आज सीएनबीसी पर यह कार्यक्रम “नौकरी है टैलेन्ट नहीं” देख रहे थे। वाकई सोचने को मजबूर थे कि आज बाजार में नौकरी है परंतु सही स्किल के लोग उपलब्ध नहीं हैं, सबसे पहले मुझे लगता है इसके लिये विद्यालय और महाविद्यालय जिम्मेदार हैं, जहाँ से पढ़ लिखकर ये अनस्किल्ड लोग निकलते हैं।
आज जग प्रतियोगी हो चला है। अगर इस प्रतियोगिता में आना भी है तो भी उसके लिये प्रतियोगी को कम से कम थोड़ा बहुत स्किल्ड होना चाहिये। जो कि पढ़ाई के वातावरण पर निर्भर करता है।
आज इंडस्ट्री में ० से २ वर्ष तक के अनुभव वाले लोगों में स्किल की खासी कमी है, कंपनियों को भी अपने यहाँ काम करने वाले अनस्किल्ड वर्कर्स को प्रशिक्षण पर जोर देना होगा, और इसके लिये कंपनियों को बजट भी रखना होगा।
अगर काम करने वाले स्किल्ड होंगे तो वे ज्यादा अच्छे से और ज्यादा बेहतर तरीके से अपना काम कर पायेंगे, जिससे कंपनी और कंपनी के उपभोक्ताओं को तो सीधे तौर पर फ़ायदा होगा ही और समाज को अप्रत्यक्ष रूप से फ़ायदा होगा।
अच्छे स्किल्ड वर्कर होने से बेहतर कार्य कम लागत में पूर्ण हो पायेगा। इसके लिये आजकल कंपनियाँ आजकल अपने वर्कर्स को स्किल्ड बनाने के लिये विशेष कार्यक्रमों का आयोजन भी कर रही हैं और जिन कंपनियों के लिये आंतरिक रूप से यह संभव नहीं है, वे इस प्रोसेस को आऊटसोर्स कर रही हैं।
खैर कंपनियाँ इस बात पर ध्यान दे रही हैं, यह सभी के लिये अच्छी है।
ट्रेनिंग और ट्यूटरिंग फण्ड करके इस समस्या का काफी समाधान निकाला जा सकता है.
लेकिन यह भी अनुभव आ रहा है कि बुद्धिमान कर्मचारी पीछे धकेल दिए जा रहे हैं और चापलूस टाइप के लोग आगे निकल आए हैं।
कुछ दोष शिक्षा पद्धति का भी है .. सैद्धांतिक ज्ञान की तुलना में व्यावहारिक ज्ञान दिए जाने की आवश्यकता है !!
@सबसे पहले मुझे लगता है इसके लिये विद्यालय और महाविद्यालय जिम्मेदार हैं, जहाँ से पढ़ लिखकर ये अनस्किल्ड लोग निकलते हैं।..
सही कह रहे है भाई जी.
मध्यवर्गीय लोग आज भी बच्चों को डाक्टर इंजीनियर ही बनाने की ज़िद पाले बैठे हैं. वे समय से कुछ नहीं सीखते. इस साल की भेड़चाल देखकर तो यही लगता है कि 100% के बाद अब अगले साल से उन्हीं बच्चों को कालेजों में दाखिला मिला करेगा जिनके नंबर 100% से ज़्यादा हुआ करेंगे…
आज की पढ़ाई के सिक्के चव्वन्नियों सरीखे हैं जिनसे रोजगार के बाज़ार में कुछ नहीं ख़रीदा जा सकता.
शिक्षा व्यवस्था को ही यह खाई पाटनी पड़ेगी।