नियम एक ऐसी चीज है जो हर व्यक्ति को पसंद होती है, बस उसकी परिभाषा सबकी अपनी अलग होती है। सब अपनी पसंद से नियम को अपने अनुकूल बना लेते हैं और दूसरों पर थोपने की कोशिश करते हैं। सरकार इन्हीं नियम को कानून का रूप देती है और नियम पालने के लिये पहरेदार भी बैठा देती है।
सरकार की देखा देखी हरेक जगह नियम बनाये गये और उन पर पहरेदार भी लगा दिये गये परंतु कभी आम आदमी से उन नियम के बारे में पूछने की जहमत नहीं उठाई गई, क्या वाकई आम आदमी उन नियमों का पालन करना चाहता है या नहीं ।
नियम तोड़कर भागने की प्रवृत्ति ज्यादा देखने में आती है, कोई भी आदमी नियम तोड़कर खुद पहरेदार के पास नहीं जायेगा, बल्कि पहरेदार को उस नियम तोड़कर भागने वाले व्यक्ति को ढूँढ़ना होगा, अगर सभी नियम का पालन करने लगे तो पहरेदार की आवश्यकता ही खत्म हो जायेगी।
हो सकता है जो आपका या मेरा मन नियम मानता हो परंतु कानून उस नियम को बुरा मानता हो तो अधिकतर कानून के नियम मानना चाहिये और जो नियम बुरे लगते हों, कोशिश करना चाहिये उन नियमों को मानने की नहीं तो उन कानूनों को तोड़कर पहरेदारों से बचना चाहिये।
बचना भी एक कला है, कुछ लोग इतने माहिर होते हैं कि नियम भी तोड़ते हैं और ऊपर से दादागिरी भी करते हैं, उल्टा चोर कोतवाल को डांटे, परंतु जब तक अनुभव ना हो, इन चीजों को आजमाना नहीं चाहिये।
खैर यह बात और है कि कुछ लोग नियम तोड़ने में ही अपनी हेकड़ी समझते हैं, और नियम तोड़ना अपनी शान याने कि कानून को अपने हाथ में लेना। तो ऐसे लोग मानसिक रूप से विकृत होते हैं, और कुछ लोग होते हैं जो समय और परिस्थितियों के अनुसार नियम का पालन करते हैं, अगर अन्य लोग हैं तो नियम का पालन किया जायेगा नहीं तो नियम उनके लिये कोई मायने नहीं रखता। तो ऐसे लोग अवसरवादी कहलाते हैं और कभी खुदा न खास्ता किसी पहरेदार ने पकड़ भी लिया तो इनकी घिग्गी बँध जाती है, मिल गई इज्जत मिट्टी में।
नियम बनते ही लोग नियम को तोड़ने के रास्ते ढूँढ़ लेते हैं और नियम को कानूनन तरीके से तोड़ते हैं। हमारे यहाँ कुछ लोग हैं जो कि खुद को नियम के ऊपर समझते हैं और पहरेदार उनके लिये नियम को शिथिल कर देते हैं, यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है। नियम सबके लिये एक होना चाहिये और पहरेदारों को इसके प्रति सतर्क रहना चाहिये।
पहरेदार चाहे कितनी कोशिश कर लें, नियम तो तब तक टूटते रहेंगे जब तक कि नियम का पालन करने वाले नियम को ना मानें, तो पहरेदार और नियम पालने वालों को संस्कारित होना होगा। किसी एक के सुधरने से बात नहीं बनेगी।
नियम तोड़ने पर सजा का कड़ा प्रावधान होता है और नियम लागू करने वालों को यह सुनिश्चित करना चाहिये कि वे बिना किसी दबाब के नियम को सख्ती से लागू करें, फ़िर वह राजा हो या रंक।
भारत एक नियम मुक्त देश है छंद मुक्त कविता की तरह .यहाँ नियम का पालन न करना एक नियम है अपवाद नहीं .कुछ लोग क़ानून से ऊपर हैं तो कुछ इसके नीचे आत्महत्या करतें हैं या उनकी ह्त्या कर दी जाती है नियम कोई नहीं पालन करता है यहाँ .यह एक विडंबना है .लोग सीट बेल्ट न बाँधना भी शान समझतें हैं .बच्चों को स्टीयरिंग पे बिठा खुश होतें हैं .यहाँ कसाब को बिरयानी मोहन चंद शर्मा की जांच होती है .बाटला काण्ड अपना सर धुनता है .दिग्विजय अनर्गल प्रलाप करता है .कहतें हैं इसे लोक तंत्र जो केवल भारत में ही पाया जाता है इस हाल .
दिक़्कत ये है कि पहरे पहरे ही पहरे हैं, ज़िम्मेदारी व जवाबदेही नही, पहरेदारी से ही ज़िम्मेदारी व जवाबदेही का काम लिया जाना तय दिखता है
नियम में यम संलग्न है। इसलिए इसे सब तोड़ना चाहते हैं। इसे तोड़कर वे सोच समझ रहे होते हैं कि वे यम को तोड़ रहे हैं। जबकि वे नियम को ही तोड़ रहे होते हैं। जहां तक पहरेदारी का संबंध है, अपनी चीज की पहरेदारी सभी चाहते हैं और यह भी चाहते हैं कि उन्हें किसी पर पहरा न मिले, वे जब चाहें जिसका मनमाफिक उपयोग और उपभोग कर लें और यहीं से अराजकता, उच्श्रंखलता का आरंभ होता है। इन्हीं को रोकने के लिए नियम बनाए जाते हैं और फिर इन्हीं को तोड़ा जाता है। तो समझ लीजिए कि यह चक्र ऐसा है कि इस व्यूह में सभी उलझ जाते हैं और जो साफ निकल आते हैं, वे स्वयं को बहादुर समझते हैं, चालाक और चतुर चालक समझते हैं।
सार्थक सन्देश देती पोस्ट … आभार !
ए.सी कमरों में गद्देदार कुर्सियों पर बैठने वाले वहीँ बैठे-बैठे आम आदमी की दिक्कतों को जान लेते हैं और उसी हिसाब से क़ानून एवं नियम बना दिए जाते हैं.. आम आदमी से पूछने की ज़हमत तो कोई उठाना ही नहीं चाहता
सही है…ए सी कमरे से गरीबी रेखा निर्धारित होती है…यही हालात हैं.
नियम तो लागू होने ही चाहिए। बिना नियमों के तो सब स्वच्छन्द हो जाऍंगे। हॉं, मुझे सारे नियमों से मुक्त रखा जाना चाहिए।
जोरदार आलेख है। निर्मल आनन्द देनेवाली।
सभी की तरह मैं भी आपकी बातों से सहमत हूँ मगर अफसोस यही है की ऐसा हो कहाँ पाता जो लोग ईमानदारी से कानून का पालन करते है उन्हे दुनिया बेवकूफ़ कहती है। इसके चलते अच्छा भला आदमी भी लोगों की देखा देखि नियमों का उलघन करना सीख ही जाता है। सार्थक संदेश देती पोस्ट….
नियम हमारे पहरेदार हैं, हमें उनका यथासंभव सम्मान करना चाहिये..