जब मैंने पहली बार प्रगति मैदान और राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के बाहर सिगरेट पीती हुई लड़कियों को देखा था, बड़ा अजीब लगा था कि लड़कियाँ भी सिगरेट पीती हैं। यह बात लगभग १४-१५ वर्ष पुरानी है। अब जब आज अपने आसपास देखता हूँ तो स्थितियाँ बहुत ही तेजी से बदलती जा रही हैं।
अधिकतर स्मोकिंग जोन लंच के बाद भरेपूरे पाये जाते हैं, और इतने खचाखच होते हैं कि पैर रखने की जगह नहीं होती, अगर वहाँ कोई पैसिव स्मोकर हो तो पैसिव रहने से अच्छा है कि उसे खुद स्मोक शुरु कर देना चाहिये।
लगभग पिछले ६ वर्षों से महानगरीय स्वरूप देख रहा हूँ। पहले दिल्ली में जहाँ कनॉट प्लेस, करोल बाग, इंडिया गेट हो या लाजपत नगर, डिफ़ेंस कॉलोनी, साऊथ एक्स. कोई भी जगह ले लो, लड़कियाँ समूह में खड़ी देख जायेंगी और उनको मजे से छल्ले उड़ाते हुए देखा जा सकता है।
वैसे ही मुंबई में हालात ऐसे हैं कि वहाँ पर तो जहाँ मेरा कार्यालय था वहाँ लड़कों से ज्यादा स्मोकर लड़कियाँ थीं, और अगर समूह भी होते तो लड़कियाँ ज्यादा और लड़के कम और शेयर करके सिगरेट पीते हुए देखा जा सकता है। लड़कियाँ यहाँ शराब की दुकान से शराब भी खरीदते हुए देखी जा सकती हैं।
अब आये बैंगलोर तो यहाँ तो ७०% जनता जवान है और उनकी जवानियों की अंगड़ाईयाँ यत्र तत्र सर्वत्र देखी जा सकती है, अभी जहाँ मेरा कार्यालय है वहाँ दोपहर में स्थिती देखने लायक होती है, सिक्योरिटी वाले बेचारे स्मोकर्स को चेताते चेताते परेशान हो जाते हैं, कि ये कृप्या यहाँ स्मोक न करें यह वर्जित क्षैत्र है, परंतु मजाल कि कोई सुन ले, और एक बात कि बैंगलोर में लगभग ७०% लोग कन्नड़ भाषा नहीं जानते क्योंकि वे सब उत्तर भारत से हैं। मैंने यहाँ बहुत सी लड़कियाँ देखी हैं जो कि चैन स्मोकर्स हैं। और अधिकतर स्मोकर्स लड़कियाँ वही हैं जो कि घर से बाहर रहती हैं।
अभी थोड़े दिन पहले ही शुक्रवार को देखा जब हम हायपर सिटी में हमारे आगे कुछ लड़कियाँ बिलिंग करवा रही थीं, व्हिस्की रम और वोद्का ले जा रही थीं और पेप्सी और कंडोम्स की बिलिंग करवा रही थीं, हमने अपनी घरवाली से कहा देखो इन लड़कियों ने सप्ताहांत पर रिलेक्स होने का पूरा इंतजाम कर लिया है, उनको भी कोई फ़र्क नहीं पड़ा क्योंकि महानगर में रहकर सोच बदल ही जाती है, खैर हमें भी अपनी सोच बदलनी होगी।
आखिर लड़कियाँ भी कमा रही हैं आजाद हैं, स्वतंत्र हैं, घर से बाहर रहते हुए वे अपनी स्वतंत्रता का पूरा फ़ायदा उठाती हैं। यह आधुनिक सोच है और हम तो इसे मान चुके हैं कि जिसे जैसा रहना है वैसा रहे इसलिये अब कहीं कोई लड़की सिगरेट या शराब पीती हुई दिखती भी है तो हमें सामान्य जैसा ही लगता है, समाज को अब बदलना चाहिये वक्त आ गया है कि समाज को यह सच भी स्वीकार करना चाहिये कि लड़कियाँ भी लड़कों की तरह ही स्वतंत्र हैं और उनके यह अधिकार हैं अगर लड़कों के पास सारे अधिकार हैं तो। क्या हमें अपनी पुरातन मानसिकता की बेढ़ी से बाहर नहीं निकलना होगा ?
जब लड़के पी सकते हैं तो लड़कियां क्यों नहीं? ठीक है, इस बात से मैं सहमत हूँ.
लेकिन क्या दुनिया सिगरेट और शराब के बिना नहीं चल सकती? इन्हें सभी के लिए वर्जित क्यों नहीं कर दिया जाता!?
आजादी..ज़रूर मिलनी चाहिए…सभी को..लेकिन आजादी का मतलब ये नहीं की हम कुछ भी करें(मैंने आज तक नशा नहीं किया और मुझे इस पर गर्व है और मैं भी चाहता हूँ की इसे वर्जित कर दिया जाए हम सभी के लिए)…..
बीडी ,गांजा, भांग, एल एस डी, अफीम, हेरोइन, कोकीन क्यों नहीं ? समानता हर क्षेत्र में होना चाहिए !
आज के दौर में किस-किस को रोक सकोगे, आज के बच्चे घर में कुछ घर से बाहर कुछ
nishant kae kament ko mera maan lae
कल तक जिन बुराइयों के लिए पुरुषों को बुरा कहा जाता था यदि हम भी उन्हें ही अपना लें तो फिर बुरा क्या है? इसका अर्थ तो यह हुआ कि धूम्रपान या शराब खराब नहीं है, बस हम महिला होने के कारण नहीं पी पा रहे थे तो अब शुरू कर दिया है। हम पुरुष को सुधार नहीं पाये तो स्वयं ही बिगड़ गए? वाह क्या सोच है?
जो हो रहा है होने दीजिये … समाज को संभालना हमारे बस में नहीं है … बस इतना ख्याल रहें अपना घर बचा रहे … नशा कोई भी हो … कोई भी करें … बुरा ही है … फिर भी सब का अपनी अपनी ज़िन्दगी … अपने अपने तरीके से जीने का आधिकार है !
बुरायी बुरायी है चाहे आदमी हो या औरत। बाकी अजीत गुप्ता जी से सहमत हूँ।
aisa ab sirf mahanagro me hinahi hota,humara shahar jo ek bade kasbe se jyada kuchh nahi tha,achanaq rajdhani ban gaya aur yahan bhi wahi hal hai,nazar jhuka ke nikal jate hain,ab koi dekh ke cigrette fenkta hi nahihai,pehle to bhag jaya karte the?samay ke badalte swarup ko bahut bariki se dekha hai aapne,aur hum bhi dekh rahe hai,shayad paschim ki nakal karne ka garv hume le dubega ek din.
निशांत जी से सहमत हूँ |
रमन्ते तत्र देवता।
इनकी सिगरेटें भी अलग होती हैं लिबर्टी वगैरह उनका नाम होता है
दारू सिगरेट आदि के खुले प्रयोग से पता चलता है कि मेरा देश अपनी फूहड़ संस्कृति से ऊपर उठ कर, अपने से कहीं बेहतर संस्कृतियों में स्वयं को आत्मसात कर रहा है.
यह हम सब के लिए अत्यंत गर्व की बात है.
@अरविन्द जी – लिबर्टी वगैरह का तो पता नहीं, परंतु मैंने तो वही सब ब्रांड पीते देखा है जो कि लड़के पीते हैं, हाँ बस लाईट्स वाली पीती हैं, हार्ड वाली बेचारी झेल नहीं पाती होंगी 🙂
हम तो जिस छोटे कस्बे में रहते हैं वहां हमें लड़कों का शराब, सिगरेट पीना भी अजीब लगता है…
http://mypoemsmyemotions.blogspot.com/2007/08/blog-post.html
मनाई , बंदिश और नियम
जहाँ भी मनाई हों
लड़कियों के जाने की
लड़को के जाने पर
बंदिश लगा दो वहाँ
फिर ना होगा कोई
रेड लाइट एरिया
ना होगी कोई
कॉल गर्ल
ना होगा रेप
ना होगी कोई
नाजायज़ औलाद
होगा एक
साफ सुथरा समाज
जहाँ बराबर होगे
हमारे नियम
हमारे पुत्र , पुत्री
के लिये
kafi pehlae yae kavita likhi thee kal bhi aap ki post par dena chahtee thee
samaaj ko sahii karna haen sahii chalna haen to sab kae liyae niyam aur sajaa ek sii kardae
लड़का या लड़की….कोई फरक नहीं पड़ता…कोशिश यही हो कि इन आदतों से दूर रहा जाये…
लड़का हो या लड़की, स्वतंत्रता के साथ साथ नैतिक जिम्मेदारी भी आती है। सिगरेट शराब और बाकी सब जो आप ने लिखा दोनो के लिए निषिध होना चाहिए। समाज बदला होगा हमारे स्वास्थय संबधी सरोकार तो नहीं बदल जाते।
फ़िलहाल हम सब की तरफ यह दृश्य नही है,वैसे यह एक सामाजिक और कानूनन बुराई है -क्या लड़का-क्या लडकी यह सभी पर लागू है.
कोई भेदभाव नहीं… जिसकी इच्छा हो सब पीये… मजे लेकर पीये…
एक बुराई के लिए समाज से स्वीकृति की इतनी जिद भी क्यों ?
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विलुप्त हो जाएगा इंसान?
कहाँ ले जाएगी, ये लड़कों की चाहत?
समय के साथ सोच बदलना स्वाभाविक है. मर्यादित खुलापन भी स्वागतेय है, लेकिन शराब और सिगरेट पर क्या कहें.
समाज की छोटी छोटी लेकिन गंभीर समस्याओं से जुड़े आपके लेख सोचने पर विवश कर देते हैं…अपने बड़ों को हमेशा यही कहते सुना कि आदतों का गुलाम होना मतलब कि अति हो गई…और अति नुक्सानदायक होती है…
burai to burai hai ……..chahe hum ho ya wo……..
samajik rachna ki behtreen prastuti ke liye hardik badhai
har insaan ko sahi aur galat ka gyan nahi ahsas karana jaruri he to hi wo buri adaton ko chhod payega keval bhashan dene se kuch nahi hota insaan ko scientifically samjaya jaye to wo turant buri aadto ko tyagne ki koshish karega.