पिछले कुछ समय से उज्जैन का नाम लगातार समाचार चैनल में देख रहे होंगे वो भी धार्मिक नगरी के तौर पर नहीं, भ्रष्टाचारियों को पकड़ने को लेकर। नगरनिगम के चपरासी से क्लर्क तक से १० करोड़ से ज्यादा की संपत्ती की बरामदगी हुई है और संख्या ५०-६० करोड़ तक जा पहुँची है।
हमें यह तो पता था कि नगरनिगम में भ्रष्टाचार होता है क्योंकि बिल्कुल घर के पास है और वहाँ की संचालित गतिविधियाँ किसी से छूप नहीं पाती हैं। किसी भी काम को करवाने के लिये बिना पैसे दिये काम नहीं होता है। अब लोकायुक्त का तो बहुत काम बड़ गया है, क्योंकि अभी तो उन्होंने केवल चपरासी और क्लर्कों को ही पकड़ा है, और वो बिचारे पकड़े इसलिये गये कि उन्हें यह नहीं पता होगा कि भ्रष्टाचार की रकम को ठिकाने कैसे लगाना है। अब जब पड़े लिखे भवन इंजीनियर और नक्शा इंजीनियरों के यहाँ उनकी संपत्ती खंगाली जायेगी तो हो सकता है कि ये तो अभी तक जितनी रकम मिली है उसके रिकार्ड टूट जायें।
उज्जैन में हर १२ वर्ष में सिंहस्थ का आयोजन होता है, जिसमें करोड़ों रूपये सरकार द्वारा सिंहस्थ के लिये दिये जाते हैं, पिछले सिंहस्थ में लगभग ४०० करोड़ रूपये उज्जैन की सड़कों के लिये दिये गये थे, जिसमें यह हाल था कि सिंहस्थ के बाद सड़क ६ महीने भी नहीं टिक पाई, अगर ईमानदारी से उस रकम को खर्च किया जाता तो जनता सरकार को बधाई देती। अब यह सारा खेल समझ में आ रहा है। जब चपरासी और बाबुओं के पास इतना मिल रहा है तो अधिकारियों के पास तो समझ ही सकते हैं। आखिर धार्मिक नगरी उज्जैन में करोड़ों रूपया आता है और इन कर्मचारियों के पेट में चला जाता है।
कुछ दिन पहले झाबुआ से हमारे मित्र का फ़ोन आया कि फ़लाना जो है ऑडी में घूमता है और यहाँ के रेड्डी बंधु हो रहे हैं, फ़िर उनका मामला सब जगह उठा, परंतु बाद में ठंडा हो गया। अब ये करोड़ों के घपले करने वाले भी कभी हमारे मित्र थे, मतलब कॉलेज के जमाने में, तब कभी सोचा नहीं था कि कभी भविष्य में ऐसा भी होगा।
हमारी तो महाकालेश्वर से प्रार्थना है कि “हे महाकाल, जितने भी भ्रष्टाचारी, उज्जैन की पावन धरती पर हैं, उन्हें भस्म कर दो और उज्जैन को सारी सुख सुविधाओं से महरूम रखने वाले इन लोगों के प्रति कोई रहम मत करो”।
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जी बिल्कुल… देश के हर धर्म स्थल को देख लीजिए, भ्रष्टाचारियों नें भगवान को भी बदनाम कर रखा है….. मै शिरडी साई के दर्शन के लिए साल में कम से कम चार/ पांच बार जाता हूं लेकिन हर बार दुखी होता हूं….. बाबा विश्वनाथ की नगरी बनारस की दुर्दशा को तो खुद झेल चुका हूं…..
धर्म स्थलों पर ज्यादा भ्रष्टाचार है, और जो भगवान का ध्यान रखते हैं उनके द्वारा कुछ ज्यादा ही है, यही बात इस बात से साफ़ होती है पिछले दिनों करीबन १६ पंडों के खिलाफ़ महाकाल में कार्यवाही की गई। और यहाँ मिलने वाली रकम ऐसे ही लोगों की जेब में जाती है, और धार्मिक नगरियों को दुर्दशा भुगतना पड़ती है।
किसी भी शहर के, किसी भी महकमे को खंगाल लीजिए, करोड़ों मिल जाएंगे। इसीलिए तो आवश्यकता है कि इन नौकरशाहों पर सीधा कानून लागू हो।
कानून से कुछ नहीं होगा, बस सभी की जाँच के आदेश दे देने चाहिये। सारा काला धन वापिस आ जायेगा।
पत्ते छाँटने से कुछ नहीं होगा और उग आयेंगे. और शायद जड़ छाँटने के लिए बहुत अधिक हिम्मत, साहस की आवश्यकता होगी.
ईश्वर के नगरों में भी राक्षसीय कर्म में लिप्त हैं ये नराधम..
ये लोग ईश्वर की शरण में रहकर उनको कुछ ज्यादा ही अच्छे से समझने लगे हैं, और भय खत्म हो गया है।
महाकाल की नगरी – सभी की मुरादें पूरी होती हैं.. क्या भ्रष्ट और क्या इमानवाले.
सही कहा, महाकाल तो हैं ही भोले भंडारी 🙂
ईश्वर भी यह देख भुनभुनाता होगा
वो तो अच्छा है कि ईश्वर को रिश्वत नहीं देना होती, देनी पड़ती तब भुनभुनाते ।
यह देखना/जानना रोचक होगा कि घपलों की रकम से, महाकाल के कितने अभिषेक कराए गए।
देश के कोने कोने का यही हाल है… कोई ईश्वर, कोई स्थान छूटा नहीं है.
हर जगह यही हाल!
हम एक टीम के साथ नेशनल टूर पर हैं. 5-6 Feb को उज्जैन मे हूं. वहां ब्लागर्स के साथ एक मीटिंग करूंगा. हम इंटरनेट सेंसरशिप के खिलाफ एक आन्दोलन कर रहे हैं. क्या आपसे मुलाकात हो पाएगी? मेरा मोबाइल नं 09336505530 है.