अविष्कार मानव इतिहास में जिज्ञासा से उत्पन्न होने वाली एक महत्वपूर्ण बात है। मानव ने जब अविष्कार करना शुरू किया तब उसे जरूरत थी, आज हमारे पास इतने संसाधन मौजूद हैं परंतु अब उनको बेहतर करने की जरूरत है। अभी भी नई नई चीजों खोजी जा रही हैं।
जब पहिया खोजा गया होगा तो वह अपने आप में एक क्रांतिपूर्वक अविष्कार था, आज पहिये के बल पर ही दुनिया चल रही है अगर पहिया ना होता तो सब रुका हुआ होता, और ऐसा सोचना ही दुष्कर प्रतीत होता है।
ऐसे ही जब संगणक को बनाया गया तो बनाने वालों ने कभी सोचा नहीं था कि यह एक क्रांतिकारी बदलाव लायेगा और लगभग हर उपक्रम में इसका उपयोग होगा, तब यह भी नहीं सोचा गया था कि y2k की समस्या भी आयेगी।
आजकल किसी नौजवान से बात की जाये तो वह केवल नौकरी करना चाहता है कोई अविष्कार नहीं क्योंकि नौकरी एक सहज और सरल उपाय है जीविका का, परंतु शोध कार्य उतना ही दुष्कर। कुछ नये विचारों को असली जामा पहनाना ही अविष्कार है। ऐसा नहीं है कि दुनिया में सभी चीजें आ चुकी हैं, हो सकता है कि चीजें अभी जिस प्रक्रिया से अभी चल रही हैं वे धीमी हों, अगर उस प्रक्रिया को और सुगम बना दिया जाये तो शायद वह चीज और भी ज्यादा लोकप्रिय हो जाये।
अभी के कुछ उदाहरण देखिये जो कि प्रक्रिया के सरलीकरण के उदाहरण हैं, यह अविष्कार अंतर्जाल के संदर्भ में हैं, जैसे गूगल, फ़ेसबुक इत्यादि।
क्या गूगल के पहले अंतर्जाल पर ढूँढ़ने के लिये खोज के साधन उपलब्ध नहीं थे, जी बिल्कुल थे, परंतु वे इतने तकनीकी भरे थे और जो आम आदमी देखना चाहता था वह परिणाम उसे दिखाई नहीं देता था। गूगल ने एक साधारण सा पृष्ठ दिया जो कि एकदम ब्राऊजर पर आ जाता था, केवल डायल अप पर भी खुल जाता था, जबकि डायल अप की रफ़्तार उन दिनों लगभग ४० केबीपीएस. होती थी, जो कि ठीक मानी जाती थी और १२८ केबीपीएस तो सबसे बेहतरीन रफ़्तार होती थी। गूगल ने सर्च इंजिन के क्षैत्र में क्रांतिकारी बदलाव किया और lycos, AltaVista, Yahoo, Ask Jeeves, MSN Search, AOL इत्यादि को बहुत पीछे छोड़ दिया।
ऐसे ही दूसरा उदाहरण है फ़ेसबुक, फ़ेसबुक के आने के पहले क्या अंतर्जाल में सोशल नेटवर्किंग वेबसाईट्स नहीं थीं ? थीं बिल्कुल थीं, परंतु उनका उपयोग करना इतना आसान नहीं था और उन सोशल नेटवर्किंग वेबसाईट्स में फ़ेसबुक जितनी सुविधा नहीं थीं। Hi5, Orkut जैसे अपने प्रतियोगियों को बहुत पीछे धकेल दिया और आज फ़ेसबुक का कोई प्रतिद्वन्दी नहीं है। क्योंकि फ़ेसबुक के निर्माताओं ने इसे बहुत ही सरल रूप दिया और आज जिसे देखो वो मोबाईल पर भी फ़ेसबुक का उपयोग कर रहा है।
आज की पीढ़ी को इस और खास ध्यान देने की जरूरत है कि नये अविष्कार भी किये जा सकते हैं, यहाँ केवल मैंने अंतर्जाल से संबंधित ही बातें करी हैं परंतु यह हरेक क्षैत्र में लागू होता है, या तो नई चीजें खोजी जाये या फ़िर जो चीजें चल रही हैं, उन्हें परिष्कृत किया जाये। तभी हमारा भविष्य युवा है।
यहाँ अन्वेषक मन को तो दर दर की ठोकरे कहानी पड़ती हैं विवेक जी …..
मानव मस्तिष्क की क्षमता स्वयं को ही आश्चर्य में डालने के काम आ रही है।
Sachmuch kuchh naya karne mein hi jivan ki sarthakta hai
…बहरहाल मैं आने वाले कल के बारे में बहुत निश्चिंत हूं. आज की पीढ़ी ठीक वैसे ही अलग सोचती है जैसे कल मेरी पीढ़ी सोचती थी 🙂
गूगल जिंदाबाद !
हम इसके आभारी रहेंगे !
लेकिन भारत में इसकी उम्मीद अधिक नहीं.