आज बहुत दिनों बाद लिखने की कोशिश कर रहा हूँ, पता नहीं परंतु ऐसा लग रहा था कि दिमाग के साथ साथ लेखन पर भी विराम लग चुका है। खैर अपनी जिंदगी की अनमयस्कता से बाहर आ चुका हूँ और अब वापिस से पटरी पर आने की कोशिश जारी है। न कुछ पढ़ने का मन होता था न लिखने का, यूँ कहें कि कुछ करने का मन नहीं होता था तो ज्यादा ठीक होगा। न किसी से मिलने का, अगर मजबूरी में मिल भी लिये तो मन मारकर मिल लेते कि सामने वाले को बुरा न लगे। खैर जिंदगी में हर तरह के दौर आते हैं, जिसमें सभी तरह की घटनाएँ घटित होती रहती हैं।
जब जिंदगी बेपटरी हो जाती है तो किसी की भूख मर जाती है और किसी को ज्यादा भूख लगती है, हम दूसरे तरह के निकले, इतनी भूख लगती कि जो सामने आता खा जाते। बस खाते रहो और अपने चिंतन की गहराई में गोते लगाते रहो। कभी ऐसा लगता कि मोटापा ज्यादा बढ़ता जा रहा है, परंतु कुछ अपने से ज्यादा मोटों को देखकर थोड़ी चिंता कम होती कि चलो अपने अभी इससे तो कम हैं। खैर यह तो मन को मनाने की बात है परंतु चिंता का विषय भी है, खैर अब दिनचर्या को ठीक करने का प्रयत्न जारी है।
इसी बीच एक अच्छी और ठीक ठाक खबर यह रही कि एक और बीमा लिया तो उन्होंने पूरे शरीर की जाँच करवाई तो अपने शरीर के सारे पुर्जे बराबर पाये गये और उसमें हमें उत्तीर्ण कर दिया गया। खासकर टीमटी में तो दौड़ाकर और चलाकर और फ़िर हृदय को आराम मिलने तक जो प्रक्रिया रही तो हृदय की पूरी जाँच हो गई।
अब फ़िर से लेखन में नियमितता आ पायेगी, ऐसी उम्मीद है, इसी बीच बहुत सारे वित्तीय लेख पढे और बहुत सारे वित्तीय विषयों और प्रबंधन विषयों पर विश्लेषण भी किया अगर वे या कुछ मेरे शब्दों में ढ़ल पाये तो जल्दी ही पोस्ट ठेलायमान होगी।
लेपटॉप पर विन्डोज का हिन्दी सुविधा भी चालू कर ली है, परंतु उसका कीबोर्ड रेमिंग्टन है, क्या हम उसे फ़ोनोटिक में उपयोग कर सकते हैं ? अगर कोई यह बता दे तो अपना एक माह का समय रेमिंग्टन सीखने से बच जायेगा।
अब यह संकल्प भी लिया है कि हर महीने कम से कम एक पुस्तक तो पढ़नी ही है, और अपने मोबाईल पर पीडीएफ़ पढ़ने में थोड़ी तकलीफ़ होती है तो अमेजन किंडल फ़ायर लेने की आग मन में लगी हुई है परंतु अब सोचा जा रहा है कि भौतिक रूप से किताबों को ही पढ़ा जाये और अपनी अलमारी को ही भरा जाये।
शरीर से निश्चिन्त हो लें, मन में खटका न रहे। लेखन तो शान्ति में सबसे अच्छा होता है।
प्रवीण जी सही कह रहे हैं.
हम तो यही कहेंगे कि आप इस वाले दौरे से(अ नमनपन) आप बाहर ही आ जाइये ! मस्त रहिये! बिंदास। जो होगा देखा जायेगा।
जल्द से जल्द आप अपने अनमने दौर से बाहर आयें। शुभकामनायें। 🙂
यात्रा के लिए तो किंडल भी ठीक है… पर तसल्ली से बैठकर पढ़ना है तो कागज सबसे अच्छा विकल्प है…
विवेक जी,
नमस्कार,
टेक्स्ट को कापी करने से रोकने के इस कोड का भी इस्तेमाल कर के देखें | इस लिंक से मेरा ब्लॉग सुरक्षित है विजेट अपने ब्लॉग पर लगाएं व मुझे इस कोड में यदि कोई कमी है तो बताएं
आपकी दशा के बारे में जानकर यह शेर याद आ गया –
खुश हुआ वीराना-ए-मस्जिद को देखकर
मेरी तरह खुदा का भी खाना खराब है।
कुछ दिनों से मैं भी इसी दशा में चल रहा था। आज ही ब्लॉग पढना शुरु किया है। आपकी सेहत की सूचना से प्रसन्नता हुई।