आदतन आज सुबह नित्यकर्म के पहले घर का दरवाजा खोला, अखबार के लिये और जैसा कि रोज होता है अखबार नहीं आया। आदत है तब भी रोज देखने की आत्मसंतुष्टि के लिये, तो छज्जे पर थोड़ा सा बाहर निकल कर देख लिया, वहाँ किसी के सिसक सिसक कर रोने की आवाज आ रही थी, थोड़ा ध्यान से देखा तो वहीं बिजली के खंभे के पास तिरंगे में लिपटा गणतंत्र था जो कि शायद कोहरा घना होने का इंतजार कर रहा था।
मैं चुपचाप अंदर अपने घर में आ गया, कि कहीं गणतंत्र मेरे पास आकर मेरे पास आकर रोना ना सुनाना शुरु कर दे, मेरी घिग्घी बँधी हुई है, और गणतंत्र के सिसक सिसक कर रोने के कारणों के बारे में सोच रहा हूँ, अगर आप को पता चले कि भारत का बूढ़ा गणतंत्र क्यों सिसक सिसक कर रो रहा है.. तो मुझे अवश्य बताईये।
वह सिसक मेरे स्वप्न में रह रह कर आती है।
जबाव सबके पास है लेकिन कोई कुछ कर नहीं सकता, जो कर सकता है वो करेगा नहीं.. इसलिये रुदन के सिवा कोई इलाज नहीं…
हालात तो ऐसे ही हैं लेकिन चले भी जा रहे हैं ।
गणतंत्र दिवस की शुभकामनायें ।
अभी गणतंत्र बूढा नहीं हुआ …फिर भी सिसक रहा है …उसकी जवानी में ही बुढापा आ गया है …बहुत सी बीमारियों से घिरा हुआ है ..इलाज नहीं हो पा रहा …या यूँ कहें की कोई इलाज करना ही नहीं चाहता …
गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनायें..
…इसलिए कि इसके बेटों ने ही इसे घर से अपमानित करके कर निकाल दिया है
इस का जबाब तो हमारे नेताओ को ही पता होगा जो इस की पगडी उतार कर सरे आम इसे बदनाम कर दिया
पता नहीं क्या होगा इस देश का ….