ऊफ़्फ़ कितनी जोर से दरवाजा बंद कर रखा है…मेरी कविता…विवेक रस्तोगी September 24, 2010कविता, मेरी लिखी रचनाएँमेरी कविताVivek Rastogi Share this... Facebook Pinterest Twitter Linkedin Whatsapp ऊफ़्फ़ कितनी जोर से दरवाजा बंद कर रखा है जरा कुंडी ढ़ीली करो जिससे हलके से धक्के से ये किवाड़ खुल जाये, कुंडी हटाना मत नहीं तो हवाएँ बहुत जालिम हैं।
सच कहा, हवाएं बहुत जालिम हैं…पूरी किवाड़ खोल दी,तो उड़ा ले जायेंगी अपने साथ… कम शब्दों में गहरी बात…शब्दों में गहरी बात… Reply
हवा के हलके धक्के से किवाड खोलना भी चाहते हैं और कुण्डी न हटाने की हिदायत.. कि हवाएं ज़ालिम हैं ? लगता है कुछ खास कहना चाहते हैं …मैं नहीं समझ पाई … Reply
@ संगीता जी – जी, अनजानी चाहतें न मन में आ जायें और अगर कोई आना भी चाहें तो कम से कम हमें उसके लिये समय तो मिले, इसलिये कुंडी ढ़ीली होना भी जरुरी है, नहीं तो वे चाहतें जिनको हम चाहते तो हैं, परंतु पहल करने से डरते हैं, और वो चाहत खुद से आ जाये। पता नहीं बस ऐसे ही शब्द उतर आये… और लिख दिया… Reply
अरे भाई इतनी कुडी लगाई केसे? इतने दरवाजे जो दिख रहे है, क्या कोई खिडकी भी हे? कविता बहुत अच्छी लगी आप के इस चित्र की तरह धन्यवाद Reply
कल्पनाओं के वृक्ष पर बस ऐसे ही शब्द उतर आये… अगर कोई आना भी चाहें हलके से धक्के सेखुद से आ जाये।… Reply
आदरणीय विवेक रस्तोगी जी नमस्कार ! बहुत अच्छी लगी आपकी यह लघु कविता ' कुंडी ढीली करने ' और ' कुंडी हटा न लेने की चेतावनी ' में बहुत अर्थ ध्वनित हो रहे हैं । बधाई और शुभकामनाएं– राजेन्द्र स्वर्णकार Reply
सच कहा, हवाएं बहुत जालिम हैं…पूरी किवाड़ खोल दी,तो उड़ा ले जायेंगी अपने साथ…
कम शब्दों में गहरी बात…शब्दों में गहरी बात…
कुछ सजेस्ट करती कविता !
अरे आपकी कविता भी कमाल है 🙂
हवा के हलके धक्के से किवाड खोलना भी चाहते हैं और कुण्डी न हटाने की हिदायत.. कि हवाएं ज़ालिम हैं ?
लगता है कुछ खास कहना चाहते हैं …मैं नहीं समझ पाई …
@ संगीता जी – जी, अनजानी चाहतें न मन में आ जायें और अगर कोई आना भी चाहें तो कम से कम हमें उसके लिये समय तो मिले, इसलिये कुंडी ढ़ीली होना भी जरुरी है, नहीं तो वे चाहतें जिनको हम चाहते तो हैं, परंतु पहल करने से डरते हैं, और वो चाहत खुद से आ जाये।
पता नहीं बस ऐसे ही शब्द उतर आये… और लिख दिया…
kamaal kee kavita ..ekdam uniqe.
बहुत जालिम है, कविता
अरे भाई इतनी कुडी लगाई केसे? इतने दरवाजे जो दिख रहे है, क्या कोई खिडकी भी हे? कविता बहुत अच्छी लगी आप के इस चित्र की तरह धन्यवाद
अद्भुत शब्द सौन्दर्य और सामर्थ्य है इस कविता में
वाह !
हाय!!
अंदाज हू-ब-हू उसकी आवाजे पा का था,
कुंडी हटा के देखा, झौंका हवा का था…..
क्या बात है.
कल्पनाओं के वृक्ष पर
बस ऐसे ही शब्द उतर आये…
अगर कोई आना भी चाहें
हलके से धक्के से
खुद से आ जाये।…
हवाओं का भरोसा नहीं, पता नहीं कब धमक जायें।
आदरणीय विवेक रस्तोगी जी
नमस्कार !
बहुत अच्छी लगी आपकी यह लघु कविता
' कुंडी ढीली करने ' और ' कुंडी हटा न लेने की चेतावनी ' में बहुत अर्थ ध्वनित हो रहे हैं ।
बधाई और शुभकामनाएं
– राजेन्द्र स्वर्णकार
उदभट विद्वता वाली कविता . गहरी सोच .
कुछ ही शब्दों में आपने बहुत कुछ कह दिया है।
kaun aayega yha koi na aaya hoga
jarur hawao ne ye darwaja hilaya hoga?