वैसे मैं फ़िल्म वगैराह देखने में अपना समय नष्ट करना उचित नहीं समझता हूँ परंतु “खेलें हम जी जान से” की इतनी चर्चा सुनी थी, कि फ़टाफ़ट से टोरन्ट से डाऊनलोड किया और देखने लगे। ये फ़िल्म भी हम कल रात को ३ दिन में पूरी कर पाये हैं, एक साथ इतना समय निकालना और इतना ध्यान से देखना शायद अपने बस की बात नहीं है।
फ़िल्म इतनी अच्छी लगी कि शायद ही इसके पहले स्वतंत्रता की पृष्ठभूमि पर इस अंदाज में फ़िल्मांकन किया होगा। यह फ़िल्म बहुत कुछ सोचने को मजबूर करती है, हमें आजादी दिलाने वाले नौजवानों ने अपना खून बहाया है (पानी या पसीना नहीं)।
हम इस आजादी का नाजायज लाभ उठा रहे हैं, क्या इसी आजादी के लिये क्रांतिकारियों ने अपनी शहादत दी थी, अगर उन्हें पता होता कि आजादी के बाद ये सब होगा तो शायद ही उनके मन में भारत माता के आत्मसम्मान को जागृत करने की बात आती। शहीदों को नमन जिन्होंने हम भारतवासियों को इतनी गुंडागर्दी, भ्रष्टाचारी और भी न जाने क्या क्या वाली सरकार दी, दिल रो रहा है यह सब लिखते हुए, क्या फ़िर से इस भारत को आजाद करवाना होगा ?
क्या भारत माता का आत्मसम्मान खो गया है, क्या हम क्रांतिकारियों और स्वतंत्रता सेनानियों की शहादत का बदला इतने बड़े बड़े कांड़ों को झेलकर और करके चुका रहे हैं।
क्यों न वापिस से ऐसी ही एक क्रांति का जन्म हो जिसमें इन कांडों को करने वाले हरेक शख्स को खत्म कर दिया जाये और फ़िर से भारत माता के सम्मान को वापिस लाया जाये। अगर वाकई हमें अपना देश बचाना है तो ऐसी ही किसी क्रांति की जरुरत है, सजा तो इनको देनी ही होगी। क्योंकि अब ये लोग इतने बेशरम हो गये हैं कि ये न कलम की तलवार से डरते हैं और न ही भारत माता के सपूतों से ।
बताईये क्या करना चाहिये ….. क्या क्रांति की बात गलत है… फ़िर से हमें भारतमाता के आत्मसम्मान को पाने के लिये क्रांति की अलख जगानी होगी।
वन्दे मातरम !! जय हिन्द !!
वर्तमान तो दुखद है। यह फिल्म तो देखनी पड़ेगी।
हम प्रवीण जी के साथ हैं.
हमें तो अपने ही गिरेबान पहले देखना होगा सब अपनी सफाई खुद करे तो देश खुद बखुद इन चीजो से आजाद हो जायेगा |
सभी लोग ज़रूर देखें ये फिल्म
पर टोरेंट से डाउनलोड कर के नहीं
बल्कि थिएटर मे जाकर. सही बात गलत तरीके से क्यों जानी जाए . थोड़े से ग़लत तो हम सभी हो गए हैं
प्रवीण जी ने आपका पता दिया. आजाद भारत में प्योर ईमानदार कैसे बने? प्योर न सही थोड़े ही… शायद आप कुछ और बेहतर उपाय बता सकते हैं.. मैनें आज सभी से पूछा था..
और यहाँ देखा तो देशभक्ति की ही बात चल रही है..
जब हम ईमान दार बने गे तभी देश को आगे ले जा सकते हे, जब तक हम अपनी गरज के लिये इन नेताओ के तलबे चाटेगे तो केसे आगे बढ पायेगे, फ़िल जल्द ही डाऊन लोड करता हुं फ़िर देखेगे, धन्यवाद
मैं भी भाटिया साहब से इत्तफाक रखता हूं… लेकिन भ्रष्टाचार हमेशा ऊपर से, दबंग से, शक्तिशाली से, मजबूत से, शासक से प्रारम्भ होता है. और जिससे निपटने के लिये ही तमाम कानून-कायदे बनाये गये हैं.. लेकिन यहां तो कुंयें में ही भांग पड़ी है…
एक नये स्वतन्त्रता संग्राम की नींव तो बाबा रामदेव ने डाल दी है, देखिये आगे क्या होता है…
बेहतरीन पोस्ट लेखन के बधाई !
आशा है कि अपने सार्थक लेखन से,आप इसी तरह, ब्लाग जगत को समृद्ध करेंगे।
आपकी पोस्ट की चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है-पधारें
वर्तमान परिस्थितियों के अनुसार तो लगता है कि सच में फिर से आज़ाद कराना पड़ेगा।
कुछ दिनों पहले अखबार में एक वरिष्ठ पत्रकार का आलेख पढ़ा कि भ्रष्टाचार की शुरुआत 1948 के 'जीप घोटाले' से ही हो गयी थी. उस वक्त अगर दोषी को तरक्की (सचिव से मंत्री) देने के बजाय सजा दे दी गयी होती, तो बात कुछ और होती. यह आकलन सही लगता है.
अब सवाल भविष्य का है कि होना क्या चाहिए?
मुझे लगता है, इसका खात्मा भी ऊपर से ही सम्भव है, नीचे से नहीं.
शायद नेताजी सही थे कि- भारत को अपनी समस्याओं के समाधान के लिए एक कमाल पाशा की आवश्यकता है. उन्होंने यह भी कहा था कि ब्रिटिश साम्राज्यवाद के बाद इस देश में बीस वर्षों की तानाशाही कायम होनी चाहिए- एक तानाशाही ही देश से गद्दारों को निकाल बाहर कर सकता है.
यहाँ यह बता दिया जाय कि तानाशाह सिर्फ ईदी अमीन ही नहीं थे, बल्कि कमाल पाशा भी थे.
शायद ज्यादातर लोग सहमत नहीं होंगे, मगर मेरे हिसाब से नेताजी के उपर्युक्त विचार से ही अब देश से भ्रष्टाचार दूर हो सकता है.
मैं इस विचारधारा वाले लोगों को लामबन्द करना चाह्ता हूँ. क्या आप साथ हैं?
ाभी उमीद की कोई किरण कहीं से भी दिखाई नही देती मौजूदा हर पार्टी भ्रशःट और बेईमान है। कौन सुधार करेगा? देखते हैं बाबा रामदेव जी कुछ कर पाते हैं या नही। लेकिन इतने मंहगे चुनाव के लिये नीँव तो वहाँ भी झूठ से ही रखनी पडेगी। बहुत कुछ है कहने सुनने को मगर करने वाला कौन है। शुभकामनायें।
मैंने बाबा रामदेव को अपना "घोषणापत्र" (ऐसे होगा खुशहाल, स्वावलम्बी और शक्तिशाली भारत का निर्माण) डाक द्वारा भेजा था और अनुरोध किया था कि अगर आप चाणक्य बनना चाहें, तो मैं चन्द्रगुप्त बनने के लिए तैयार हूँ.
जवाब अब तक तो नहीं आया है.
(मेरा घोषणापत्र- http://khushhalbharat.blogspot.com/ )