सरकार की तरफ़ से बयान आया है कि केवल एक सीट की हार से सरकार की कार्यप्रणाली आंकना ठीक नहीं है। चलो हम भी इस बात से सहमत हैं कि एक सीट की हार से किसी की हार जीत का पैमाना तय नहीं होता है, परंतु जनता का रूख लगता है कि कांग्रेस भांप नहीं पा रही है, कि उनका सफ़ाया तय है, क्योंकि जो भ्रष्टाचार के खिलाफ़ मुहीम चल रही है उसमें कांग्रेस सबसे बड़ा रोड़ा अटका रही है, अभी लोकपाल बिल पास करना केवल उनके पाले में आता है।
अण्णा की टीम और अण्णा खुद कांग्रेस के विरोध में सड़क पर उतर आये हैं, और जो नकारात्मक दृष्टिकोण जनता के बीच में रख रहे हैं, उसे कांग्रेस को सकारात्मक दृष्टिकोण में बदलना असंभव नजर आ रहा है। मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री जिन्होंने १० वर्ष शासन किया और तानाशाही जैसा माहौल पैदा कर दिया। तब मजबूरी में जनता को भाजपा को चुनना पड़ा, उस समय मध्यप्रदेश में भाजपा की स्थिती ऐसी थी कि वह किसी को भी कोई सी भी सीट से टिकट दे देती तो वह जीत जाता। और यह हुआ भी, उस समय भी इन मुख्यमंत्रीजी ने हाईकमान को कहा था कि कांग्रेस की जीत तय है, जबकि सतही स्तर की सुगबुगाहट ये भांप ही नहीं पाये। और जनता ने कांग्रेस को धूल चटाकर इतिहास रच दिया। तब इन मुख्यमंत्री महोदय ने चुनाव के पहले बोला था कि अगर कांग्रेस हार गई तो वे अगले १० वर्ष तक कोई चुनाव नहीं लड़ेंगे।
अब ये बेचार चुनाव तो लड़ नहीं सकते क्योंकि जनता के बीच में बोल दिया था, और मध्यप्रदेश में कांग्रेस का बंटाढ़ार करने के बाद अब आजकल ये बेबी बाबा के मुख्य सलाहकार हैं, और अब ये केन्द्र स्तर पर कांग्रेस की लुटिया डुबाने में भरपूर योगदान दे रहे हैं, और तो और कांग्रेस में इनसे एक से एक बड़े वाले हैं जो कि लुटिया डुबाने में नंबर १ की होड़ में हैं।
यह कह दिया जाये कि लोकपाल बिल को न लाने से कांग्रेस अपने ताबुत में आखिरी कील ठोंक रहा है तो गलत नहीं होगा। अब भ्रष्टाचार पर इस लोकपाल बिल से कितना अंकुश लगेगा यह तो बिल पारित होने के बाद लागू होने पर ही पता चलेगा और तब इसमें शायद व्यवहारिक सुधारों की दरकार होगी।
कांग्रेस भी अन्दर ही अन्दर तो समझ रही है बस बाहर से ही बहादुर बनने का नाटक कर रही है।
इस राजनीति से बस देश बचा रहे।
इस देश की राजनीति बहुत जटिल है। टीम अन्ना को इस गफलत में नहीं रहना चाहिए कि दूसरे चुनावों के नतीज़े भी हूबहू रहेंगे। अलबत्ता,सरकार पर जनता का दबाव जितना बढ़े,अच्छा है।
एक सीट से अनुमान मत लगायीये! देश का 80% वोटर गांवो मे रहता है। उसे इंटरनेट/फ़ेसबुक नही मालूम है। अन्ना/बाबा के आंदोलन की उसे कोई परवाह नही है। वो किसे वोट देगा ना दिग्गी को मालूम, ना अन्ना को, ना बाबा को!
ये वो वोटर है जो सुनता सबकी है करता अपने मन की है!
अभी हाल में ही लालू ने कहा की बिहार में अन्ना का कुछ नहीं हो सकता क्योकि यहाँ जाति पर वोट पड़ते है | ये हाल पुरे देश का है अन्ना टीम किसी को चुनाव नहीं हरा सकती है कांग्रेस तो खुद अपने किये से हार जायेगी एक तो झूठा घमंड दूसरे दो परियो के बाद सरकारे बचा लेना बिना किसी बड़े मुद्दे के वैसे भी संभव नहीं है | टीम अन्ना को बस लोगो के दिल दिमाग से भ्रष्टाचार का मुद्दा भूलने नहीं देना चाहिए |
कुमार राधारमणजी से सहमत हूं
सब अपनी करनी की ही भुगतते हैं…लालू, दिग्गी ने जो किया उसका खामियाजा भुगता
मोदी ने जो विकास को छोड़ राजनीति पे उतरे तो उन्हें भी धूल चटायेगा गुजरात
बाकी दिग्गी शासनकाल को जंगलराज के रूप में याद किया जायेगा…म.प्र. की जनता में उसके खिलाफ नफरत भरी हुई है
पर मैं तो इस आदमी का प्रशंसक हूं क्योंकि म.प्र. में कांग्रेसी लुटिया डुबाने के बाद अब देशभर मे इसकी लुटिया डुबाने में योगदान देकर देश का भला कर रहा है… लगे रहो दिग्गी 🙂
badiya samyik prastuti.
aam kya achhe-achhe ko rajneeti ke pachde kahan samjh paate hain.
राधारमण जी से सहमत
सरसरी तौर पर लिखी गई सतही और अगम्भीर पोस्ट है यह। बेहतर की उम्मीद थी।
देर तो हो ही रही है !!