क्या हिन्दी अखबार पढ़ना बंद कर देना चाहिये.. समझ ही नहीं आता है कि हिन्दी है या हिंग्लिश.. असल हिन्दी क्या खत्म हो जायेगी.. ?

अभी कुछ दिनों पहले एक चिट्ठे पर किसी अखबार के बारे में पढ़ा था कि पूरी खबर ही लगभग हिंग्लिश में थी, शायद कविता वाचक्नवी जी ने लिखा था, अच्छॆ से याद नहीं है। अभी  लगातार नवभारत टाईम्स में भी यही हो रहा है।
मसलन कुछ मुख्य समाचार देखिये –
१. इंडिया का गोल्डन रेकॉर्ड
२. विमान की इमरजेंसी लैंडिंग
३. पानी सप्लाई दुरुस्त करने में जुटे रिटायर्ड इंजिनियर
४. गेम्स क्लोजिंग सेरेमनी में म्यूजिक, मस्ती और नया एंथम
 
अब कुछ अंदर के पन्नों की खबरें –
१. सलमान पर इनकम टैक्स चोरी का आरोप (अपीलेट आदेश को हाईकोर्ट की चुनौती)
२. साइलेंस जिन के नियमों पर पुलिस लेगी फ़ैसला
३. कॉर्पोरेट्स को मिलेगी इंजिनियरिंग कॉलेज खोलने की इजाजत (’सेंटर ऑफ़ एक्सिलेंस’ के जरिए स्किल्ड वर्कफ़ोर्स की उम्मीद)
४. बच्चों को अपना कल्चर बताना है।
अब अगर यही हाल रहा तो पता नहीं हमारी नई पीढ़ी हिन्दी समझ भी पायेगी या नहीं, क्या हिन्दी के अच्छे पत्रकारों का टोटा पड़ गया है, अगर ऐसा ही है तो हिन्दी चिट्ठाकारों को खबरें बनाने के लिये ले लेना चाहिये। कम से कम अच्छी हिन्दी तो पढ़ने को मिलेगी और चिट्ठाकारों के लिये नया आमदनी का जरिया भी, जो भी चिट्ठाकार समाचार पत्र समूह में पैठ रखते हैं, उन्हें यह जानकारी अपने प्रबंधन को देनी चाहिये। महत्वपूर्ण है हिन्दी को आमजन तक असल हिन्दी के रुप में पहुँचाना।

13 thoughts on “क्या हिन्दी अखबार पढ़ना बंद कर देना चाहिये.. समझ ही नहीं आता है कि हिन्दी है या हिंग्लिश.. असल हिन्दी क्या खत्म हो जायेगी.. ?

  1. यह बहुत ही गम्‍भीर और बडा संकट है। इसके विरुध्‍द निरन्‍तर सक्रिय बने रहना पडेगा। मैं अखबार के मालिकों को और/या सम्‍बन्धितों को पत्र लिख कर अपने उन पत्रों को अपने ब्‍लॉग पर सार्वजनिक करता हूँ। पत्रों को ब्‍लॉग पर सार्वजनिक करने की सूचना भी उन्‍हें देता हूँ। मुझे लगता है मेरी इस कोशिश के कारण, 'दैनिक भास्‍कर' में 'मेनेजमेंट फंडा' स्‍तम्‍भ लिख रहे श्री एन. रघुरामन पर असर हुआ है।

    हम सबको इसके लिए न केवल व्‍यक्तिगत स्‍तर पर अपितु सामूहिक स्‍तर पर भी निरन्‍तर प्रयासरत रहना पडेगा। हमारी लडाई पूरी तरह से 'आत्‍म बल' की पूँजी के दम पर है और 'पूँजी बल' को हिन्‍दी की आत्‍मा बनानेवालों के विरुध्‍द है।

    मुझे लगता है, कोशिशों के सिवाय और कोई रास्‍ता हमारे पास नही बचा है।

    मेरी बात को मेरे ब्‍लॉग का प्रचार न समझें और उचित लगे तो मेरे ब्‍लॉग पर 'हिन्‍दी के हक में' टेब के अन्‍तर्गत प्रकाशित पत्रों को पढने की कृपा करें।

    दुखी होकर बैठने से काम नहीं चलनेवाला। खुद को होम कर देने तक की सीमावाला संघर्ष है यह तो।

    शुभ-कामनाऍं।

  2. विवेक भाई कुछ तो इस बाज़ारवाद के कारण हुआ है और कुछ हमारी नई पीढी के पत्रकारों की मेहरबानी है । मगर सबसे सटीक उपाय वही है जो विष्णु बैरागी जी ने कहा है

  3. nbt लोग नव भारत टाइम्स इस नाम से पुकारते थे तो उसने भी ये नाम अपना लिया और इसे हिंदी में अपने नाम के ऊपर लिखता है और उसके बगल में अंग्रेजी में YOUNG PAPER लिखता है उस समाचार पत्र ने ये नाम अपनाते समय लिखा की लोग और हमारी जवान पीढ़ी हमारे अखबार को इस नाम से बुलाती है तो हम भी यही अपनाएंगे और यंग लोगो का हमारा पात्र उनकी ही भाषा बोलेगा | अब ये सुनाने के बाद और क्या कह सकते है | हा एक बात जरुर है की कुछ शब्द हिंदी के ऐसे है की यदि उन्हें लिखा जाये तो कम से कम मुंबई के जवान क्या काफी लोगो को उसका मतलब समझ नहीं आयेगा जैसे इंजिनियर को अभियंता ( शायद हिंदी में यही कहते है ) लिखे तो किसी को भी समझ नहीं आयेगा इसलिए उनकी थोड़ी मज़बूरी है पर हा कुछ शब्द वो हिंदी में लिख सकते है पर लिखते नहीं है ये गलत बात है | पर क्या किया जा सकता है|

  4. ब्लॉगों के माध्यम से अभियान चलाना होगा. हमने अपना आक्रोश २ वर्ष पहले ही व्यक्त किया था.

  5. एक अच्छा विषय. आअज हमारी बोली, ना हिंदी हा ना अंग्रेजी , बस यही भाषा आज अख़बारों मैं भी इस्तेमाल होने लगी है. हिंदी भाषी भी अब शुद्ध हिंदी नहीं समझ पता. कारण हमारी हिन्दुस्तान मैं हिंदी के साथ सौतेला व्यवहार है.

  6. इस दुष्कृत्य की शुरुआत हिन्दी अखबारों ने ही की है और इसे "युवाओं से जुड़ने" के नाम पर किया जा रहा है, दैनिक भास्कर इसका अगुआ रहा है। इसमें
    "श्रीलंकन गवर्नमेण्ट ने इस बात से डिनाय किया है कि उसने जफ़ना में अपने ट्रूप्स को डिप्लॉय किया है…" जैसी खबरें भी पढ़ने को मिल सकती हैं…
    विरोध तो होना ही चाहिये, अखबारों को पत्र लिखकर इसका विरोध किया जा सकता है, हालांकि उन्हें अक्ल आयेगी इसमें संदेह है, क्योंकि "बाजार" के प्रभाव में जो "बाजारू" हो जाता है उसे समझाना असम्भव होता है… बहिष्कार भी एक रास्ता है…

  7. बच्चों को अपना कल्चर बताना है।
    वाह यह तो सच मे ही हिंगलिस हे जी, इन्हे सीधा करने का एक ही इलाज हे, आप इस समाचार पत्र को इस की गल्तिया बता कर, इसे लिख दो कि मै इस कारण यह समाचार पत्र बंद कर रहा हुं, ऒर आप के संग अन्य मित्र भी आप का यह बेकार का समाचार पत्र बंद कर रहे हे, फ़िर देखे, ओर हा सच मे बदल दे

  8. .

    जब तक देश में अंग्रेजी माध्यम के स्कूल होंगे , तब तक हिंदी भाषा को उसका उचित सम्मान नहीं मिल सकेगा। वैसे राज ठाकरे जैसे नेता लोग भी जिम्मेदार हैं हिंदी की दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति के लिए।

    .

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