जहाँ देखो वहीं विदेशी खुदरा दुकानों का हल्ला मचा हुआ है और जनता महँगाई के मारे हलकान हुई जा रही है। महँगाई सर चढ़कर बोल रही है।
किसान को सब्जी का क्या भाव मिलता है और दुकानें किस भाव में बेचती हैं यह एक शोध का विषय है। और अगर शोध किया जाये तो शायद दुनिया चकित रह जायेगी कि किसान को टमाटर का ३ रू. किलो मिलता है और जनता दुकानदार को ४० रू. किलो दे रही है, तो बाकी का बीच का ३७ रू. ये बड़े खुदरा दुकानों के मालिक खा रहे हैं।
जब मुंबई में थे तो वहाँ कोई भी सब्जी कम से कम ४० रू. किलो मिलती थी और अधिकतर तो १६० रू. किलो तक भाव होते थे। पता नहीं कहाँ से महँगाई आई, और यही सब्जी चैन्नई या बैंगलोर में देखें तो अधिकतम ४० रू. किलो सब्जी मिल रही है। टमाटर मुंबई में आज भी ४० रू. किलो हैं और यहाँ बैंगलोर में १६ रू. किलो मिल रहे हैं।
खैर नेता लोग चिल्ला रहे हैं कि विदेशी खुदरा दुकानें आ गईं तो हम आग लगा देंगे, खुलने नहीं देंगे, परंतु क्यों नहीं खुलने देंगे ये नहीं बता रहे हैं, जब रिलायंस रिटेल खुल रहा था तब भी लोगों ने बहुत तोड़ फ़ोड़ की थी, अब हालत यह है कि वही तोड़ फ़ोड़ करने वाले लोग रिलायंस रिटेल से समान खरीद रहे हैं।
थोड़े दिनों बाद विरोधी स्वर विदेशी खुदरा दुकानों के फ़ीता काटते नजर आयेंगे। जनता को समझाइये कि विदेशी खुदरा दुकानों से क्या नुक्सान होगा। आज अखबार में पढ़ा कि जयपुर में कैनोफ़र ने जयपुर के सभी थोक अंडा व्यापारियों से करार कर लिया है, अब सभी खुदरा व्यापारियों को अंडे मिलना बंद हो जायेगा। पहली बात तो यह उन थोक व्यापारियों की गलती है जिन्होंने ये करार किये हैं और वैसे भी भारत है जहाँ हर चीज का जुगाड़ होता है, जब सरकार जुगाड़ से चल सकती है तो ये व्यापार क्या चीज है। खैर आगे क्या होगा यह तो ये करार कार्यांन्वयन होने के बाद ही पता चलेगा। हमारे खुदरा व्यापारी कोई ना कोई तोड़ निकाल ही लेंगे।
ऐसा नहीं है कि मैं विदेशी खुदरा दुकानों का समर्थक हूँ परंतु हाँ यह अर्थव्यवस्था के लिये ठीक होगा और रूपये के अवमूल्यन होने से कुछ हद तक रोकेगा। परंतु रूपये का अवमूल्यन रोकने के लिये क्या इस तरह के हथकंडे अपनाना उचित है ? कतई नहीं !
परंतु नेता जनता को कितना बेवकूफ़ बनायेंगे, अगर इन नेताओं ने घोटाले नहीं किये होते, भ्रष्टाचार पर लगाम कसी होती और भारत के विकास में उस रूपये का योगदान किया होता तो शायद रूपये के मूल्य का अवमूल्यन नहीं होता उल्टा डॉलर कमजोर होता, परंतु सरकार विदेशी लोगों को बाजार में भी तरह तरह के साधन उपलब्ध करवाती है कि ये लोग आसानी से भाग लेते हैं, और जनता ठगी से देखती रह जाती है।
जरूरत है सरकार में नेताओं में विकास की इच्छाशक्ति की कमी की, अगर इन नेताओं में यह इच्छाशक्ति आ जाये तो हम विकास के पथ पर अग्रसर होंगे। लोग कहते हैं कि दस वर्ष में हम नंबर वन बना देंगे, पिछले पाँच वर्ष में भारत को कौन से नंबर पर लाये हैं, ये तो सब जानते हैं।
बात रही [बेचारे] खुदरा दुकानदारों की तो वे बेचारे तो रोजमर्रा कि चीजों को बेचकर अपना घर चला लेंगे। जैसे अगर आपको ब्रेड लेने जाना हो तो आप विदेशी खुदरा दुकानों में तो नहीं जायेंगे ना, बस ऐसे ही बहुत सारी चीजें हैं जो कि आप बिना पार्किंग में अपनी गाड़ी लगाये लेना चाहेंगे या घर से गाड़ी नहीं निकालकर पास के दुकान से लेंगे। तो सरकार को यह समझ लेना चाहिये कि १० लाख से ज्यादा जनता वाले शहर बहुत समझदार हैं।
मुंबई में जहाँ हम रहते थे वहाँ भी आसपास बहुत मॉल थे, परंतु लगभग सभी लोग एक किराने वाले से ही समान लेते थे, वजह वह कीमत में सीधी छूट देता था और उसकी स्कीमें भी आकर्षक होती थीं। फ़िर घर पहुँच सेवा, आप जाकर बोल दीजिये और घर पर समान पहुँच जायेगा। अगर आपकी घर से निकलने की इच्छा नहीं है तो केवल फ़ोन लगा दीजिये और समान घर पर होगा। उस किराना व्यवसायी का स्वभाव बहुत अच्छा था और मृदु भाषी है। यह सब बातें कहाँ देशी और कहाँ विदेशी खुदरा दुकानों पर मिलेंगी।
स्वस्थ प्रतियोगिता बनी रहे।
chntn or chitrn bhtr hai . akhtar khan akela kota rajsthan
खुदरा व्यापारी खतरे में जरूर है, पर परिवर्तन वह रोक नहीं पायेगा। लोकतन्त्र में थोक वोट बैन्क उसके पास नहीं है। वह मायावती/उमा भारती के लिप सेवा के बल पर नहीं चल पायेगा।
🙁
भारत में अनेक स्तरीय व्यापार है। इस से उत्पादक से उपभोक्ता तक पहुँचने में वस्तु की कीमतें बहुत बढ़ जाती हैं। अभी लग रहा है कि विदेशी रिटेलर आप को सब्जी सस्ती दे रहे हैं। लेकिन क्या स्थानीय थोक व खुदरा व्यापारियों को बरबाद करने के बाद भी वे सस्ते में माल बेचेंगे? मुझे लगता है नहीं? आज जो दवा खरीदते हैं उस के बारे में पता लगाएँ कि वह लागत से कितनी गुना कीमत पर रोगी को पड़ती है।
ग्यानदत्त जी से सहमत हू0ँ
इतनी महत्त्वपूर्ण जानकारी को विस्तार से समझाने के लिए आपका आभार,हर सिक्के के दो पहलू होते है।
अगर 40 में से 37 रूपये बीच के लिए लोग ही खाए जा रहे हैं तो किस काम का है आज का सिस्टम.
विवेक जी,..
आपका आलेख बहुत सुंदर लगा,…
किन्तु आज हर जगह प्रतिस्पर्धा कितनी बढ़ रही है,.
लाजबाब पोस्ट,…
मेरे पोस्ट 'शब्द'में आपका इंतजार है,..
भावातिरेक ने इसे 'उत्तम और उपयोगी पोस्ट' बनने से रोक दिया।
नई व्यवस्था से न तो किसानों को वाजिब भाव मिलेगा और न ही उपभोक्ताओं को कम भाव पर सामान मिलेगा। वे मुनाफा कमाने आ रहे हैं और मुनाफा कमाकर ही जाऍंगे। यह सब होते हुए देखेंगे – हम लोग।
apki bat sahi hai. yah upyogi post ho sakti thee.