इकोनोमिक टॉइम्स (Economics Times) और टॉइम्स ऑफ़ इंडिया (Times of India) बहुत सारे लोग पढ़ते होंगे। सोमवार को इकोनोमिक टॉइम्स में वेल्थ (Wealth) और ऐसे ही टॉइम्स ऑफ़ इंडिया (Times of India) में भी आता है, जिसमें वित्तीय प्रबंधन के बारे में बताया जाता है, पिछले दो महीनों से लगातार इन दोनों अखबारों को पढ़ रहा हूँ, तो देखा कि वित्तीय प्रबंधन पर लिखी गई सारी सामग्री वित्तीय ब्लॉगों से उठायी गई है, और ब्लॉगों पर लिखी गई सामग्री को फ़िर से नये रूप से लिखकर पाठकों को परोसा गया है।
अखबार को सोचना चाहिये कि पाठक वर्ग बहुत समझदार हो गया है, और अगर उनके लेखक अपनी रिसर्च और अपने विश्लेषण के साथ नहीं लिख सकते तो उनकी जगह ब्लॉगरों को ही लेखक के तौर पर रख लेना चाहिये। शायद अखबार के मालिकों और उनके संपादकों को यह बात पता नहीं हो।
पर यह कितना सही है कि मेहनत किसी और ने की और उसके दम पर इन अखबार के लेखक अपनी रोजीरोटी चलायें। कहानी को थोड़ा बहुत बदल दिया जाता है, पर जो सार होता है वह वही होता है जो कि असली लेख में होता है।
जो पाठक वित्तीय ब्लॉग पढ़ते होंगे, वे इसे एकदम समझ जायेंगे। इस बारे में मेरी चैटिंग भी हुई एक वित्तीय ब्लॉगर से तो उनका कहना था कि “ब्लॉगर क्या करेगा, ये तो अखबार को सोचना चाहिये, विषय कोई मेरी उत्पत्ति तो है नहीं, कोई भी लिख सकता है, बस मेरी ही पोस्ट को अलग रूप से लिख देया है”।
कुछ दिन पहले मेरी बात एक वित्तीय विशेषज्ञ और वित्तीय अंतर्जाल चलाने वाले मित्र से हो रही थी, उनसे भी यही चर्चा हुई तो वो बोले कि उन्होंने मेरे ब्लॉग कल्पतरू पर जो लेख पढ़े थे और जिस तरह से लिखा था, बिल्कुल उसी तरह से अखबार ने लिखा था, और आपकी याद आ गई। तो मैंने उनसे कहा कि ब्लॉगर कर ही क्या सकता है, यह तो इन बेशरम अखबारों को सोचना चाहिये, और उन लेखकों को जो चुराई गई सामग्री से अपनी वाही वाही कर रहे हैं।
पहले बिल्कुल मन नहीं था इस विषय पर पोस्ट लिखने का परंतु जब मेरी कई लोगों से बात हुई तो लगा कि कहीं से शुरूआत तो करनी ही होगी, नहीं तो न पाठक को पता चलेगा और ना ही अखबारों के मालिकों और संपादकों को, तो यह पोस्ट लिखी गई है उन अखबारों के लिये जो चुराई हुई सामग्री लिख रहे हैं और उनको पता रहना चाहिये कि पाठक प्रबुद्ध है और जागरूक भी।
इस प्रकार के टाईवालों की दुनिया में research शब्द बहुत संभ्रांत बताया जाता है ….माने, हींग लगे न फिटकरी, … 'मैंने कुछ नहीं किया बस दोबारा ढूंढा है वर्ना पहले ही यह वहां था'.. इसी को रिसर्च कहते हैं ये पट्ठे…
भई, बड़े लोगों को तो ऐसा नहीं करना चाहिये।
अखबार वाले दोनों काम करते है अपने लेख में ब्लॉग से सामग्री चुरा कर डाल देते है तो ब्लोगर के नाम के साथ बिना उससे पूछे उसकी पोस्ट अखबार में मुफ्त में छाप देते है और उसमे अपनी इच्छा से कुछ भी जोड़ देते है जो ब्लोगर ने लिखा ही नहीं है | ये काम वो कई ब्लोगरो के साथ कर चुके है हल में मेरी पोस्ट का भी यही हल किया था |
कामचोरी की लत लग गई है मीडियाकर्मियों को भी…बौद्धिक संपदा अधिकार का मामला बन सकता है यदि ठीक से पड़ताल की जाए तो…
विरोध जताया जाना चाहिए.यहाँ किसी शायर की गज़ल की एक पंक्ति को अपने अनुसार लिखने पर साहित्यिक चोरी का इल्जाम लगा कर हंगामा किया जाता है.फिर इन ऐसी हरकतों को करने वालों को कोई कुछ क्यों नहीं कहता.?
गलत बात! पर कैसे रुके यह बेइमानी?