लोकपाल के ड्राफ़्ट के सामने आते ही तरह तरह की प्रतिक्रियाएँ सामने आने लगी हैं, अन्ना एवं टीम वापस अनशन पर जाने के लिये तैयार हो गये हैं, सबने कमर कस ली है। सरकार ने भी अपनी कमर कस ली है और संदेश दिया है कि नौकरशाहों की उन्हें बहुत चिंता है, कैसे उनकी कमाई पर हाथ साफ़ कर दें, कैसे उनकी होने वाली कमाई को रोक दें, इसलिये प्रधानमंत्री द्वारा किये गये वादे भी भुला दिये गये।
प्रधानमंत्री के तीन वादे जो चिठ्ठी लिखकर अन्ना को किये गये थे, अब कांग्रेस की सरकार ने उस चिठ्ठी का मजाक बना दिया है, सरकार का मंत्री जो मुँह में आता है उलूल जुलूल बके जा रहा है और हो वही रहा है जो अंधेर नगरी का चौपट राजा चाह रहा है। देखते हैं कि देश में कब तक यह अंधेरगर्दी चलती है।
सरकार ने छोटे बाबुओं को लोकपाल से दूर रखकर उन्हें संदेश दिया है कि आप कमाई करते रहो और जैसे सालों से ऊपर हफ़्ता, महीना देते रहे हो, देते रहो। छोटे बाबु साहब आप लोग चिंता मत करो, आपके लिये तो हम देश की जनता से भी टकरा जायेंगे, भुलक्कड़ जनता है वोट डालकर सब भूल जाती है और जो वोट नोट में बिकते हैं नोट से खरीद लेते हैं, क्योंकि उन्हें अपने वोट की कीमत पता है और पढ़े लिखे गँवार लोग जिन्हें अपने वोट की कीमत बहुत अच्छे से पता है, बिना नोट के वोट दे देते हैं।
तो छोटे बाबू साहब लोग आप तो इन पढ़े लिखे गँवार और असली गँवारों से नोट बटोरते रहो और मजे करते रहो, चिंता मत करो कानून भी सरकार ही बनाती है और सरकार ही मिटाती है। छोटे बाबू साहबों के होंसले इतने मस्त है कि आम जनता पस्त है। अब तो खुलेआम कहते हैं तुम्हारे अन्ना ने क्या कर लिया ? हमारे ऊपर कोई लगाम नहीं लगा सकता क्योंकि हमारे आका जो ऊपर बैठे हैं, उन्हें हमारी बहुत चिंता है।
पर जैसे कि एक खबर कल अखबार में पढ़ी थी एक सँपेरे ने अपने साँप तहसील कार्यालय में छोड़ दिये क्योंकि उससे छोटे बाबू साहब लोग ’कुछ’ लेना चाहते थे, तो सँपेरे ने उनके कार्यालय में दस साँप छोड़ दिये। मतलब कि संदेश साफ़ है कि अगर आपको नहीं देना है तो सँपेरे से दोस्ती गांठ लो, सारे छोटे बाबू लोग टेबल पर चढ़े नजर आयेंगे।
छोटे बाबू साहब लोग आप समझ जाओ जब आप लोग टेबल पर चढ़ेगे तो सरकार कितनी बार आपको इन साँप जैसे जीवों से बचाने आयेगी, शायद इन बाबुओं को पता नहीं होगा कि साँप टेबल पर भी चढ़ जाते हैं। अब छोटे बाबू साहब लोग अगर सब अपने अपने हथियार लेकर आ जायें तो टेबल से तो आपका बचाव नहीं होगा . . . .
माँगने वाले यदि माँगते हैं तो साँप ही क्या बुरा है?
सरकार जनता को आन्दोलनकारी बनाने पर तुली है। लेकिन अब भी मीडिया इसी सरकार का साथ दे रही है। आखिर दे भी क्यों ना, इसे भी तो इसी सरकार से फायदा मिलता है। साँप वाला काण्ड बेहद रोचक लगा।
सरकार नौकरशाहों के बल पर अपना प्रपंच फैलाती है। अत: उनके प्रति रुंझान जायज है! 🙂
किसी भी समाज में कानूनों से संस्कार नहीं बदलते
केरल में हूँ. घर के आसपास भी सांप बहुतेरे हैं. सोच रहा हूँ उन्हें पकड़ने का हुनर सीख लूँ. काम आयेंगे.
सरकार का रूख और उसकी नियत शुरू से साफ है,कोई उस पर धोखा खा जाये तो उसका दोष है.
हमने बहुत पहले ये जान लिया था कि यह सरकार और पूरा राजनैतिक कुनबा जनलोकपाल को नाकों चने चबवा देगा…जनता के पास 'इस' या 'उस' के आलावा क्या विकल्प है ? ऐसे में अन्ना जी को अनशन छोड़कर राजनीति के धरातल पर ही लड़ना होगा,इस 'सिस्टम' से !
आप पोस्ट लिखते है तब हम जैसो की दुकान चलती है इस लिए आपकी पोस्ट की खबर हमने ली है 'ब्लॉग बुलेटिन' पर – पधारें – और डालें एक नज़र – सिर्फ़ सरकार ही नहीं लतीफे हम भी सुनाते है – ब्लॉग बुलेटिन
सपेरे वाला किस्सा तो टीवी पर देखा पर सोच रही थी कही सांप इन बड़े काले सरकारी संपो को देख कर भाग न जाये | ये सरकारी कर्मचारी तो सरकार के लिए कमाऊ पुत है उसे कुछ कैसे कह सकते है आम जनता ही बेटी बनी हुई है करो उसके हित कुर्बान |
ज्ञानजी की टिप्पणी को 'विशेषज्ञ की अनुभूत टिप्पणी' माना जाए और यह बहस बन्द की जाए।