दीपपर्व दीपावली पर मेरी तरफ़ से आपको और आपके परिवार को बहुत बहुत शुभकामनाएँ । उम्मीद है कि सबने बहुत ही हर्षोल्लास से दीप पर्व मनाया होगा ।
जिंदगी में पहली बार ऐसा हुआ है कि मैं अपने परिवार के साथ दीपावली त्यौहार नहीं मना पाया, थोड़ा नहीं बहुत बुरा लगा परंतु कुछ मजबूरियाँ ऐसी होती हैं जिनसे समझौता करना ही होता है। खैर फ़ोन एक अच्छा माध्यम है अब कि सबसे बात कर लो । खैर पहली बार अलग दीपावली मनाने पर अटपटा लगा। हमारे भाई जो नजदीक ही रहते हैं, वे भी आ गये थे।
दीपावली के पहले कवायद शुरू हुई पूजन सामग्री की, देखा तो पता चला कि यहाँ पूजन सामग्री का टोटा है, और किसी निश्चित स्थान पर ही मिलती है, खैर जैसे तैसे करके पूजन सामग्री का प्रबंध किया गया, फ़िर बारी आई बंधनवार के लिये फ़ूलों की, यहाँ गेंदे के फ़ूल प्रचुर मात्रा में बाजार में उपलब्ध नहीं थे और सारे हिन्दी भाषी लोग जो कि यहीं त्योहार मना रहे थे, फ़ूल ढूँढ़ने में लगे थे और फ़ूल मिले भी तो उसमें भी गजब की लूट थी, आम के पत्ते तक बिक रहे थे। यहाँ गेंदे के फ़ूल अमूमन बाजार में कम ही मिलते हैं, खैर जैसे तैसे करके गेंदे के फ़ूलों का प्रबंध किया गया, और दीपावली की पूजा की गई।
दक्षिण में नरकचतुर्दशी को माना जाता है, ये लोग दीपावली नहीं मनाते हैं, इसका कारण यह भी हो सकता है कि रावण को अपना भाई बंधु मानते हों, और रावण की पूजा करना भी इसका एक कारण हो सकता है। परंतु दशहरे पर रावण की पूजा तो विधि सम्मत तरीके से हमारे यहाँ भी की जाती है, क्योंकि रावण विद्वान था परंतु एक बुराई ने उसकी विद्वत्ता को धो दिया। और रावण बुराई का प्रतीक बन गया।
बेटेलाल को आतिशबाजी का बहुत शौक है, हमें भी है परंतु वक्त के साथ थोड़ा कम हो गया है। बेटेलाल ने खूब अनार, चकरी और फ़ुलझड़ियाँ से आतिशबाजी की और आनंदित हुए।
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हमारे यहाँ पर तो दीवाली परम्परागत उत्साह के साथ मनी।
नरक चतुर्दशी को दो बड़े दीये हमने पास के घूरे पर रखे थे – इसी बहाने नरकासुर जी, जो भी रहे हों, को याद कर लिया!
आज तो बहुत नरकासुर हैं, पूरा तिहाड़ पटा पड़ा है उनसे।
बच्चों को आतिशबाजी मिल जाय तो उनकी दिवाली समझिये पूरी !
यह नहीं पता चल रहा है की आप दक्षिण में कहाँ थे आजकल तो सब कुछ उपलब्ध हैं हर जगह ..दीपावली की बधाई तो ले ही लीजिये…..
कहीं आप बेल्लारी की ओर तो नहीं निकल लिये थे ?
तब वहां क्या फूल और फ्रूट मिलता…..सारी फुलवारी तो खन कर रेड्डायन हो चुकी होगी 🙂
अच्छा है बंगलुरू की दीपावली का भी अनुभव ले लिया…
गूगल के विज्ञापन तो नजर आ नहीं रहे हैं… पॉप अप वाले विज्ञापन पर लोग कितना जाते हैं मुझे आईडिया नहीं है पर मेरा मानना है कि आपके साइट/ब्लॉग का हुलिया जरूर अटपटा लगता है 🙂
भुवनेश जी – जल्दी ही साईट / ब्लॉग का हुलिया ठीक करने की सोच रहे हैं।