हमारे एक मित्र ने एक मैसेज दिया वही हिन्दी में लिख रहा हूँ।
बेचारा मर्द..
अगर औरत पर हाथ उठाये तो जालिम
औरत से पिट जाये तो बुजदिल
औरत को किसी के साथ देखकर लड़ाई करे तो ईर्श्यालू (Jealous)
चुप रहे तो बैगैरत
घर से बाहर रहे तो आवारा
घर में रहे तो नकारा
बच्चों को डाटे तो जालिम
ना डांटे तो लापरवाह
औरत को नौकरी से रोके तो शक्की मिजाज
ना रोके तो बीबी की कमाई खानेवाला
माँ की माने तो माँ का चमचा
बीबी की सुने तो जोरू का गुलाम
ना जाने कब आयेगा ?
“HAPPY MEN’S DAY”
वह तो सभी 365 दिन होता है, आप एक दिन में ही सिमट जाना, समेट देना चाहते हैं, खैर मित्रों की यह हालत है तो इस हेतु एक ब्लॉगर सम्मेलन आमंत्रित करने पर विचार किया जा सकता है.
घोर अनर्थ है…मोर्चा निकालना चाहिए हम सब को इसके खिलाफ…
हा हा 🙂
एक भी तर्क इसमें कोई काट सकता है भला??? 🙂
बेचारा आदमी। क्या करे और क्या न करे।
बेचारा मर्द
मर्दों के दर्द और दुविधा को बखूबी उकेरा है।
आभार।
सही बात है जी। विवेक जी संघर्ष करो, हम तुम्हारे साथ हैं(या नहीं पूछकर बतायेंगे):)
हम्म्म्म ! बेचारे |
मर्द को दर्द नहीं होता ….
बेचारे हम।
एक मंच की जरूरत है..
हे हे हे! क्या सही में आप सब बेचारे है?
बेचारा 🙂
kya bole ji
ab to aadi ho chuke h
ham sab ek hai…
kunwar ji,
माँ की माने तो माँ का चमचा
बीबी की सुने तो जोरू का गुलाम
का रस्तोगीजी, दुखती नस पर हाथ रख दिया….
सचमुच बेचारा??????
…वंदना जी खुश हो रही हैं।
…खुद की जग हँसाई कराने वाला स्व निंदक!!
…वंदना जी खुश हो रही हैं।
…खुद की जग हँसाई कराने वाला स्व निंदक!!
अब क्या कहे जी….. बे…चा…रा….