आज आचार्य चतुरसेन कृत “सोमनाथ” उपन्यास खत्म हुआ, इस उपन्यास को पढ़ने के बाद कहीं ना कहीं मन और दिल आहत है, बैचेन है.. कैसे हमारे ही लोग जो कि केवल अपने कुछ स्वार्थों के लिये गद्दारी कर बैठे.. और आखिरकार जिन लोगों के लिये गद्दारी की गई, जिस वस्तु के लिये गद्दारी की गई.. वह भी उनसे दगा कर बैठी.. और जिन लोगों से गद्दारी की गई.. उन लोगों ने उन्हें छोड़ा भी नहीं..
किसी ने जाति के नाम पर .. किसी ने स्त्री के प्रेम में .. किसी ने गद्दी के लिये .. किसी ने अपने स्वार्थ के लिये .. किसी ने अपने अपमान के बदले के लिये .. अपने ही देव अपने ही धर्म को कलुषित किया .. और दूसरे धर्म ने कुफ़्र और काफ़िर कहकर .. अनुचित ही धर्मों को और उसकी संस्कृतियों को तबाह किया..
छोटी छोटी रियासतों में आपस की दुश्मनी ने गजनी के महमूद को सोमनाथ पर चढ़ाई के दौरान बहुत मदद की.. छोटे और बड़े साम्राज्यों ने अपनी आन बान और शान बचाने के लिये जिस तरह से गजनी के महमूद के आगे समर्पण कर दिया.. वह भारत के लिये इतिहास का काला पन्ना है.. और जिन्होंने अपने प्राण न्यौछावार कर .. मरते दम तक अपनी मातृभूमि की रक्षा की.. उन्होंने अपना नाम इतिहास में स्वर्णाक्षरों में अमिट स्यासी से लिखवा लिया है..
पुरातनकाल में जब राजाओं का शासन होता था.. तब की कूटनीति और राजनीतिक चालों में बहुत ही दम होता था.. जितने भी कूटनीतिज्ञ और राजनीतिक अभी तक मैंने इतिहास की किताबों में पढ़े हैं.. वे आज की दुनिया में देखने को नहीं मिलते हैं.. इसका मुख्य कारण जो इतिहास से समझ में आता है वह है ब्राह्मणों का उचित सम्मान और वैदिक अध्ययन को समुचित सहयोग ।
सोमनाथ में चौहान, परमार, सोलंकी, गुर्जर आदि राजाओं का वर्णन जिस शूरवीरता से किया गया है, उससे क्षत्रियों के लिये हम नतमस्तक हैं.. परंतु वहीं जहाँ इन राजाओं के शौर्य और पराक्रम को देखने को मिलता है .. वहीं इनमें से ही कुछ लोगों द्वारा पीठ में छुरा घोंपने का भी काम किया..
सोमनाथ पर आक्रमण और सोमनाथ को ध्वस्त करने के बाद जिस तरह से प्रजा को गुलाम बनाकर उनपर अत्याचार किये गये.. और शब्दचित्र रचा गया है.. बहुत ही मार्मिक है.. हरेक बात पर महमूद को कर चाहिये होता था.. क्योंकि वह भारत में शासन करने के उद्देश्य से नहीं आया था .. वह आया था केवल भारत को लूटने के लिये.. धार्मिक स्थलों को ध्वस्त करने के लिये और इस्लामिक साम्राज्य को स्थापित करने के लिये..
गजनी का महमूद भले ही कितना भी शौर्यवान और पराक्रमी रहा हो.. परंतु यहाँ पर आचार्य चतुरसेन ने महमूद की कहानी को जो अंत किया है वह थोड़ा बैचेन कर देता है.. परंतु यह भी पता नहीं कि वाकई इस गजनी के महमूद का सत्य कभी सामने आ पायेगा ।
मन आहत होता है, कितने दंश सहे हैं हमने।
आचार्य जी ने बहुत ही प्रभावी ढंग से रखा है सोमनाथ के पूरे प्रकरण को …
उपन्यास तो हमने नहीं पढ़ा लेकिन शायद जो आप इसमें से निकलना चाह रहे थे … वो आपने निकाल लिया
सिंहासनारूढ लोगों के व्यक्तिगत अहम् के दुष्परिणाम पूरे देश को भुगतने पडते हैं।
आचार्य चतुरसेन ने महमूद की कहानी को जो अंत किया है वह थोड़ा बैचेन कर देता है..
क्या है वह अंत ? मैंने कैशोर्य में पढ़ा था -भूल गया ~
dharm k aadhar per mat daykhay. nice