आज बहुत दिनों बाद हैयर सैलून याने की नाई की दुकान में गये। बाल बहुत बढ़ गये थे, तो सोचा कि चलो आज कैंची चलवा ली जाये।
बचपन से ही नाई की दुकान पर जाते थे, उस समय जो स्टाईल हमारे पिताजी कह देते थे बन जाती थी। फ़िर बाद में जब थोड़ी समझ आ गई तो अपने हिसाब से कटिंग करवाते थे। फ़िर एनसीसी में रहे तो बस सैनिक कटिंग इतनी अच्छी लगी कि उसके बाद तो वहीं स्टाईल रखने लगे।
अब यहाँ दक्षिण में आये तो यहाँ के नाईयों की कटिंग ही समझ नहीं आई, धीरे धीरे उन्हें समझाना पड़ा कि कैसी कटिंग चाहिये, अब भी उन्हें समझाना पड़ता है। हमारे बेटेलाल हमें बोले कि हमें तो नुन्गे स्टाईल करवानी है। हम बोले कि ऐसी कोई स्टाईल नहीं है तो जवाब मिला अरे आप चलो तो सही नुन्गे स्टाईल करवायेंगे। जब नाई की दुकान पर पहुँचे तो उसने झट से नुन्गे कट बना दी, जो कि सैनिक कटिंग की मिलती जुलती स्टाईल थी। यहाँ कन्नड़ में छोटे बालों को नुन्गे कहा जाता है।
बाल कटवाने की समस्या मुंबई में ज्यादा नहीं झेलना पड़ी थी, क्योंकि वहाँ अधिकतर उत्तर भारतीयों की ही नाई की दुकानें हैं, जो अपनी भाषा समझते हैं और एक से एक बाल काटने के कारीगर हैं।
बीच में जब हम गंजे रहने लगे थे, तो हर पंद्रह दिन में सिरे का शेव करवाने जाना पड़ता था, नाई पहले सिर पर शेविंग स्प्रे करता फ़िर हाथ से पूरे सिर पर फ़ैलाता और फ़िर उस्तरे से गंजी कर देता, गंजी करने का काम भी बहुत सावधानी का होता है। पर हाँ बाल कटावाने से कम समय लगता था।
पहले उस्तरे धार करने वाले होते थे, हर शेविंग के बाद धार लगाते थे। परंतु उस्तरे के अपराध जगत में बढ़ते उपयोग के मद्देनजर कानून ने उस पर लगाम कस दी और ब्लेड वाले उस्तरे चलन में आ गये।
बाल काटने के भी विशेषज्ञ कारीगर होते हैं, जब उज्जैन में थे तो एक नाई था जो कि बारीक बाल काटने में माहिर था और उसके हाथ में बहुत सफ़ाई थी, उसके हाथ से बाल कटवाने के लिये उस समय उस दुकान पर लाईन लगा करती थी।
हमारे एक मित्र हैं जो घर पर ही बाल काट लेते हैं, हमने भी कोशिश करने की सोची परंतु हिम्मत ही नहीं पड़ी और आज भी दुकान पर नाई की सेवाएँ लेते हैं।
खैर अब तो बाल काटने का धंधा भी चोखा है, इसमें भी काफ़ी नामी गिरामी ब्रांड आ गये हैं, पहले तो सड़क पर ही नाई दुकान लगाते थे फ़िर धीरे धीरे दुकानें आ गईं और अब वातानुकुलित दुकानें हैं, जहाँ लड़कियाँ नाईयों की दुकान चला रही हैं, और ये लड़कियों वाली कटिंग की दुकान कहलाती है।
आप भी न फुटेज बहुत खाते है … अब यह भी कोनो बात हुआ … इतना बड़का कहानी सुना दिये … और बाल कटवाने के बाद … चाँद का मुखड़ा और मुखड़े का चाँद दो मे से कुच्छो नाही दिखाये … धत … फोटो साटिए यहाँ एकदम ताज़ा वाला …
शिवम भाई फ़ोटो कल साट देंगे ।
साला पहले मालूम होता तो कमेन्ट ही न करते … हद है भाई साहब … यहाँ भी उधारी … का होगा इस देश का …
अरे अभी सोते सोते का फ़ोटू आता, इसलिये कल तक के लिये उधार ही सही
अरे फोटू कहाँ है भाई साहब … जे भी कोई बात भइ का … हद है भई …
इस पोस्ट के लिए आपका बहुत बहुत आभार – आपकी पोस्ट को शामिल किया गया है 'ब्लॉग बुलेटिन' पर – पधारें – और डालें एक नज़र – ज़िंदा रहना है तो चलते फिरते नज़र आओ – ब्लॉग बुलेटिन
शिवम भाई, फ़ोटू आलस में नहीं हेंच पाये ।
जय हो …का फ़िर से कपाल भारती हो गए हैं अरे माने कि टकाल भारती जी । चलिए पहिले फ़ोटो साटिए नयका तबले और विचार प्रकट किया जाएगा ।
अभी नहीं हुए टकाल, जल्दी ही सोच रहे हैं
सही कहा विवेक जी, बाल कटवाओ बालाओं से, ताकि बालों के सतह साथ जेब भी कट जाए!!
सुविधा उपलब्ध है, यह तो आपकी जेब पर निर्भर करता है, कि आप क्या चाहते हैं।
हम भी छोटे छोटे कटवाना पसन्द करते हैं ताकि हल्का बना रहे।
जी बिल्कुल इसीलिये हमें भी छोटे छोटॆ बाल ही पसंद हैं।
हमें तो ऐसा नाई पसंद है जो बाल बनाते समय बीच बीच में कैंची को हवा में खचपचाता है -आवाज मुझे अच्छी लगती है ….
हा हा, वह आवाज तो हमें भी अच्छी लगती है।
विवेक जी आपने लिखा है कि नाईयों की जगह बालाएं आ गईं। क्यों जी बालाओं को नाईन नहीं कह सकते।
पता नहीं, शायद कह भी सकते हैं। 🙂
खुद की हजामत करना मैं भी सीखना चाहता हूँ किन्तु मेरी भी हिम्मत नहीं हो रही।
अब अगली बार जब बाल कटवायें तो फ़ोटो खैंच कर डालियेगा। कटवाने के पहले और कटवाने के बाद।