कुछ दिन पहले समान लेने हॉपयर सिटी गये थे (हर पाँचवें दिन जाना ही पड़ता है), तो हमारी पॉपकार्न की विशेषत: ढूँढ़ थी क्योंकि बाहर के पॉपकार्न हमें पसंद नहीं, और घर में बनाने के लिये मकई के दाने नहीं मिले, तो सोचा कि चलो वो कूकर वाले पॉपकार्न ले लिये जायें, पता चला कि अब कूकर वाले कम, और माइक्रोवेव वाले पॉपकार्न ज्यादा चलते हैं, हमें बहुत आश्चर्य हुआ कि ये माइक्रोवेव वाले पॉपकार्न कैसे होते हैं।
वैसे माइक्रोवेव भी हमने यहाँ बैंगलुरु में आकर मजबूरी में लिया है (यह कहानी फ़िर कभी)। अब दस रुपये में और क्या भगवान चाहिये ? दस रुपये में आज की महँगाई में अच्छे बटर वाले पॉपकार्न। बस पोलिथीन फ़ाड़ी (जैसे फ़टा पोस्टर निकला हीरो), और एक सफ़ेद रंग का लिफ़ाफ़ा निकला, जिसमें पॉपकार्न थे एक तरफ़ से पीले रंग का कुछ कागज सा चिपका था और उसमें लिखा था कि यह माइक्रोवेव में नीचे की तरफ़ रखें, और माइक्रो पर करके २ मिनिट रखें बस आपके पॉपकार्न तैयार, वह लिफ़ाफ़ा पूरी तरह से हवा से फ़ूल चुका था। फ़िर उस लिफ़ाफ़े को फ़ाड़कर पॉपकार्न खाये तो अहा! भाईसाब्ब.. मजा आ गया।
फ़िर सोचा कि जिसने इतनी आरएनडी (R&D) करी होगी अगले ने क्या दिमाग पाया होगा कि उसने कितनी सुविधाजनक चीज हम आलसियों के लिये बनाई है, कि बस पोलिथीन खोलो और दो मिनिट में माइक्रोवेव में रखने पर ही चरने के लिये पॉपकार्न तैयार।
अभी तक याद है कि अपनी जवानी के दिनों में जब हम कार्तिक मेले में जाते थे तो २ रुपये में बहुत सारे पॉपकार्न मिलते थे, और हम कवि सम्मेलन सुनते समय २ रुपये वाले ५-६ पैकेट साथ में ही लेकर बैठते थे, कि शायद किसी कवि को हमारे पॉपकार्न ही पसंद आ जाये और हमें स्टेज पर बुला ले, पर कभी ऐसा हुआ नहीं ! 🙁
खैर शुरु हो जाओ आलसियों और पॉपकार्न के दीवानों केवल २ मिनिट में अपनी हसरतें पूरी करें और यूट्यूब पर कवि सम्मेलन सुनते हुए पॉपकार्न खायें।
यह आलेख इस बात का सबूत है कि आपकी निगहबान आंखों से न तो जीवन के उत्सव और उल्लास ओझल हैं और न ही जीवन के खुरदुरे यथार्थ।
वाह जी, वेसे यह वाले पाप कार्न हमे पसंद नही, पता नही कोन कोन सी दवा मिला कर बनाये जाते होंगे, हमारे पास एक छोटी सी मशीन हे, जिस मे आम मक्की के दाने डालो ओर स्विच आन करो एक मिंट मे आप के सामने ताजे ताजे पापकार्न हाजिर जेसे अभी भट्टी से भुना कर लाये हो, कभी उस की विडियो दुंगा ब्लाग पर, धन्यवाद
हम आलसी तो पिछले 7 साल से निपटा रहे हैं पॉपकार्न।
यह भी अच्छी रही,आभार.
हम तो आज कल एक्ट ई वालों पर महेरबान है … बाप बेटा दोनों मिल कर खाते है और आहा क्या आनंद आता है … जय हो !
पर हाँ अपने तो भईया वह कुकर वाले है ! मैनपुरी में चचा और बहन जी के बीच की राजनैतिक लड़ाई के चक्कर में बत्ती इतनी कम मिलती है कि मिक्रोवेव ले भी आये तो बेचारा अपनी किस्मत को रोयेगा !
लगा दिए न लहरा माइक्रो वेव ओवेन खरीदने का !
एक्ट ई = ACT II
अगली बार घर लौटें तो रतलाम तक आइएगा और ढेर सारा 'ज्ञान-दान' कर जाइएगा।
अच्छी बात ! आभार
माइक्रोवेव पर माइक्रो पोस्ट..
कार्तिक मेला, कवि सम्मलेन
एसा लग रहा है मानो उज्जैन की बात चल रही है