बात तो बहुत पुरानी है परंतु चिंतन का चक्र चलता ही रहता है, अभी जुलाई में भविष्य की रुपरेखा के बारे में फ़िर से प्रस्तावना बनाया और गहन चिंतन किया तो लगा कि अभी तो अपने जिंदगी में बहुत कुछ पाना है मुकाम देखने हैं। जिंदगी आखिर मुकाम पाने का ही दूसरा नाम है, बस चलते ही जाओ, कमाते जाओ, काम करते जाओ, परिवार के साथ जब वक्त निकालने का समय आता है तो लेपटॉप खोल कर बैठ जाओ और जब काया साथ छोड़ दे तो उसी परिवार से उम्मीद करो कि वे अब आपका ख्याल करें, कितने स्वार्थी हैं ना !
खैर ये सब बहुत माथापच्ची है जिंदगी की, अगर गहन चिंतन में उतर गये तो बस हो गया काम तमाम। जिंदगी का उद्देश्य क्या है उसमें हमें क्या पाना है, क्या खोना है, खैर खोना तो कोई भी नहीं चाहता और सारे रिश्ते स्वार्थों के दम पर और दंभों की दुनिया में खड़े किये जाते हैं। कोई खून का रिश्ता मजबूरी में निभाना पड़ता है और कोई अनजाने रिश्ते या खून के रिश्ते खुशी खुशी निभाता है, यह भी बहुत गहन चिंतन है। समाज में कैसे जीवन जीना और हरेक समाज वर्ग की अपनी जीवन शैली होती है। जीवन शैली में बदलने का स्कोप बहुत होता है हम एक दूसरे को देखकर अपनी दिनचर्या, अपने जीवन जीने के तरीके में भी प्रभावित होते हैं। यहाँ तक कि बोलचाल और हावभाव में भी प्रभावित होते हैं। चाहे अनचाहे हम बहुत सारी चीजें दूसरों की ले लेते हैं, वह भी स्वार्थवश “ऐसा अच्छा लगता है”। पता नहीं समाज में कितने लोग अक्ल लगाते होंगे।
सभी जीवन को अपने अपने नजरिये से देखते हैं, किसी के लिये यह बहता दरिया है तो किसी के लिये मौज का समुंदर तो किसी के लिये धार्मिक आस्था का केंद्रबिंदु, सबकी सोच जिंदगी के बारे में अलग अलग होती है। दिनचर्या बहुत ही निजी विषयवस्तु है परंतु अधिकतर देखने मॆं आता है कि उस पर किसी ओर (सोच या विचारधारा) का अतिक्रमण होता जा रहा है। हमारी अपनी मौलिक विचारधारा जिंदगी जीने की शायद खत्म ही हो गई है। हरेक चीज में बनावटपन है, क्या इससे जीवन जीने के लिये जरुरी चीजों को हम सम्मिलित कर पाते हैं।
पता नहीं क्या हो रहा है जिंदगी लिखते हुए जिंदगए लिखने में आ रहा है, शायद कीबोर्ड पर भी हाथ बहकने लगे हैं। तो बारबार बैकस्पेस से जिंदगी को ठीक कर रहा हूँ काश कि ऐसा कोई बैकस्पेस जिंदगी में होता तो सारी चीजें ठीक हो गई होतीं।
जिन्दगी कभी लौटकर वापस नहीं आती, इसलिए इसे सोच समझकर व्यवहार करना चाहिए। लेकिन इसका कोई फार्मूला भी नहीं है, बस सभी को अपने रास्ते स्वयं बनाने पड़ते हैं।
सही में अगर बैकस्पेस होता तो अब तक कितनी ही गलतियों को ठीक कर भी लिया होता 🙂
बैकस्पेस तो नहिं पर आगामी करेक्शन हमारे हाथ होता है। किन्ही अच्छे विचारों से सुधार आता है तो वह परिमार्जन है। यह दूसरे विचारों का अतिक्रमण नहिं, हमारा मौलिक परिवर्तन ही है।
काश बैकस्पेस का बटन जीवन में होता, बस नहीं है और यही सावधानी है।