“बच्चे मन के सच्चे सारे जग के राजदुलारे, ये वो नन्हे फ़ूल हैं जो भगवान को लगते प्यारे”, बच्चों के ऊपर लिखा गया बहुत पुराना गीत याद आ गया । जिसमें उनके मन को भी बताया गया है कि बच्चे मन के सच्चे होते हैं और उनका मन दर्पण की तरह साफ़ होता है कोई कपट नहीं कोई लालच नहीं।
कल फ़िल्म “हरे कृष्णा हरे राम” देख रहा था तो आखिरी में जैनिस उर्फ़ जसबीर (जीनत अमान) का संवाद देवानंद से दिखाया गया है, जिसमें जैनिस का एक संवाद कि “मुझे घर की जगह होस्टल मिला”। बहुत गहरे तक उतर गया कि आखिर होस्टल क्यूँ ?
क्या होस्टल में बच्चे ज्यादा पढ़ते हैं या माता पिता यह सोचकर भेज देते हैं कि कम से कम उनकी तरफ़ से पढ़ाई लिखाई करवाने की जिम्मेदारी खत्म, केवल फ़ीस भरी और बोर्डिंग में डाल दिया। होस्टल या बोर्डिंग में डालने की और भी कोई वजह हो सकती है। खैर मुझे तो समझ में नहीं आती केवल इसके कि बच्चे जो बोर्डिंग में रहते हैं, वो बचपन से ही भला बुरा समझने लगते हैं, और जो घर में रहते हैं वे धीरे धीरे जिंदगी के अनुभवों से सीखते हैं।
बोर्डिंग में रहने वाले बच्चों का जीवन बिल्कुल संयमित होता है, समय पर सारे कार्य करने होते हैं और घर पर रहने वाले बच्चों के लिये आजादी रहती है वे कुछ भी कर सकते हैं, वे दीन दुनिया और सामाजिकता में अपने आप को लबालब पाते हैं, और बोर्डिंग में रहने वाले बच्चों को यह सब तो नहीं मिल पाता पर जो हम उम्र बच्चों का साथ और अपने ही कक्षा के बच्चों से मस्ती करने को मिलती है वो घर वाले बच्चों को नहीं मिल पाती।
हमारे एक परिचित हैं उन्होंने एक प्रसिद्ध स्कूल में अपने बच्चे को डालने की सोची कि बोर्डिंग भी है और फ़ीस भी बहुत थी, स्कूल भी काफ़ी अच्छा था, परंतु अंतिम समय पर माता पिता अपने दिल के हाथों मजबूर हो गये और बच्चे को बोर्डिंग में नहीं डाला।
तो क्या बोर्डिंग में डालने वाले माता पिता अपने बच्चों से प्यार नहीं करते ? ऐसा तो कतई नहीं है, और मैं भी इस बात से सहमत नहीं हूँ परंतु ऐसी क्या चीज है जो माता पिता को बोर्डिंग में डालने पर मजबूर करती है ? विश्लेषण की आवश्यकता है ?
मैं स्वयं हॉस्टल में पढ़ा हूँ पर एक बार विश्लेषण आवश्यक है।
बचपन मे तो नही(प्राथमिक और माध्यमिक पाठशालाओ मे नही), उसके बाद सोचा जा सकता है!
हास्टेल के साथ जहां भावनात्मक मुद्दे हैं वहीं दूसरे भी पहलू हैं… सबके अपने-अपने तर्क हैं…
सब पैसों के पीछे पागल है, बच्चे की परवाह नही,
ये बज्ज की टिप्पणियाँ हैं –
meenakshi dhanwantri – बच्चों को हॉस्टल में डालने के कई कारण हो सकते हैं लेकिन यह कदापि नहीं कि माता पिता अपने बच्चों से प्यार नहीं करते…दुबई डीपीएस स्कूल की तरफ से एक बच्ची और उसके मातापिता को फोन काउंसलिंग द्वारा बात करने का काम सौंपा गया …एक साल फोन पर बातचीत करने के बाद पति पत्नी ने फैंसला किया कि इकलौती बच्ची को घर के अशांत और क्लेशपूर्ण माहौल से निकाल कर हॉस्टल भेजना ज्यादा सही रहेगा…पति पत्नी में आज भी अनबन है लेकिन बेटी को कुछ राहत मिली..
हमारे बीमार बेटे ने हॉस्टल में छह महीने अपनी मर्ज़ी से गुज़ारे थे क्योकि वह नहीं चाहता था कि उसके कारण घर बिखरे हालाँकि बाद में हमें दुबई जाना ही पड़ा…
बच्चों को अगर हॉस्टल जाने के सकारात्मक कारण दिए जाएँ और समय समय पर उनके मन की बात सुनी जाए तो कोई कारण नहीं दुखी होने का….किसी भी कारणवश हॉस्टल के लिए छठी या आठवीं कक्षा के बाद भेजना ही अच्छा रहता है…11:40 am
archana chaoji – mai khud ek warden rahi hu…..mere paas nursery se lekar 12th tak ke bachhe rahe …sabaki apani kahani ……..bahut se kaaran hai ….vistrat fir kabhi….11:51 am
archana chaoji – aur haa mata-pita bahut pyaar karate hai …hameshaa bhala hi chahte hai …par kai majaburiya aade aa jati hai ….11:53 am
chandan pandey – There may be some exceptions. There may be some need to put children in hostel but I have seen very few positive results. I have spent 16 good years of my life in different schools and hostel, but I have missed alot.12:18 pmDeleteReport spam
Raj Bhatia – लोग डालते तो हे, लेकिन मेरे ख्याल मे बिलकुल नही डालना चाहिये १२ वी कलास तक, फ़िर बच्चा समझ दार हो जाता हे, उस के बाद डर नही, उस से पहले बच्चा अपने आप को अकेला महसुस करता हे, ओर मां बाप के प्यार से बंचित रहता हे, ओर कोई कारण नही, लेकिन कई लोग बच्चे कि जिन्दगी बनाना चाहते हे, ओर अपनी आजादी भी… अपना अपना ख्याल, अपने अपने विचार10:38 pm
१९८० के दशक में, अपने बेटे को देहरादून में, हिन्दुस्तान के जाने माने स्कूल में दाखिला के लिये ले गया था। यह बोर्डिंग स्कूल था और दाखिला छटवीं कक्षा में होना था।
दाखिला के बाद वहां के प्रधानाचार्य ने कहा कि उनका स्कूल भारत का सबसे अच्छा स्कूल उन बच्चों के लिये है जिनके माता पिता के पास अपने बच्चों के लिये समय नहीं है।
यह सुन कर मैं अपने बेटे को वापस ले आया बारवीं तक वह हमारे पास रहा। फिर आई आई टी कानपुर चला गया। अब बाहर विदेश में है।
मैं अपने दोस्तों को यह किस्सा अक्सर सुनाता हूं। मेरे विचार में बचपन में उन्हें अपने पास रखना चाहिये ताकि उन्हें आपके संस्कार मिल सकें। फिर बाद में तो वह बाहर जा सकते हैं तब तो वे हॉस्टल में रहेंगे।
इस मामले में और ऐसे प्रत्येक मामले में साधारणीकरण विवेक संगत नहीं।
Ni bache ko Choti age me hostel ni dalna chahiye …. Mene ye Saha h mere khud k opinion se btau To ye SHi ni h Jis age me bache ko parents k love or care ki bot zrurt hoti h . Wo bot masum hote h une kha tk ho ske bachpan me apne se dur na kre …
Aap kis class se hostel me gaye