हमारे एक मित्र हैं जो कि आजकल नौकरी के कारण परिवार के साथ अलग रह रहे हैं। उनकी एक प्यारी सी बिटिया है जो कि लगभग ५ वर्ष की होगी। बिटिया अपने पापा को बहुत याद करती है। हमारे मित्र को अधिकतर व्यापारिक यात्राओं पर ही रहना होता है जिस कारण से परिवार को आजकल ज्यादा समय नहीं दे पा रहे हैं। इसके पहले करीब तीन वर्ष अपने परिवार के साथ ही भारत के बाहर रहे और वे तीन वर्ष बिटिया के जन्म के बाद के हैं, बिटिया का लगाव मम्मी से ज्यादा पापा के प्रति ज्यादा है।
यह भी एक नैसर्गिक विषय है कि बिटिया पापा के करीब रहती है और बेटा मम्मी के करीब रहता है। इस विषय के बारे में शायद जितनी बात की जाये उतनी कम है, क्योंकि इसके प्रति सबके अपनी अपनी विचारधाराएँ हैं, जो कि इस विषय को प्रभावित करती हैं।
तो हमारे मित्र अकेले भारत के बाहर जा रहे थे, मजबूरी यह थी कि परिवार को साथ लेकर नहीं जा पा रहे थे, क्योंकि व्यापारिक यात्राओं के साथ यही मजबूरी है जहाँ पर १ दिन से लेकर ३० दिन की यात्राएँ होती हैं और बहुत जल्दी जल्दी होती हैं। जिससे परिवार को साथ लेकर जाना लगभग असंभव हो जाता है। बाहर जाने के पहले परिवार से मिलने अपने गृहनगर गये तो बिटिया ने पापा को पकड़ लिया और कहा पापा आज आप मुझे अपने से चिपका कर सुलाना और छोड़कर मत जाना। पापा की मजबूरी यह थी कि पापा केवल ६-७ घंटे के लिये घर पर परिवार से मिलने जा पाये थे। पापा ने सबसे पहले घर पर जाकर बता दिया था कि मैं केवल ६-७ घंटे के लिये ही आ पा रहा हूँ।
बिटिया पापा को एकटक देखे जा रही थी, फ़िर पापा के पास बड़े प्यार से आई और बोली पापा प्लीज आज मत जाओ और आज यहीं रहो, पर पापा ने अपनी मजबूरी बताई फ़िर भी बिटिया जिद पर अड़ी रही, पापा प्लीज आज रूक जाओ। फ़िर थोड़ी देर बाद पापा की गोदी में आकर बिटिया बैठ गई और पापा को प्यार करने लगी कभी गालों पर चूमती कभी हाथों को चूमती कभी माथे को चूमती। इस आस में बिटिया पापा को प्यार करती रही कि शायद पापा रुक जायें और उसकी आस पूरी हो जाये।
पर पापा भी मजबूरी के हाथों अपने बिटिया का यह छोटा सा अरमान पूरा नहीं कर पा रहे थे, पापा का भी हृदय द्रवित हो रहा था, हृदय को कठोर कर पापा अपने गंतव्य के लिये निकल पड़े। सबकुछ अपने परिवार के लिये करना पड़ता है जिसके लिये इन छोटी छोटी बातों को पापा पूरी नहीं कर पाते हैं।
यह केवल हमारे मित्र का ही हाल नहीं है, ऐसे बहुत सारे पापा, बेटे और बेटियाँ हैं जो कि इस जुदाई को महसूस कर रहे हैं, पापा अपने बच्चों का प्यार उनका बचपना खो रहे हैं और बच्चे बचपन में अपने पापा का प्यार नहीं पा रहे हैं। कहीं ना कहीं पापा और बच्चों में कहीं कुछ अधूरापन आ रहा है, वहीं रिश्ते में भी गरमाहट कम हो रही है, बच्चे तो छोटे हैं, वो तो कुछ समझ ही नहीं पा रहे हैं परंतु पापा मजबूरी में अपने बच्चों से दूर अपने काम में व्यस्त हैं। परिवार के साथ रहना और नौकरी करना दोनों ही जरूरी हैं, पर अगर इनमें से एक चीज को चुनना हो तो बहुत मुश्किल होता है ।
बहुत भावनात्मक विषय उठाया है, कार्य और सुख, क्या और किसके लिये?
विडम्बना है, मनुष्य उन सुखोँ को खो देता है उन्हे पाने की जद्दोजहद मेँ ही.
बच्चे जब छोटे होतें हैं, बहुत भावुक होते हैं
ऐसी स्थितियों पर कोई अन्तिम और निर्णायक टिप्पणी दे पाना शायद ही किसी के लिए सम्भव हो।
भावुक कर दिया जी!