जीवन कभी कभी तूफ़ानी दरिया लगता है और कभी बिल्कुल शुन्यहीन चुप्पी के साथ थमा हुआ दरिया लगता है। कभी लहरें आती हैं, कभी तूफ़ान आते हैं, कभी सन्नाटे आते हैं, कभी वीरानी आती है। जीवन के ये अजीब रंग सात रंगों से भी अजीब हैं, कौन से ये रंग हैं, कहाँ बनते हैं ये रंग, जो मौन भी हैं, जो मुखर भी हैं।
वीरानों को ढूँढता हूँ, वीराने खुद ही पास आ जाते हैं, क्या मैं वीराने में रहता हूँ, यह उत्सव वीरानों में क्यों नहीं होते, ये उत्सव केवल तूफ़ानों में क्यों होते हैं, ज्यादा रंग केवल उत्सव में ही क्यों होते हैं, और वीराने में गहरे रंग क्यों ?
क्या जीवन की कहानी है, क्या अंत की रवानी है, बस सब अब प्रपंच लगने लगा है, जीवन की गहराईयों में झांक रहे हैं, जहाँ तूफ़ान के बाद की शांति हो, जहाँ सन्नाटा और वीराना हो, और दो बातें लिखने के लिये अमिट स्याही हो –
लम्हों में जिंदगी सिमट कर रह गयी है
बूँदें पानी की, बहता दरिया सी लगती हैं
आग के लिये तिनके कम पड़ने लगे हैं
साँसे थामे रखो, अब ये उखड़ने लगी हैं ।
जीवन एक अनवरत चलने वाली कहानी है जहाँ पर घटनाएँ और विचार सदा बदलते रहते है और हम किसी एक निष्कर्ष पर नहीं पहुँच सकते जीवन भर ..!
भावों का ज्वार-भाटा.
तब भी आदमी चैन से नहीं बैठता..
दिल ऐसे ही थामे रहिये सन्नाटे के बाद के तूफ़ान की आहट है ….शश!
🙂
जीवन का कैनवास कुछ ऐसा ही है…वीरानों में बस उदासी का गहरा रंग होता है…
मुझे नहीं ज्ञात था कि अकेले रहने के इतने सार्थक निष्कर्ष हो सकते हैं।
भावों का ज्वार-भाटा|धन्यवाद|
अति उत्तम ,अति सुन्दर और ज्ञान वर्धक है आपका ब्लाग
बस कमी यही रह गई की आप का ब्लॉग पे मैं पहले क्यों नहीं आया अपने बहुत सार्धक पोस्ट की है इस के लिए अप्प धन्यवाद् के अधिकारी है
और ह़ा आपसे अनुरोध है की कभी हमारे जेसे ब्लागेर को भी अपने मतों और अपने विचारो से अवगत करवाए और आप मेरे ब्लाग के लिए अपना कीमती वक़त निकले
दिनेश पारीक
http://kuchtumkahokuchmekahu.blogspot.com/
क्या बात है भिया…बहुत खूबसूरत.