मुंबई मायानगरी है, बचपन से मुंबई के किस्से सुनते आ रहे थे, मुंबई ये है मुंबई वो है, वहाँ फ़िल्में बनती हैं, कुल मिलाकर बचपन की बातों ने जो छाप मन पर छोड़ी थी, उससे मुंबई को जानने की और जाने की उत्कंठा बहुत ही बड़ गयी थी।
पहली बार मुंबई नौकरी के लिये ही सन १९९६ में आया था, फ़िल्मों में केवल नाम सुने थे, बांद्रा, अंधेरी, दादर, महालक्ष्मी, लोअरपरेल, मुंबई सेंट्रल, प्रभादेवी इत्यादि और मायानगरी में पहुँचकर तो बस जैसे हमारे पैर जमीन पर ही नहीं पड़ रहे थे, जब १९९६ में आये थे तब उज्जैन से अवन्तिका एक्सप्रैस से बांद्रा उतरे थे, हम बहुत सारे दोस्त एक साथ मुंबई आ रहे थे सबके मम्मी पापा ट्रेन पर छोड़ने आये थे और सब समझाईश दे रहे थे, समझदारी से काम लेना बहुत बड़ी जगह है, और भी बहुत सारे निर्देश जो कि अमूमन अभिभावकों द्वारा दिये जाते हैं। उस समय जिस कंपनी ने हमें नियुक्ती दी थी उसके बारे में ज्यादा पता नहीं था परंतु हाँ हमारे कुछ और दोस्त पहले से ही उस कंपनी में कार्य कर रहे थे।
हमारे मन में भी गजब हलचल थी पहली बार मायानगरी मुंबई जो जा रहे थे, पहली बार जीवन में दरिया याने कि समुंदर के किनारे वाली नगरी में जो जा रहे थे। हमारी मुंबई जाने की खुशी छिपाये नहीं छिप रही थी, हम बहुत खुश थे, और अपने पालकों द्वारा निर्देशित किये जा चुके थे, ट्रेन उज्जैन से रवाना हुई, उस समय ट्रेन बांद्रा तक आती थी, अब मुंबई सेंट्रल जाती है।
ट्रेन में कुछ और सहयात्रियों से बातें हुईं, तो हमें थोड़ा सावधानी बरतने की सलाह दी गई कि मुंबई में तो लोग ऐसे ही बुलाते हैं फ़िर हाथ में घोड़ा देकर कहते हैं कि जाओ उसका गेम बजा दो और बस मुंबई में ऐसे ही चलता है। ये सब सुनकर हमारे सबके मन में थोड़ा भय भी घर कर गया था, परंतु हम इतने सारे दोस्त थे इसलिये हिम्मत बंधी हुई थी, और हम सबने आपस में तय भी कर लिया था कि अगर कुछ भी गड़बड़ लगी तो वापिस से आरक्षण करवाकर तुरंत वापसी उज्जैन कर लेंगे।
हमारे एक वरिष्ठ जो कि पहले से ही मुंबई में थे, वे लेने आयेंगे यह पहले से ही तय था, सबसे बड़ी समस्या थी कि पहचानेंगे कैसे, हमने तय किया कि चाक से ट्रेन के डिब्बे पर नाम लिख देंगे अगर कोई हमें लेने आया और पहचान नहीं पाया, मोबाईल फ़ोन तो थे नहीं कि झट से पूछ लिया कि हम यहाँ खड़े हैं…
(वैसे हमारे वरिष्ठ जब हमें लेने आये तो हम एक बार में ही पहचान गये बताईये कैसे पहचाना होगा… वे ऐसी क्या चीज साथ में लाये होंगे… कंपनी के नाम की नामपट्टिका नहीं थी..)
रोचक है, हाथ में घोड़ा या कम्पनी की नाम पट्टिका।
बस तनिक और बड़ा करिए …..अच्छी चलेगी यह संस्मरण श्रृखला
रोचक विवरण
रोचक संस्मरण
अगले भाग का इन्तजार
रोचक संस्मरण । वो कम्पनी की गाडी ले कर आये होंगे और ड्राइवर के हाथ मे नाम पट्टिका होगी। धन्यवाद।
फूल लेकर आए होंगे या फिर कम्पनी की मेग्जीन। अच्छा है संस्मरण, जारी रखिए।
ऐसे ही हाल हमारे थे जब हम पहली बार दिल्ली आये थे।
आते ही एक टम्पू वाले ने हमें पहले तो ठगा, फिर हमसे ही चाय भी पी।
मुंबई एक पगलाया हुआ शहर है. कुछ समय यहां भी रहा, पसंद नहीं आया.
रोचक संस्मरण
मैं पहली बार मुंबई अपने अपने कॉलेज के सहपाठियों साथ एजुकेशनल टूर में गया था। तब हमारे साथ कुछ ऐसे हादसे पेश आए थे के इस गाने पर भरोसा बढ़ गया था-
ए दिल है मुश्किल जीना यहाँ…
जरा हट के, जरा बच के, ये है बंबई मेरी जाँ…
majedaar hai ji mumbai darshan jaari rahe…
neeraj
बहुत उत्सुकता जगा दी है|
अपने नाम की पट्टी या उज्जेन शहर से सम्बन्धित कुछ.
घुघूती बासूती
guD..
बढ़िया वृतांत …अगली कड़ी का इंतज़ार रहेगा ! शुभकामनायें
रोचक वृतांत .. अगली कडी का इंतजार रहेगा !!
वो आप जेसी पोशाक मे खडा होगा, ओर उसे आप की बोगी का ना० पहले से पता होगा, वेसे हम तो बम्बई के नाम से ही डरते हे जी….. आप की यात्रा अभी से रोचक लग रही हे, देखे आगे क्या होता हे, अरे हां वो आप के परिचक तो आप को पहले से जानते थे, या कोई दोस्त उन्हे पहचानता होगा इस लिये झट से पहचान गये:)