जब हमने टिकिट ले लिया और अपनी निगाहें उस टीवी स्क्रीन पर जमा रखी थीं फ़िर जब पुल पर आये तो वहाँ पर भी इंडिकेटर में हरेक प्लेटफ़ॉर्म के बारे में सूचना होती है, पहले हम २ नंबर प्लेटफ़ॉर्म की ओर रुख कर रहे थे, परंतु तभी देखा कि ४ नंबर पर फ़ास्ट आ रही है, तो उधर की तरफ़ दौड़ पड़े क्योंकि केवल १ मिनिट ही बचा था। समय से लोकल आ गई और चूँकि यह हम उल्टी तरफ़ जा रहे थे, इस तरफ़ के लिये भीड़ सुबह मिलती है तब लोकल में चढ़ना किसी युद्ध से कम नहीं होता है। मालाड़ से आगे वाली तरफ़ के कूपे में ही चढ़ लिये, जिससे चर्चगेट पर ज्यादा दूर नहीं चलना पड़े, बताओ चलने में भी मन में कितना आलस्य भरा होता है। पर आलस्य के साथ साथ समय की बचत भी कम से कम २-४ मिनिट की ही सही।
मजे में खिड़की के पास की सीट पर बैठ गये और पहले कुछ जरुरी फ़ोन लगाये फ़िर अपने कानकव्वे को फ़ोन में लगाकर एफ़.एम. सुनने लगे।
एफ़.एम. के भी १२ चैनल आते हैं, अब हम तो कभी कभी सुनने वाले हैं तो बस जहाँ गाना अच्छा होता रुक जाते या फ़िर जो बतौड़ कर रहा होता वहाँ, इस तरह से ५० मिनिट के सफ़र में जाने कितनी बार चैनल बदल डाले होंगे। एफ़.एम. के किसी चैनल पर ही एक रजनीकांत स्पेशल चुटकुला सुना –
“बचपन में रजनीकांत मुंबई में खेलने आये थे, और अपना एक खिलौना यहीं भूल गये थे, जिसे लोग आजकल एस्सेल वर्ल्ड के नाम से जानते हैं”|
वर्षों पहले जब हम दिल्ली में थे तब केवल एफ़.एम. का ही सहारा होता था और दिल्ली में उस समय २-३ एफ़.एम. के चैनल ही आते थे, पर आजकल १२ चैनल यहाँ मुंबई में हैं तो दिल्ली में भी कम तो नहीं होंगे।
लोकल गोरेगाँव, जोगेश्वरी, अंधेरी, बांद्रा, दादर, मुंबई सेंट्रल, चर्चगेट रुकी। बीच के स्टेशन पर नहीं रुकी क्योंकि फ़ास्ट थी लगभग हर तीन छोटे स्टेशन के बाद एक बड़ा जंक्शन जैसे बड़ा स्टेशन आता है। अगर किसी छोटे स्टेशन पर उतरना हो तो स्लो लोकल पकड़ना होती है। बीच में चर्नी रोड़ और मरीन लाईन्स से दायीं तरफ़ दरिया दिखता है, फ़िर चर्चगेट आने वाला होता है तो वानखेड़े स्टेडियम दिखता है, उस दिन वहाँ वेल्डिंग का काम चल रहा था, प्रतीत होता था कि स्टेडियम का जीर्णोद्धार हो रहा है, ये तो बाद में पता चलेगा कि फ़ायदा अधिकारी का हुआ या जनता का।
जारी…
अच्छा है। लेकिन बहुत जल्दी खत्म कर दिया। मुंबई के बारे में कुछ और लिखें।
जारी है।