अशांत मन को शांत कैसे करुँ
क्या भावबोध दूँ मैं इस मन को
जिससे यह स्थिर हो जाये
अस्थिरता लिये हुए कब तक
ऐसे ही इन भावबोधों से
यह चित्रकारी करता रहूँगा
पुराने पड़ने लगे रंग भी कैनवास के
नये रंग चटकीले से भरने होंगे
कुछ उजास आये
कुछ समर्पण आये
प्रेम वात्सल्य करुणा रोद्र रस आयें
रसों के बिन कैसे जीवन तरे
सब अस्थिर है,
चंचलता को ताक रहा हूँ
मन के लिये…
चंचलता को ताक रहा हूँ
मन के लिये
सुंदर अभिव्यक्ति, बधाई!
बहुत सुन्दर कविता
चंचलता से मथकर राह मिलती है मन की स्थिरता को।
नये रंग चटकीले से भरने होंगे।
अच्छी अभिव्यक्ति। बधाई।
चित्त को स्थिर करना बहुत मुश्किल है..
अशांत मन को शांत और स्थिर करना साधना है कला के माध्यम से ही ये साधना साध्य है।
अच्छी कविता है भईया..
अति सुंदर रचना, धन्यवाद
सुदूर खूबसूरत लालिमा ने आकाशगंगा को ढक लिया है,
यह हमारी आकाशगंगा है,
सारे सितारे हैरत से पूछ रहे हैं,
कहां से आ रही है आखिर यह खूबसूरत रोशनी,
आकाशगंगा में हर कोई पूछ रहा है,
किसने बिखरी ये रोशनी, कौन है वह,
मेरे मित्रो, मैं जानता हूं उसे,
आकाशगंगा के मेरे मित्रो, मैं सूर्य हूं,
मेरी परिधि में आठ ग्रह लगा रहे हैं चक्कर,
उनमें से एक है पृथ्वी,
जिसमें रहते हैं छह अरब मनुष्य सैकड़ों देशों में,
इन्हीं में एक है महान सभ्यता,
भारत 2020 की ओर बढ़ते हुए,
मना रहा है एक महान राष्ट्र के उदय का उत्सव,
भारत से आकाशगंगा तक पहुंच रहा है रोशनी का उत्सव,
एक ऐसा राष्ट्र, जिसमें नहीं होगा प्रदूषण,
नहीं होगी गरीबी, होगा समृद्धि का विस्तार,
शांति होगी, नहीं होगा युद्ध का कोई भय,
यही वह जगह है, जहां बरसेंगी खुशियां…
-डॉ एपीजे अब्दुल कलाम
नववर्ष आपको बहुत बहुत शुभ हो…
जय हिंद…