मुंबई गाथा की सारी किश्तें पढ़ने के लिये यहाँ क्ल्कि करें।
थोड़ी ही देर में क्लाईंट के ऑफ़िस के सामने थे, जिसके यहाँ हमारी कंपनी का सॉफ़्टवेयर चलता था और भारत के हरेक हिस्से में वे लोग अपनी संपूर्ण प्रक्रिया को कंप्यूटरीकृत कर रहे थे, जिसमें हमारा काम था, उनका डाटा ठीक करना, माइग्रेशन करना और फ़िर अगर बैलेंस नहीं मिल रहे हैं तो बैलेंस मिलाना और सॉफ़्टवेयर उपयोग करने वाले कर्मचारियों को सिखाना।
जब वहाँ अपने एक कक्ष में पहुँचे तो देखा कि पहले से ही वहाँ हमारी कंपनी के बहुत सारे लोग मौजूद हैं, जिसमें से कुछेक को पहचानते थे और कुछ का नाम सुना था, पर बहुत सारे चेहरे अनजाने थे, सबसे हमारा परिचय करवाया गया, लगा कि अभी तो जिंदगी में ऐसे ही पता नहीं कितने नये चेहरों से मिलना होगा, और उन चेहरों के साथ काम भी करना होगा। जिनमें बहुत सारे चेहरे दोस्त बनेंगे और कुछ से अपने संबंध ठीक से रहेंगे और कुछ से नहीं भी बनेगी।
मेरी जिंदगी में यह एक नया अध्याय शुरु हो चुका था, जिसका अहसास संपूर्ण रुप से मुझे हो रहा था, जिंदगी कितनी करवटें बदलती है यह मैंने देखा है, परंतु यह मेरी जिंदगी की पहली करवट है यह मुझे पता चल रहा था।
हमारे वरिष्ठ ने फ़िर पूरे स्टॉफ़ से परिचय करवाया और पूरी इमारत घुमाने लगे, हम सोचने लगे कि बताओ हम कहाँ गाँव में रहते थे, इसे कहते हैं शहर। ऐसे ही घूमते घूमते हम पहुँचे स्ट्राँग रूम, हमसे पूछा गया कि स्ट्राँग रूम का मतलब समझते हो, और इसका क्या उपयोग होता है, हमने स्ट्राँग रूम शब्द ही पहली बार सुना था और उसके बारे में पता भी नहीं था कि ये क्या चीज होती है। तब हमारे वरिष्ठ ने हमें बताया कि स्ट्राँग रूम उसे कहते हैं जहाँ कोई भी वित्तीय संस्थान अपनी नकदी और लॉकर्स रखता है, और इस स्ट्राँग रूम में सुरक्षाओं के कई स्तर होते हैं, जिससे यह सब चीजें सुरक्षित रहें। स्ट्राँग रूम की दीवारें पूरी तरह से सीमेंट कांक्रीट से बनी होती हैं, जिस सामग्री से सामान्यत: बीम और पिलर बनते हैं, जिससे स्ट्राँग रूम इतना मजबूत हो जाता है, और उस पर भी सुरक्षा के विभिन्न स्तर रहते हैं।
हम स्ट्राँग रूम पहुँचे तो वहाँ का स्ट्राँग रूम बहुत ही बड़ा था, और वहाँ ढेर सारे रुपये थे, हमने अपनी जिंदगी में पहली बार इतनी नकदी एक साथ देखी थी, हमारे वरिष्ठ ने पूछा कि बताओ कितने रुपये होंगे, हम बोले कि अंदाजा नहीं लग रहा है, वे बोले ये कम से कम दस करोड़ रुपये हैं और यहाँ रोज दस से बारह करोड़ रुपयों का नकद में व्यवहार होता है। हम सबके चेहरे पर आश्चर्यमिश्रित चमक थी कि आज हमने इतने सारे रुपये एक साथ देखे और हमारी जिंदगी का एक यादगार लमहा भी था।
थोड़ी ही देर में हमारी कंपनी के डायरेक्टर आये तो वे बोले कि आप सब को अलग अलग जगह जाना है और हमारा सहयोग करना है, सबको क्लाईंट की शाखाएँ दे दी गईं। पूरा बॉम्बे जैसे मेरी नजरों के सामने ही था, नाम पुकारे जा रहे थे और सभी लोग अपने नाम आने का इंतजार करने के बाद अपने समूह में चले जाते और कब निकलना है और कैसे काम करना है, उस पर चर्चा करने लगते, यह सब चीजें हमारे लिये बिल्कुल नई थीं, पर हम हरेक चीज का मजा ले रहे थे और समझने की कोशिश कर रहे थे। फ़िर एक एक समूह डायरेक्टर के पास जाता और उनसे मंत्रणा करने के बाद, सबको मिलकर निकल जाता।
इतनी दूर परदेस से आये इतने सारे लोग अपनी जिंदगी की शुरुआत दूर देस बॉम्बे में कर रहे थे, हम भी उनमें से एक थे, ऐसे ही पता नहीं कितने लोग अपने रंगीन सपने लिये बॉम्बे आ चुके होंगे और आज भी आ रहे हैं, मुंबई नगरी में है ही इतना आकर्षण, कि सबको अपनी ओर आकर्षित कर लेती है और अपनी संस्कृति में समाहित कर लेती है।
जारी…
बिलकुल सही कहा आपने मोहमयी ही नहीं शरण स्थली भी है मुंबई
रोचक..
एक हफ्ते इन्टरनेट से बाहर रहने की ऐसी सजा?
तीन चार पोस्ट्स आपके नहीं पढ़े हुए हैं…
सब पोस्ट एक साथ पढ़ के वापस आता हूँ कमेन्ट करने 🙂
ये पोस्ट भी बिना पढ़े जा रहा हूँ
आप 12 करोड़ देख स्वयं को धन्य समझ रहे हैं, लोग 12 सौ करोड़ हजम कर भी डकार नहीं लेते हैं।
रोचकता बरकारार है। जारी रखें किन्तु ज्यादा अंतराल न रखें।
अरे बाबा कुछ गडबड तो नही, मुझे तो दाल मे काला लगता हे , चलो सब ठीक ही होगा, अगर यह लोग गलत होते तो आज यह पोस्ट आप केसे लिखते:) लेकिन सारा लेख मजे दार जी, रोचक. धन्यवाद