विरहणी स्त्रियों का चित्रण – जिन स्त्रियों के पति परदेश चले गये हैं, ऐसी स्त्रियां शारीरिक श्रृंगार नहीं करती हैं। ऐसी स्थिती में उनके केश बिखरे होने के कारण मुख और आंखों पर आये हुए हैं। वे स्त्रियाँ मेघ को देखने के कारण उन केशों के अग्रभाग को ऊपर से पकड़े होंगी।
प्राचीन काल में आधुनिक युग के समान आवागमन के साधन नहीं थे, इसलिये व्यक्ति वर्षा ऋतु अपने घर व्यतीत करते थे। शेष आठ माह घर
से बाहत अपना व्यापार, नौकरी आदि करते थे। इसी कारण हिन्दुओं के प्राय: सभी त्योहार (होली को छोड़्कर) इसी वर्षा ऋतु में होते हैं। दीपावली मनाने के बाद व्यक्ति बाहर चले जाते थे और वर्षा आरम्भ होने के साथ ही अपने घर लौट आते थे। इस कारण आकाश में मेघ को देखकर उनकी पत़्नियों को यह विश्वास होने लगता था कि अब उनके पति लौटने वाले हैं।
पुत्र को जन्म देने कारण पत़्नी को ’जाया’ कहा जाता है।
कुसुमसदृशं – पुष्प के समान (कोमल) प्राण वाले। उत्तररामचरितमानस में भी स्त्रियों के चित्त को पुष्प के समान कोमल बताया गया है।
शिलीन्ध्र को कुकुरमत्ता भी कहते हैं। ग्रामों में प्राय: छोटे छोटे बच्चे साँप की छत्री भी कहते हैं। यह वर्षा ऋतु में पृथ्वी को फ़ोड़ कर निकलते हैं। कुकुरमुत्तों के उगने से पृथ्वी का उपजाऊ होना माना जाता है।
मानस सरोवर हिमालय के ऊपर, कैलाश पर्वत पर स्थित है। कैलाश पर्वत हिमालय के उत्तर में स्थित है। कहते हैं कि इसको ब्रह्मा ने अपने मन से बनाया था। इसलिए इसे मानस या ब्रह्मसर भी कहा जाता है। वर्षाकाल से भिन्न समय में मानसरोवर हिम से दूषित हो जाता है और हिम से हंसों को रोग लग जाता है। इसलिये वर्षाकाल में ही राजहंस मानसरोवर जाते हैं तथा शरदऋतु के आगमन के साथ ही मैदानों में आ जाते हैं।
काव्यों में हंसों का कमल-नाल खाना प्रसिद्ध है। वे इसका दूध पीते हैं।
राजहंस – एक श्वेत पक्षी जिसकी चोंच और पैर लाल होते हैं, जो नीर-क्षीर-विवेक के लिये प्रसिद्ध है।
अच्छा आलेख!
अच्छी श्रृंखला चल रही है !!
भाई कहां कहा से ढुढ कर लाते है इतने शब्द ओर उन के अर्थ, दिल सेआप का धन्यवाद, बहुत अच्छा लगता है
आप तो हमारा कालिदास विषयक ज्ञान संवर्धित कर रहे हैं। अन्यथा क्या नम्बर लगता इस विषय का!
इस रोचक जानकारी के लिए आभार।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }