपुन को तो कुछ समझ ही नहीं आ रहा
प्रसंग है। कुछ जानकारी प्रदत्त भी।
रोचक प्रसंग।
गीली मिट्टी पर पैरों के निशान!!, “मनोज” पर, … देखिए …ना!
रोचक
पुराने दिन खुरच खुरच के याद किये जा रहे हैं आजकल!
@ अरविन्द जी – लफ़ड़ा कुछ नहीं है, बस कुछ पल अपनी जिंदगी के वापिस से जीने की कोशिश कर रहे हैं।
@अमिताभ जी, मनोज जी, महफ़ूज भाई – धन्यवाद
@ उड़न तश्तरी जी – कभी कभी पुराने दिनों को जीने के लिये खुरचना भी पड़ता है, काश कि आज के दिन भी पुराने दिनों जैसे मौज मस्ती के होते, तो थोड़ी सी मौज मस्ती की खोज है 🙂
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पुरानी जींस और गिटार ,
मोहल्ले की वो छत और वो मेरे यार,
बस यादें हैं, यादें हैं, यादें रह जाती हैं,
कुछ छोटी सी, छोटी सी बातें रह जाती हैं….
zealzen.blogspot.com
आभार
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इसे पढ़िये:
http://sadhviritu.blogspot.com/2010/09/blog-post_06.html
यादें बस यादें रह जाति हैं ..रोचक
रोचक संस्मरण।
हिन्दी का प्रचार राष्ट्रीयता का प्रचार है।
हिंदी और अर्थव्यवस्था, राजभाषा हिन्दी पर, पधारें
अहा, सही है।
पुरानी यादें अक्सर नयी नस्ल के लिए नसीहत भी साबित हुआ करती हैं…लिखने का अंदाज़ अच्छा है..
भाईया हम तो शरीफ़ आदमी है… इन सब पंगो से दुर, इस लिये कुछ समझ भी नही आया
वाह!!रोचक प्रसंग।
very intresting aapko padhna ab dincharya me shamil ho gaya hai janab aapki lekhni ke kaayal ho chuke hain hum to
रोचक प्रसंग