कल ऑफ़िस से आने के बाद ऑनलाईन खबरें सुन रहे थे जो कि देश के औद्योगिक घरानों को लेकर था, कि भारत सरकार चला रही है या देश के औद्योगिक घराने चला रहे हैं। हमारे औद्योगिक घराने सरकार की मदद से आम आदमी को लूटने में लगा हुआ है। जिन लोगों ने इस चीज को सार्वजनिक मंच से उठाया, पहले उनकी मंशा पर शक होता था, पर कल जो भी हुआ उससे अब उनकी मंशा साफ़ होती जा रही है।
पहले ऐसा लगता था कि ये सब राजनैतिक लालच में किया जा रहा है और “मैं आम आदमी हूँ” की टोपी पहनने वाले लोग भारत की जनता को गुमराह कर रहे हैं, मासूमों को बरगला रहे हैं। पर कल यह बात साफ़ हो गई कि इस देश में ना पक्ष है मतलब कि सरकार और ना ही विपक्ष, सब मिले हुए हैं, इस बात को और बल मिला कि देश को औद्योगिक घराने ही चला रहे हैं।
कल बहस में एक बात सुनने को मिली जो कि सरकारी पक्ष वाली पार्टी और विपक्ष वाली पार्टी दोनों ही एक सुर में कह रही थीं, ये हर सप्ताह नये खुलासे करने वाली पार्टी केवल खुलासे करती है और अंजाम तक नहीं पहुँचाती है, ये केवल चिंगारी दिखाकर भाग जाते हैं। सही बात तो यह है कि नये खुलासे करने वाली पार्टी के पास भी समय बहुत कम है, २०१४ के चुनाव सर पर खड़े हैं, और उनका मकसद किसी भी चीज को अंजाम तक पहुँचाना हो भी नहीं सकता क्योंकि आजादी के बाद से सभी राजनौतिक घरानों की और से इतने घोटाले हुए, उनका बयां करना ज्यादा जरूरी है।
जनता नासमझ तो है नहीं, सारी बातें पहले ही सार्वजनिक हैं परंतु हमें तो यह बात समझ में नहीं आती कि अगर ये लोग इतने ही सही हैं और कोई घोटाले नहीं किये तो इतने तिलमिलाये हुए क्यों हैं। इन्हें जो करना है करने दो, आपको अपना वोटबैंक पता है फ़िर आपकी समस्या क्या है। कहीं ऐसा तो नहीं कि इन लोगों को वाकई में डर लगने लगा है कि अब आम आदमी तक ये आदमी चिल्ला चिल्लाकर हमारी सारी गलत बातें पहुँचा रहा है और इससे हमें नुक्सान हो सकता है।
खैर यह तो क्रांति की शुरूआत भर है, जब तक राजनैतिक ताकतों को जनता की असली ताकत का अहसास होगा तब तक इन लोगों के लिये बहुत देर हो चुकी होगी, और इनका अस्तित्व मिट चुका होगा। खुशी इस बात की है कि जनता में गंभीर चिंतन पहुँच रहा है और जनता के बीच गंभीर मंथन प्रक्रिया शुरू हो चुकी है और राजनैतिक दलों के नेताओं के पास कुछ बोलने के लिये ज्यादा बचा नहीं है, सब नंगे हो चुके हैं। अब यह गंभीर चिंतन और मंथन देश को क्या नई दिशा देता है, और इतिहास में क्या लिखा जायेगा, भविष्य के गर्भ में क्या है यह तो जनता को तय करना है।
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कुछ नहीं होने वाला. देख लीजियेगा. जैसे पहले चल रहा था वैसे ही चलता रहेगा.
हमें मथकर निकला मक्खन..
नहीं। यह क्रान्ति नहीं है। केजरीवाल के जो क्रियाकलाप आज सबको भा रहे हैं, कल वे ही देश के लिए जी का जंजाल बनेंगे। केजरीवाल कोई नई बात सामने नहीं ला रहे हैं। हम सबको उनकी बातें इसलिए अच्छी लग रही हैं क्योंकि वे हमारी जानकारियों की नामजद पुष्टि कर रहे हैं। आवश्यकता बदलाव की है जिसकी रूपरेखा किसी के पास नहीं है। केजरीवाल के क्रियाकलाप अन्तत: मौजूदा राजनीतिक शक्तियों को ही मजबूत करेंगे। तब अन्तर केवल यही होगा कि चेहरे बदल जाऍंगे। इससे अधिक कुछ नहीं।