अब
क्या चाहते हो तुम,
तुम्हारे लिये और क्या कर गुजरें
देखो तो सही
समझो तो सही,
क्या इतना कुछ काफ़ी नहीं है
अब बोलो भी,
आखिर क्या चाहते है तुम !!
मौन….?
(किसे कहना चाह रहे हैं, क्यों कहना चाह रहे हैं, उसकी ढूँढ़ जारी है, बाकी तो सबका अपना नजरिया है।)
मौन में विचारों का प्रवाह अनियन्त्रित हो जाता है।
बहुत खूब !
बस ऐसी ही कवितायें चाहते हैं शुभकामनायें
वाह !!
अरे, कौन है ये जो मौन हो गया है? क्या चाहता है? किसे डांट रहे हैं? वैसे कविता अच्छी है.
कई रंगों को समेटे एक खूबसूरत भाव दर्शाती बढ़िया कविता…बधाई
आपका ब्लॉग पसंद आया….इस उम्मीद में की आगे भी ऐसे ही रचनाये पड़ने को |
कभी फुर्सत मिले तो नाचीज़ की दहलीज़ पर भी आयें-
संजय कुमार
हरियाणा
http://sanjaybhaskar.blogspot.com