हरी मिर्च वाली धनिये की चटनी बचपन से खाते आ रहे हैं, पहले जब मिक्सी घर में नहीं हुआ करती थी तब सिलबट्टे पर मम्मी या पापा चटनी पीसकर बनाते थे, अभी भी अच्छे से याद है कि थोड़ा थोड़ा पानी पीसने के दौरान डालते थे और चटनी बिल्कुल बारीक पिसती थी, अच्छी तरह से याद है कि उस समय धनिया पत्ती की एक एक पत्ती तोड़कर पीसने के लिये रखते थे, एक भी धनिये का डंठल नहीं गलती से भी नहीं छूटता था। मसाला धनिया, मिर्च, ट्माटर को ओखली में डालकर मूसल से कूटते थे और फ़िर सिलबट्टे पर चटनी को पिसा जाता था।
बाद में मिक्सी घर पर आ गई तो उसी में चटनी बनने लगी और धनिया पत्ती पहले की तरह ही तोड़ी जाती, बिना डंठल के, पर एक बार चटनी हम बना रहे थे तो धनिया पत्ती तोड़ने में बहुत आलस आता था, कि एक एक पत्ती तोड़ते रहो और फ़िर चटनी बनाओ, हमने धनिया की गड्डी धोई और चाकू से पीछे की जड़ें काटकर नजर बचाकर धनिये की चटनी बना डाली, घर में बहुत शोर हुआ कि लड़का बहुत आलसी है और आज चटनी में धनिये के डंठल भी डाल दिये, अब हम तो समय बचाने की कोशिश में नया प्रयोग कर दिये थे, पर फ़िर उसी में इतना स्वाद आने लगा कि हमारी विधि से ही चटनी घर में बनाई जाने लगी।
चटनी भी मौसम के अनुसार स्वाद की बनाई जाती थी, साधारण धनिये की, पुदीना पत्ती के साथ, कैरी के साथ । मसाले में नमक, लाल मिर्च डालते थे फ़िर बाद में हींग और जीरा का प्रयोग भी होने लगा। प्याज और लहसुन के साथ भी चटनी का स्वाद परखा गया।
हरी मिर्च तीखे के अनुसार कम या ज्यादा डालते हैं, अभी थोड़े दिनों पहले बहुत तीखी चटनी खाने की इच्छा हुई तो खूब सारी मिर्च डाल दी तो उस चटनी में से एक चम्मच चटनी भी नहीं खा पाये। अब सोचा कि कम मिर्च की चटनी बनायें तो पता चला कि मिर्च ही इतनी तीखी है कि ५-६ मिर्च में तो बहुत तीखा हो जाता है। बचपन की याद है ७-८ मिर्च में भी चटनी इतनी तीखी नहीं होती थी तो लाल मिर्च डालते थे।
सिलबट्टे पर चटनी पीसने से बैठकर मेहनत करनी होती थी, परंतु मिक्सी में वह सब मेहनत खत्म हो गई, आँखों में जो मिर्च की चरपराहट होती होगी उसका अहसास ही आँखों में पानी ला देता है। अब तो चटनी बनाते समय आँखों में चरपराहट का पता नहीं चलता है। मिक्सी में तो चटनी बनाते समय बीच में दो बार चम्मच घुमाई और चटनी २-३ मिनिट में बन जाती है, हो सकता है कि चटनी उतनी ही बारीक पिसती हो जितनी कि सिलबट्टे पर, अब याद नहीं, और अब सिलबट्टा है नहीं कि पीसकर देख लें। पर हाँ गजब की तरक्की की है, पहले सिलबट्टे पर पीसने में चटनी का बनने वाला समय कम से कम ३० मिनिट का होता था और अब ज्यादा से ज्यादा ५ मिनिट का होता है।
पर यह तो है कि सिलबट्टे की चटनी का स्वाद अब मिक्सी वाली चटनी में नहीं आता ।
मेहनत, लगन और प्रेम चटनी में भी आ जाता है।
लेकिन एक बात बता दें, सील बट्टे की पिस्सी चटनी का स्वाद कुछ अलग ही होता था … खासकर … दोपहर की रखी बासी रोटी के साथ 🙂
सिलबट्टे की चटनी का स्वाद अब मिक्सी वाली चटनी में नहीं आता ।
जब से चटनी वाली पोस्ट पढ़ी है, पेट में जलन हो रही है। मन में भी हो रही है कि अब हम मिर्ची वाली चटनी नहीं खा सकते। हाय!
चूल्हा और सिल-बट्टा…हमारे कस्बे-गांव में कभी-कभार अब भी ऐसा स्वाद लेने को मिल जाता है… पर अब सब खतम हो रहा है… बाकी हर चीज में मिलावट ने हालत खराब करके रखी है…
कुछ महानुभाव सरसों का साग भी मिक्सी में पीस लेतें ….
खट्टी चटनी बात मगर मीठी पोस्ट …..
खूब स्वाद बना है, सहमत आपसे.
Comment on Buzz by Raj Bhatia –
Raj Bhatia – विवेक भाई कोई स्वादिष्ट सी चटनी की रेस्पि भी लिख देते, मै तो बहुत चटोरा हुं इस चटनी के मामले मे, हरे पुदीने की चटनी घर मे मै ही बनाता हुं, क्योकि बाकी जब कोई ओर बनाते हे तो मुझे स्वाद नही आता, चलो हमारी हरी पुदिना की चटनी की रेस्पि ले लिजिये फ़िर आप भी लिखे…
खुब सारे हरे धनिये की पतिया( करीब एक मग भर के) थोडा सा धनिया (हरा) सब को पहले अच्छी तरह से धॊ ले, फ़िर एक खुब मोटा प्याज( अगर छोटे हे तो चार पांच) दो हरी मिर्च( खुब तीखी) थोडा सा नमक, सब से पहले प्याज को चार आठ टुकडो मे काट कर मिक्सी मे पीस ले उस मे नमक हरी मिचे ओर हरा धनिया डाल ले, ओर थोडा सा पुदिना ओर मिक्सी को चलाये जब यह सब मिल जाये तो बाकी पुदिना भी डाल दे, अब चाहे तो कच्चा आम छील कर डाल दे( हमारे यहां कच्चा आम नही मिलता) ओर हो सके तो इस मे हरे प्याज की भुके खुब डाल दे ओर अब मिक्सी मे खुब पीसे( मिक्सी का व्लेड वो वाला हो जो काफ़ी नीचे होता हे) ओर अब इसे खाये मेहनत कम ओर स्वाद के संग सेहत मंद भी, अरे हा इस मे लाल मिर्च भी जरुर डाले एक छोटा चम्चा….
जो स्वाद सिलबट्टे की चटनी में है वह मिक्सी की चटनी में कहाँ!
मिक्सी की चटनी एकदम महीन हो जाती है, और दो दिन पड़ी रहने पर सूख जाती है। जब कि सिलबट्टे की चटनी में ऐसा नहीं होता।
हमने भी बचपन में चटनी बनाने के कई प्रयोग किए थे। हरे चने और हरी मेथी तक की चटनियाँ बनाई थी, अब तो बरसों से चटनी का स्वाद भी नहीं चखा।
धन्यवाद बचपन का स्वाद याद दिलाने के लिए।
मिक्सी में चटनी अगर महीन नहीं चाहिये तो मिक्सी को स्पीड बटन को उल्टा घुमा कर पीसे . उलटा घुमाने के लिये बटन को दबा कर रखना होता हैं छोड़ना नहीं होता . स्विच वाले मिक्सी में ये बटन on- off बटन से पहले होता हैं और रिवोल्विंग में एक ही होता हैं उसको पीछे ले जाना होता हैं
कभी इसी विधि से मुली के पत्ते की चटनी बनाइये और जाड़ो मे आलू के पराठो के साथ खाये
http://daalrotichaawal.blogspot.com/2010/11/blog-post.html
try this also
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इसे भी आजमाइए, उँगलियाँ चाटते रह जायेंगे–
हरे लहसुन की पत्तियां, हरी मिर्च , अमचुर और नमक –स्वादानुसार ज़रा सा सरसों का तेल भी मिला लें। जाड़ों में हर प्रकार के भरवां पराठों के साथ बहुत स्वादिष्ट चटनी।
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सी सी के साथ तलब भी लग गयी …..
सिलबट्टे की चटनी में मानवीय ऊष्मा और आत्मीयता समाहित होती है। मिक्सर की चटनी आखिरकार मशीन से ही बनी होती है। स्वाद में अन्तर तो आएगा ही।
हाँ, सिलबट्टे तो बस यादों में ही बचे हैं। अलबत्ता, मिर्च यहाँ भी है:
http://niraamish.blogspot.com/2011/10/hot-capsicum-fruits-and-peppers.html
चटनी पोस्ट स्वादिष्ट रही. 🙂