आजकल बिगबोस जैसे रियलिटी कार्यक्रमों और घटिया सीरियलों के बीच कहीं भी हिन्दी साहित्य की वार्ताएँ सुनाई ही नहीं देती हैं, निजी चैनल तो बस केवल घटिया मसाला ही बेचने में लगे हैं। कोई भी चैनल हिन्दी साहित्य पर वार्ताएँ नहीं देता।
हिन्दी साहित्य वार्ता हमें मिली लोकसभा चैनल पर, कार्यक्रम का नाम है “साहित्य संसार”, कल वार्ता थी, प्रसिद्ध कवि शमशेर बहादुर सिंह की शती पर, वैसे तो २०११ बहुत से कवियों की शती के साथ आया है, जैसे कि एक और नाम मुझे याद है “अज्ञेय”। शमशेर कवि के रुप में प्रसिद्ध हैं, परंतु उन्होंने गद्य भी खूब लिखा था।
कार्यक्रम में पहले दिल्ली में हुई शमशेर की शती पर हुआ कार्यक्रम की झलकियाँ दिखाईं, जिसमें डाईस पर केवल दो ही माईक लगे दिखे एक दूरदर्शन का और दूसरा लोकसभा टीवी का, और अगर यही कार्यक्रम किसी फ़िल्म स्टार का होता तो निजी चैनलों के माईकों की भीड़ में बेचारे ये दो माईक कहीं घूम ही जाते।
सबसे पहले हमने सुना अशोक बाजपेयी को और फ़िर ओर भी साहित्यकार आये कवि शमशेर की चर्चा करने, कवि व्योमेश शुक्ल इत्यादि।
स्टूडियो में चर्चा के लिये आये थे आलोचक पुरुषोत्तम अग्रवाल जो कि यूपीएससी के सदस्य भी हैं, उन्होंने वार्ता में बताया कि बचपन में उन्होंने कवि शमशेर की एलिस इन वन्डरलेंड की अनुवादित कृति पढ़ी थी, और अनुवादित कृति मूल कृति से कहीं ज्यादा मार्मिक थी।
कल उनकी चर्चा में बहुत से साहित्यकारों के नाम बहुत दिनों बाद सुने और दिनभर की थकान क्षण भर में चली गई। पर हिन्दी का दर्द अब भी दिल में है।
शमशेर जी की भाव प्रवणता अनुवादों को और प्रभावी बना देती है।
बहुत अच्छा लगा यह पोस्ट पढकर।
सही है कि अब किसी चैनल पर साहित्यकारों के बारे में विमर्श नहीं दिखाया जाता।
शमशेर जी के अलावा केदारनाथ अग्रवाल और बाबा नागार्जुन की भी जन्मशती का साल है यह।
आपको जो दर्द महसूस हो रहा है, वही मुझे भी होता है, पर उसके लिए क्या किया जा सकता है? पता नहीं 🙁
इन्टरनेट और फेसबुक ने सबको बुक कर दिया..
यह काले अग्रेज जिन्हे हमी लोगो ने आगे बढावा दिया हे अगर हम इन के प्रोगारम ना देखे तो केसे यह आगे बढते हे, हम ही सब से ज्यादा कसूर बार हे, अपने बच्चो को आग्रेजी के स्कूलो मे भेजते हे, इन बच्चो को हिन्दी आती ही नही या आती हे तो टूटी फ़ूटी, यह बच्चे भी तो हमारे तुम्हारे ही हे, पहल हमीं को करनी हे तभी हम आगे बढ सकेगे, वरना हमेशा आग्रेजी को कोसे गे, हिन्दी हम मे से कितने बोलते हे शान से, क्या हिन्दी बोलने बाले किसी ने भी आग्रेजी बोलने वाले को डांटा हे मेरी तरह से? नही क्योकि हमे लगता हे सामने वाला हमारे बारे मे क्या सोचेगा, कि इसे अग्रेजी नही आती, इस लिये हिन्दी की बात कर रहा हे….ओर यही शर्म हमे हिन्दी को आगे बढाने से रोकती हे, भाषा कोई बुरी नही बहुत सी भाषा सीखे लेकिन आपसी बोल चाल मे अपनी मा्त भुमि की भाषा ही बोले
अच्छा लगा यह पोस्ट पढकर |