वर्ष भर में एक बार कम से कम एक माह के लिये फ़ोर्स बैचलर रहने का मौका मिलता है, कुछ कमियां खलती हैं, तो कुछ रोज रोज के अड़ंगों से मुक्ति भी मिल जाती है। सबका अपना अपना अनुभव होता है। इस वर्ष भी वह एक माह हमारा आज से शुरू हुआ है, पर अब फ़ोर्स बैचलर रहने का ना मजा आता है और ना ही रोमांच रह गया है। शायद अपने परिवार की ज्यादा ही आदत पड़ गई है, कुछ लोग कहते हुए पाये गये कि भई तुम अब बुढ्ढे हो गये हो, पर क्या परिवार की आदत और उनको प्यार क्या व्यक्ति को वाकई बुढ्ढ़ा बना देती है ? एक यक्ष प्रश्न जैसे हम से हम ही आमने सामने खड़े होकर पूछ रहे हैं।
समाज परिवार से व्यक्ति की पहचान करता है और परिवार में हर व्यक्ति की अपनी पहचान और जिम्मेदारियां होती हैं। अकेले रहने का रोमांच भी व्यक्ति को शायद इसलिये उद्वेलित करता है कि वह सब कार्य जो कि परिवार की उपस्थिती में नहीं किये जा सकते वे सब बिना रोक टोक के किये जा सकते हैं। वहीं कुछ दैनिक कार्य हैं जिनके लिये व्यक्ति परिवार पर निर्भर करता है। पहले किसी जमाने में एक अकेलेपन का भी एक मजा था, दोस्तों के साथ गपबाजी और समय अपने हिसाब से काटना एक शगल होता था। लगभग सभी दोस्त ऐसे मौके का बेसब्री से इंतजार करते थे। परंतु तेजी से वक्त ने करवट बदली और अब यह शगल मजा की जगह सजा जैसा लगने लगा है।
आज तो पहला दिन है अभी तो पूरे ३४ दिन अकेले रहना है, घर सम्हालना है। और यह पूर्ण महीना पता नहीं अभी और कितने नये अनुभव दिखायेगा।
सिक्के के दो पहलू तो है ही
मैगी वैगी का भंडारण किया कि नहीं 🙂
शुभकामनायें। तबियत अब कैसी है?
हमारी संवेदनायें आपके साथ हैं, हम तो घर आ गये हैं छुट्टी पर।
जीवन के खट्टे-मीठे अनुभव होते हैं इस अवधि में, इन्हें लिख कर रखिये बाद में पढ़ कर आनंद आएगा…
नीरज
तस्वीर के दूसरे रूख को भी देखना जरूरी है……….
😉 😉 All the best bhaiya…:)
अकेलेपन का अपना मजा है दोस्त -बस थोडा विचारशील कल्पनाशील और नवाचारी होने की जरुरत है !
अकेले में रहें या भीड में – खुश या नाखुश रहना तो मन की स्थितियॉं होती हैं। यह सनातन वाक्य बडी मदद करता है – यह वक्त भी गुजर जाएगा।
इसीलिए तो हम अगले ही दिन आपके यहां पहुंच गए थे, ताकि कम से कम एक दिन तो आपको अकेलेपन के अहसास से उबार सकें।
♥
अब यह शगल मजा की जगह सजा जैसा लगता है।
सच कहा आपने…
प्रियवर विवेक रस्तौगी जी
मैं मेरी कहूं तो एक कदम चलना भी श्रीमतीजी की मदद के बिना मुश्किल है …
कपड़े, रुमाल, बाहर जाना हो तो क्या कुछ लेना , किस दवा की ज़रूरत पड़ सकती है … वगैरा …
अपने लिए तो फ़ोर्स बैचलर रहना संभव नहीं … 🙂
हां, आपकी कैसी गुज़र हो रही है आजकल ?
आज 10 दिन हो गए …
🙂
शुभकामनाओं-मंगलकामनाओं सहित…
-राजेन्द्र स्वर्णकार