छुट्टियाँ खत्म हो गईं, घर से आ गये, वहाँ ज्यादातर वक्त परिवार के साथ बीता कुछ ही दोस्तों से मिल पाये, कुछ दोस्तों की बड़ी बड़ी शिकायतें भी मिलीं, परंतु प्राथमिकता तो हमें खुद ही निश्चित करनी होती है, और परिवार ही प्राथमिक होता है।
घर पर माता पिता के साथ रहना अपने आप में उम्र के इस ढ़लान पर एक अलग ही तरह का अनुभव है, अब परिवार का महत्व इतनी दूर रहने के कारण और उम्र बड़ने के कारण पता लगने लगा है।
जब घर पर थे तो बस परिवार के बीच रहकर परिवार में ही बातचीत, हँसी ठिठोली हुआ करती थी, कैसे इतना सारा समय निकल गया पता ही नहीं चला। मैं लगभग ३-४ किताबें ले गया था पढ़ने के लिये परंतु वे सारी किताबें बिना खुले ही वापिस आ गईं।
परिवार में रहने से जख्मों पर घाव भर जाते हैं और एक असीम सुख प्राप्ति का अनुभव होता है। परिवार में सदस्य भले ही बुजुर्ग हो या नवागत सबसे अच्छे तरह से मिले और उनके साथ बैठकर बातचीत हुई।
हमें नौकरी के चक्कर में घर से दूर रहना पड़ता है, इससे उपजा मानसिक एकाकीपन परिवार में ही भरा जा सकता है। परिवार मतलब पूर्ण परिवार, केवल एकल परिवार नहीं।
अब घर परिवार से वापिस आ गये हैं, छुट्टियाँ खत्म हो चुकी हैं, वापिस अपने रोजमर्रा की जिंदगी में वापसी हो चुकी है, यहाँ आकर अब अजीब तरह का अकेलापन लगने लगा है। ऐसा लगता है कि हर चीज खाने दौड़ रही है, किसी से ज्यादा बात करने की इच्छा नहीं होती, खैर यह तो मानवीय प्रवृत्ति है। पर इस बार वाकई ये अकेलापन दुश्कर है।
मन अभी भी सुप्तावस्था में है अब चेतनता को जगाया जा रहा है ।
लौट के घर ही आना पड़ता है अंततः 🙂
भैया, मैं भी जब कभी घर से आता हूँ तो कुछ दिनों तक बेहद अकेला महसूस करता हूँ…शुरू के एक दो दिन तो दिल एकदम नहीं लगता, फिर अपने पुराने ढर्रे पर चला आता हूँ…
घर घर ही होता है, उस समय और कुछ आवश्यक नहीं है।
ऐसी अवस्था को हम कहते हैं कि लौट के बुद्धू घर से आए….
घर से दूर होकर भी घर का हर सदस्य साथ होता है … जैसे आपकी इस पोस्ट में …
बढिया प्रस्तुति। सही कहा कहा आपने…
मुबारक हो आपका लौट के आना !!
जब भी घर से दूर रहने की बात मन में घर करने लगे तो, मैं फ़ौज के आम सिपाही की याद कर लेता हूं, मुग़ालता जाता रहता है
जल्दी जागिए महाराज … बहुत काम पड़ा है !
इस पोस्ट के लिए आपका बहुत बहुत आभार – आपकी पोस्ट को शामिल किया गया है 'ब्लॉग बुलेटिन' पर – पधारें – और डालें एक नज़र – सब खबरों के बीच एक खुशखबरी – ब्लॉग बुलेटिन
kitaabein ghar par khul nahin paati. apne saath bhi aisa hi hota hai.
यही जीवन है…आशा है जल्द वापस अपनी दुनिया में रम जायेगें
घर से बाहर जाता आदमी
घर लौटने के बारे में सोचता है।
http://hindini.com/fursatiya/archives/2557