आज सुबह अखबार के एक कोने में खबर थी कि A glass of beer is cheaper than a cup of tea at IFFI in Goa | अब बताईये चाय ५८ रुपये की और ठंडी बीयर का गिलास २५ रुपये में, क्या जमाना आ गया है।
आयोजक कहते हैं कि अगर चाय पीने वालों को चाय महँगी लग रही है तो वे सड़क पार कर स्थानीय ढाबे पर चाय पी सकते हैं। अब भई जो बीयर के शौकीन होंगे तो वे भला क्यों इतनी महँगी चाय पियेंगे। उससे अच्छा है कि दो गिलास ठंडी बीयर पियें और फ़िल्म फ़ेस्टिवल आयोजन का मजा लें।
क्यों अविनाश जी सही कह रहे हैं न हम, अब बाकी तो आप ही बतायेंगे कि कौन से स्टॉल पर ज्यादा भीड़ थी, चाय के या बीयर के।
और हम जैसे लोग जो बीअर नहीं पीते वो क्या करेंगे??इत्ती महंगी चाय कैसे पियेंगे? 🙂
बाजार का नियम है
जो चीज सस्ती हो
बिकती वही ज्यादा है
फिर उसमें शान भी है
शान को उर्दू की तरह पढ़ें
वैसे नशा तो चाय में
कम नहीं है
इसीलिए तो उसके
लग रहे हैं 58
और बीयर ठंडी के 25
वैसे यह भी न लगें
यदि किसी मित्र के साथ
पीने चल पड़ें
भीड़ तो भेड़ है जी
फिल्मों में भी होता है
ऐसा ही।
भीड़ होती है
भेड़ दिखलाई नहीं देती
जबकि होती है भेड़ ही।
लो जी भेड़ दिया हमने भी
भड़ाभड़ाता हुआ कमेंट।
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अविनाश जी की पहली टिप्पणी ने मजा दुगुना कर दिया है..
अब हमें भी लग रहा है कि यह सब मांग और आपूर्ती के अर्थशास्त्रीय सिद्धांत के तहत हो रहा है, या आयोजक सबको जानकर बीयर का लुत्फ़ दिलवाना चाहते हों।
@ अभि – जो नहीं पीते उनके लिये तो इससे अच्छा मौका और कोई हो नहीं सकता कि अगर बीयर पसंद ना आई तो केवल २५ रुपये का खून और चाय का क्या है रोज पीते हैं, पसंद न आई तो ५८ रुपये का खून, ज्यादा का खून करने से तो २५ रुपये का खून करना अच्छा है। 🙂
बस पीने वालों को बहाना चाहिये। बडिया लगे रहो।
हा हा हा…… २५ रुपये की बीयर…….सही है…. उस पर से अविनाश जी का कमेन्ट कि
"और बीयर ठंडी के 25
वैसे यह भी न लगें
यदि किसी मित्र के साथ
पीने चल पड़ें"—– यह बेहद रोचक और बिलकुल सही बात लगी. ऐसा ही तो होता है, मित्र होते ही इतने अच्छे है!!!!!!
जनमानस में यही धारणा है की गोवा तो पीने खाने के लिए ही जाते हैं.
जब बीयर उपलब्ध हो तो चाय को आखिर बीयर ही क्यों किया जाय 🙂
गोवा में बीयर की शान है !!!
भाई जी गोआ में आप और उम्मीद ही क्या कर सकते हैं।
बाजार का स्पष्ट आदेश।