रोज रात्रि भोजन के पश्चात अपनी घरवाली के साथ एकाध घंटा घूम लेते हैं, जिससे बहुत सारी बातें भी हो जाती हैं, और पान खाना भी हो जाता है।
वैसे तो यहाँ बैंगलोर में हमने जितने जवान लोग भारत के हरेक हिस्से से आये हुए देखे हैं, उतने शायद ही किसी और शहर में होंगे, क्योंकि बैंगलोर आई.टी. हब है। पर यहाँ लोगों को (जवान लोगों) अपनी मर्यादा में ही देखा था, परंतु आज जब हम मैन आई.टी.पी.एल. (ITPL is a IT Park in Bangalore) रोड होते हुए घर की ओर जा रहे थे, तो अचानक एक ऑटो पर नजर पड़ गयी, उस ऑटो में एक जवान जोड़ा बैठा हुआ था और अचानक बात करते करते लड़की लड़के के सीने से चिपट गई। और हमारे मुंह से निकल गया “देखो ऑटो में जवानी उछल रही है”।
बैंगलोर में यह हमारे लिये नया सा है, क्योंकि यहाँ का वातावरण उतना स्वच्छंद नहीं है जितना कि मुंबई का। मुंबई में तो दो जवान दिलों का मिलन कहीं भी हो जाता है, और ऑटो में तो ये समझ लीजिये कि बस यही होता है, अगर जवान जोड़ा है तो, वहाँ यह सब साधारण सा लगता था, परंतु जब यहाँ आये तो थोड़ा कसा हुआ वातावरण पाया, इसलिये आज थोड़ा ठीक नहीं लगा। इसका कारण यह भी हो सकता है कि कभी हमें यह मौका नहीं मिला।
मुंबई में तो ऑटो वाले खुद ही कई बार चिल्लाकर ऐसी सवारियों को दूर कर देते हैं, परंतु जवान दिलों को कोई रोक सका है ?
भाई आप मुम्बई वापस आ जाईए….
बैंगलोर में थोडा संभल के नैनसुख लीजिए….
dev babu बज़ा फ़रमाए हैं
हद हो गई आज के भारत मे बेशर्मी की….
थोडा संभल के
क्या वोल्वो में उछलन नहीं दिखी ?
@ देव भाई – अब तो मन बैंगलोर में ही रमा है, हाल फ़िलहाल मुंबई का कोई प्लान नहीं है।
@ गिरीश जी – ये बजा तो फ़रमाये हैं, पर हम नहीं मान रहे हैं।
@ राज जी – ये बेशर्मी तो लिखने में कम दिखती है मगर जब देखेंगे तब क्या कहेंगे ?
@ पाताली – संभलना हमें नहीं है, संभलना तो अब उन जवानों को हैं, जिनके माता पिता क्या सोचकर भेजते हैं, और उनके बेटे बेटियाँ क्या गुलछर्रे उड़ा रहे हैं।
@अरविंद जी – वोल्वो में उछलन बिल्कुल नहीं दिखती है, सभी सभ्यता से आचरण करते हैं, वरना तो मुंबई में वोल्वो क्या साधारण बसों में इस सबसे ज्यादा देखा जा सकता है, जो हमने अपनी पोस्ट में जिक्र किया है।
हाय… उन्हें कहीं आपकी नज़र न लग जाए.
अपरिचित जगह, रात में घूमना कहाँ तक सही है?
कुछ जल रहा है क्या …???
वाह!
ख़ुशी के अहसास के लिए आपको जानना होगा कि ‘ख़ुशी का डिज़ायन और आनंद का मॉडल‘ क्या है ? – Dr. Anwer Jamal
हमारे लिये भी नया है अतः हम घर में ही पड़े रहते हैं।
गोया, 'चला मुरारी हीरो बनने' की तर्ज पर अब 'चला बेंगलुरु मुम्बई बनने' कहना शुरु कर देना चाहिए।
सच कहती है दुनिया ,इशक पे जोर नहीं ,
ये कच्चा धागा है ,पक्की डोर नहीं .