सब लोग कहते हैं ना कि ऐश करेंगे पर क्या किसी को पता है कि ऐश करना होता क्या है? नहीं तो चलो हम बताते हैं, हमें हमारे महाविद्यालय के प्रोफ़ेसर साहब ने बतायी थी।
ऐश जो सिगरेट के आगे राख होती है जिसे हम कश लेने के बाद झटक देते हैं वह कहलाती है ऐश, समझ गये !! कि ऐश किसे कहते हैं, तभी तो ऐश को जिसमें रखा जाता है उसे कहते हैं ऐश ट्रे।
जैसे सिगरेट जलती है तो जहाँ जलती है उसका तापमान लगभग १०० डिग्री होता है, और अगर उसे हाथ से पकड़ लेंगे तो निश्चित ही हाथ जल जायेगा, और फ़िल्टर से जहाँ से सिगरेट में कश मारते हैं, वहाँ उस गर्मी का अहसास नहीं होता है क्योंकि उस ऐश और फ़िल्टर के दरमियान इतना फ़ासला होता है, कि उस सफ़र को पूरा करने में आदमी को अपनी जिंदगी खर्च करना पड़ती है। शायद ही इतना महँगा सफ़र कोई ओर होता होगा, और शायद ही हम अपनी जिंदगी की गाड़ी को पूरी रफ़्तार से अपनी मौत की तरफ़ ले जाने की इच्छा रखते हैं, परंतु जो शौक रखते हैं वे मंजिलों की परवाह नहीं करते हैं, वे तो केवल सफ़र करते हैं।
जब सिगरेट खत्म होती है तब तक उसका धुआँ शरीर की नस नस में अंदर फ़ेफ़ड़ों के अंदर बहुत अंदर तक घुस चुका होता है, साथ ही चाय की चुस्की या सिगरेट खत्म होने के बाद एकदम पानी पीते हैं, तो बस हम खुद ही उस रफ़्तार को और बड़ा लेते हैं जिसकी मंजिल मौत है। सिगरेट अधिकतर लोग सभ्य तरीके से पीते हैं पर जो वाकई नशा करते हैं उन्हें तो पता ही नहीं लगता कि कब फ़िल्टर आ गया और कब उसका फ़िल्टर भी जल गया और उसका धुआँ भी वे पी गये।
जो लोग सिगरेट पीते हैं उन्हें पीने का मकसद पता नहीं होता है और साथ ही अपनी जिंदगी की मंजिलों का भी, क्योंकि उन्हें अपनी अंतिम मंजिल का भी पता नहीं होता जो कि मौत होती है। बस वे तो केवल खोखली शान में जिंदगी का कश बनाकर मौत को पिये जाते हैं।
हां तो ये होती है ऐश। अब पता चला।
indu puri goswami – गुरुदेव ! आपके चरण कहाँ है? क्यों लोगों के पेट पर लात मारने पर तुले बैठे हो?कितने लोगों को रोजगार मिलता है.सिगरेट,बीडी….तम्बाकू की खेती,तेंदू पत्ता,फिल्टर भी कोई कम्पनी अलग बना कर देती होगी सिगरेट वालो को….सोचो सोचो…और फिर डॉक्टर…..कफन वाला,लकड़ी/ताबूत वाला….बारहवी,तेरहवी पर राशन वाला ,रसोइया,कपड़ेवाला,बर्तन वाला (राजस्थान में कोई पैदा हो,या शादी करे या मरे बर्तन जरूर बांटे जाते हैं और रिश्तेदारों को कपड़े जरूर किये जाते हैं ) ….जाने कितने लोगों की कमी होती है.और एक आप हो….अरे पीने दो ,जितना चाहे पीने दो.
हा हा हा
बनार्ड शा के शब्दों में, सिगरेट के एक ओर आग व धुआं और दूसरी ओर एक मुर्ख आदमी होता है। …..
मारक व्यंग्य लिखा है आपने, पर पीने वाले पीते रहेंगे उनको कोई नहीं सुधार सकता
पाठकों पर अत्याचार ना करें ब्लोगर
इतनी गर्मी में नहीं जी पाते हैं तभी तो ऐश नहीं कर पाते हैं।
आधे लोग तो फैशनपरस्ती में इस मौत के सामान को ओठों से लगाये हैं..सटीक आलेख.
ऐश वो चीज़ है…… जिसे …करने के बाद छोड़ दिया जाता है….
रंगों का त्यौहार बहुत मुबारक हो आपको और आपके परिवार को………
आप लाख जतन करिये पीने वाले नहीं छोड़ेंगे.
होली की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!
अरे क्यो डराते हो भाई… हम तो सिगरेट पीनी तो दुर पीने वाले को भी पास नही फ़टकने देते…
बहुत सटीक.
होली पर्व की घणी रामराम.
आप को होली की हार्दिक शुभकामनाएं । ठाकुरजी श्रीराधामुकुंदबिहारी आप के जीवन में अपनी कृपा का रंग हमेशा बरसाते रहें।
बिलकुल सही कहा। पूरे एक वर्ष तक हम भी यह ऐश कर चुके हैं।
bhai hum tao bas yahi kahna chahte hain ki en sab ko koi aur kaam nahi hai kya