महाकाल स्थित तृतिय मंजिल पर नागचंद्रेश्वर का मंदिर है, जो कि ऐतिहासिक है और महाकाल जितना ही पुरातन है। नागचंद्रेश्वर की सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि यह वर्ष में केवल २४ घंटे के लिये याने के नाग पंचमी के दिन ही खुलता है।
धार्मिक मान्यता है कि यहाँ तक्षक का वास है। और हमने कई लोगों के मुंह से सुना भी है कि उन्होंने सफ़ेद नाग का जोड़ा यहाँ देखा है, हर वर्ष किसी न किसी के मुंह से यह सुनते आये हैं, कहते हैं कि नागपंचमी के दिन सफ़ेद नाग का जोड़ा और एक सफ़ेद कबूतर यहाँ दर्शन करने को आते हैं और फ़िर अंतर्धान हो जाते हैं, पता नहीं कितनी सच्चाई है। लोग कहते हैं और धार्मिक मान्यता है इसलिये हम नकार भी नहीं सकते हैं।
जब उज्जैन में थे तो लगभग हर वर्ष बिना नागा नागचंद्रेश्वर के दर्शन करने जाते थे। कभी भी ५-६ घंटे की लाईन से कम में दर्शन नहीं हुए, पर हम हमेशा बहुत खुश रहते थे। आखिरी बार हम अपनी माताजी के साथ स्पेशल दर्शन का टिकट लेकर गये थे तो भी लगभग १ घंटा लग गया था।
जब हम पढ़ते थे तो सभी दोस्त आपस में मजाक करते थे, और एक दूसरे के घर पर जाकर बाहर से आवाज लगाते थे “पिलाओ साँप को दूध”।
नाग पंचमी के दिन सुबह से ही सँपेरों की लाईन लगी रहती थी और “पिलाओ साँप को दूध” की आवाजें सुनाई देती थीं।
आज फ़िर नागपंचमी के अवसर पर हम अपने ब्लॉगर दोस्तों को आवाज लगाते हैं – “पिलाओ साँप को दूध” ।
ब्लॉगर सर्पों को मगर पिलाए कैसें?
जय हो.
सन्नाट मारा है।
ऐसी छोट-छोटी यादें, जीवन की अनमोल निधि होती हैं।