शाम को घर से निकले कृष्णजी के दर्शन के लिये तो देखा कि घर के सामने ही चाट की दुकान पर युवाओं की भीड़ उमड़ी हुई है और चाटवाले भैया का हाथ खाली नहीं है, कहीं किसी नौजवान युवक और युवतियों के गालों पर तिरंगा बना हुआ है तो किसी ने तिरंगे रंग की टीशर्ट पहन रखी थी। सब भ्रष्टाचार का विरोध कर के आ रहे थे। बैंगलोर में भ्रष्टाचार का विरोध फ़्रीडम पार्क में हो रहा है जिसके बारे में आज बैंगलोर मिरर में एक समाचार भी आया है कि ऑटो वाले जमकर चाँदी काट रहे हैं, मीटर के ऊपर ५०-१०० रूपये तक माँगे जा रहे हैं और पुलिस वाले चुपचाप हैं और लोगों को कह रहे हैं कि यही तो इनके कमाने के दिन हैं।
बड़ा अजीब लगता है कि लोग ऑटो वालों के भ्रष्टाचार से परेशान हैं और ज्यादा पैसा लेना भी तो जनता के साथ भ्रष्टाचार है और उसके बाद जनता भ्रष्टाचार का विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं, “मैं अन्ना हूँ।” और भी फ़लाना ढ़िकाना… पर खुद भ्रष्टाचार खत्म नहीं करेंगे, अरे भई जनता समझो कि भ्रष्टाचार खुद ही खत्म करना होगा।
यहीं घर के पास ही एक कन्वेंशन सेंटर में इस्कॉन बैंगलोर ने जन्माष्टमी के अवसर पर आयोजन किया था, आयोजन भव्य था। दर्शन कर लिये पर पता नहीं चल रहा था कि ये मधु प्रभू वाला इस्कॉन है या मुंबई इस्कॉन वाला, आपकी जानकारी के लिये बता दूँ कि मधु प्रभू वाले राजाजी नगर, विजय नगर वाले मंदिर का इस्कॉन संस्था ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बहिष्कार किया हुआ है। इस्कॉन मुंबई ने बैंगलोर में शेषाद्रीपुरम में अपना एक मंदिर बनाया है और अब एच.बी.आर. लेआऊट में एक और मंदिर बन रहा है।
दर्शन करने के बाद महामंत्र “हरे कृष्णा हरे कृष्णा कृष्णा कृष्णा हरे हरे, हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे” का श्रवण किया और फ़िर चल दिये प्रसादम की और जहाँ पर हलवा और पुलैगेरा चावल थे दोनों ही अपने मनपसंद बस पेटभर कर आस्वादन किया गया।
घर आये फ़िर न्यूज चैनल देखे तो पता चला कि अन्ना फ़ौज से भगौड़े नहीं हैं जो कि थोड़े दिनों पहले शासन करने वाली राजनैतिक पार्टी के लोग बयान दे रहे थे। अब तो वे बेचारे किसी को मुँह दिखाने लायक भी नहीं रहे, अरे भई बोलो मगर यह तो नहीं कि जो आये मुँह में बोल डालो, सब के सब दिग्विजय सिंह से टक्कर लेने में लगे हैं। वैसे आजकल ये महाशय चुप हैं, और नौजवान अमूल बेबी बॉय मुँह में निप्पल लेकर बैठे हुए हैं, क्योंकि उनको पता है कि अगर उन्होंने अन्ना का नाम भी लिया तो उन्हें मिलेगा गन्ना ।
बेचारे बाबा नौजवानों को अपने साथ लाना चाहते थे और देखकर हर कोई दंग है कि ७४ वर्षीय अन्ना के साथ सारे नौजवान सड़क पर उतर आये हैं, मम्मी अमरीका गई है बाबा की निप्पल बदले कौन ?
निप्पल या नैपी?
रुचिकर पोस्ट। 74 साल के बूढ़े के आगे तो बाबा भी मात खा रहा है। इन्तजार कर रहा है कब मम्मी आये और शिकायत करूँ।
कबीरा तेरे देश में भांति भांति के …
इस्कॉन में बहिष्कार जैसी बात? हे!राम, हे! कृष्ण।
भाईसाहब इस दौर में तो लोग अन्न को भी अन्ना समझ रहें हैं ,कोंग्रेसी "अन्न "कहने सुनने से भी डर रहें हैं कोई अन्ना न समझ ले और ये मंद मति बालक नानी -दादी का दुलारा ,पिताजी का प्यारा उनके नाम पर कोई इनसे कुछ प्रतिक्रया मांगे तो शर्मा के निकल रहें हैं .श्रम तो कमसे कम आती है इन्हें माया -अनुगामी को ,मम्मी जी तो पहले ही कूच कर चुकीं हैं .बिदेसवा .भ्रष्टाचार जब राजनीति की काया में पैठ जाता है तब हर आदमी स्कूटर वाला बन जाता है कौन किसका विरोध करे .एक उम्मीद बन आयें हैं अन्नाजी .उनके पीछे अनुगामी वैसे ही आरहें हैं जैसे स्वामीजी के पीछे शिकागो के मिशिगन एवेन्यू में गोरे आये थे ,सम्मोहित से .खूबसूरत पोस्ट के लिए बधाई भाई साहब .अमूल बेबी को प्यार मम्मी जी को चरण स्पर्श .
भाईसाहब इस दौर में तो लोग अन्न को भी अन्ना समझ रहें हैं ,कोंग्रेसी "अन्न "कहने सुनने से भी डर रहें हैं कोई अन्ना न समझ ले और ये मंद मति बालक नानी -दादी का दुलारा ,पिताजी का प्यारा उनके नाम पर कोई इनसे कुछ प्रतिक्रया मांगे तो शर्मा के निकल रहें हैं .शरम तो कमसे कम आती है इन्हें माया -अनुगामी को ,मम्मी जी तो पहले ही कूच कर चुकीं हैं .बिदेसवा .भ्रष्टाचार जब राजनीति की काया में पैठ जाता है तब हर आदमी स्कूटर वाला बन जाता है कौन किसका विरोध करे .एक उम्मीद बन आयें हैं अन्नाजी .उनके पीछे अनुगामी वैसे ही आरहें हैं जैसे स्वामीजी के पीछे शिकागो के मिशिगन एवेन्यू में गोरे आये थे ,सम्मोहित से .खूबसूरत पोस्ट के लिए बधाई भाई साहब .अमूल बेबी को प्यार मम्मी जी को चरण स्पर्श .
आपको कृष्ण जन्माष्टमी पर्व की शुभकामनायें और बधाइयाँ.
Very Intresting articles written by you. Please visit my blog http://www.teatimeview.blogspot.com
यह दृश्य तो अब सार्वभौमिक हो गया है
कृष्ण जन्माष्टमी की शुभकामनायें!
बाबा की निपल तो वैसे भी दिग्विजय सिंह ही बदलते रहे हैं लेकिन वे अभी मम्मी की सेवा में हैं। आप्रेशन के बाद रोगी के पैर दबाने जो पड़ते हैं।
हमें तो मंदिर में कान्हा दिखते हैं, कोई भी प्रशासक हो।