आजकल बड़े बाजारों से ही खरीदारी की जाती है, फ़ायदा यह होता है कि हरेक चीज मिल जाती है और लगभग हरेक ब्रांड की चीजें मिल जाती हैं, तो अपनी पसंद से ले सकते हैं, चीजों को हाथ में लेकर देख सकते हैं। जबकि किराने की दुकान पर चीजों को बोलकर लेना होता है तो क्या क्या नया बाजार में आया है पता ही नहीं चलता है।
सब ठीक चल रहा था परंतु कुछ दिनों पहले पोलिथीन पर सरकार का फ़रमान क्या आया, आम आदमी के लिये आफ़त हो गई, अब अपने साथ पोलिथीन या थैले लेकर जाओ नहीं तो ये बड़े बाजार वाले लोगों को पोलिथीन के लिये १ रूपये से लेकर ५ रूपये तक का भुगतान करो। और लगभग सभी बाजार अपने थैले लाने पर कुछ छूट देते हैं या प्वांईंट्स आपके मेम्बरशिप कार्ड में जोड़ देते हैं।
जब काऊँटर पर जबरदस्त भीड़ होती है तो कैशियर बैग के प्वाईंट्स क्रेडिट करना भूल जाता है परंतु अगर पोलिथीन ली है तो उसके पैसे झट से बिल में जोड़ देता है। और अगर शिकायत करो तो जवाब होता है कि भीड़ बहुत थी तो भूल गये, तो हमने कहा भई अगर भीड़ में भूल जाते हो तो पोलिथीन बैग्स के भी पैसे लेने भूल जाया करो। कैशियर खिसिया गये और चुप हो गये।
खैर है छोटी सी बात परंतु हम भारतीय ग्राहक क्यों अपना हक छोड़ें, और ऐसा पता नहीं कितने ग्राहकों के साथ होता होगा, इसलिये एक शिकायत ईमेल से कर दी गई है। पता नहीं इन लोगों के कान भी होते हैं या नहीं, सुनेंगे या नहीं।
कोशिश तो करना ही चाहिए.
एक स्टोर में मुझे दूसरा ही अनुभव हुआ. आमतौर से हम बिल से, ख़रीदे गई चीज़ों का मिलान नहीं करते थे. एक आध बार किया तो, कोई न कोई आइटम एक से अधिक बार जुड़ा पाया. पर ये कभी नहीं हुआ कि कोई आइटम जोड़ने से रह गया हो. वहां जाना ही छोड़ दिया.
यह भी इनकी आय का एक माध्यम हो सकता है।
ग्राहक तो अक्सर अपना हक छोडते ही है।
मुझे नहीं मालुम था कि अपना बैग ले जाने पर क्रेडिट मिलता है। और कभी चेक भी नहीं किया।
वर्ना बैग अपना ही ले जाते हैं अमूमन।
दो कारक अचेतन में काम करते हैं। पहला – रकम बहुत कम होती है। दूसरा – कौन झंझट ले।
गड़बड़ तो होती ही है