इस बार सफ़र कुछ जल्दी ही हो गया, केवल तीन दिन ही भारत में परिवार के साथ व्यतीत कर पाये थे कि तीसरे दिन की रात्रि को ही घर से निकलना था, क्योंकि सुबह ४.३० बजे की फ़्लाईट थी और अंतर्राष्ट्रीय यात्रा के लिये ३ घंटे पहले पहुँचना होता है, वैसे तो वेब चेक इन कर लिया था, तो १.५ घंटे पहले भी पहुँचते तो काम चल जाता । परंतु हमने सोचा कि दो बजे तो निकलना ही है उसकी जगह १२ बजे ही निकल लेते हैं, अगर नींद नहीं खुली तो खामखाँ में घर पर ही सोते रह जायेंगे, और फ़िर २ बजे जरा नींद ज्यादा ही आती है, तो टैक्सी ड्राइवर साब भी झपकी मार लिये गाड़ी चलाते हुए तो बस कल्याण ही हो जायेगा।
समय से मतलब कि १ बजे रात्रि को हवाई अड्डे पहुँच गये, सोचा इतनी जल्दी भी क्या करेंगे, उधर जाकर । पहले कैफ़ोचीनो पीते हैं आराम से और फ़िर थोड़ी देर बैंगलोर की रात की ठंडक के मजे लेते हैं। जींस के जैकेट में भी ठंडक कुछ ज्यादा ही लग रही थी, सो ज्यादा देर बैठने का आनंद भी नहीं लूट पाये। चाँद की हसीन रोशनी में कोहरा देखना कभी कभी ही नसीब होता है। हवा में भरपूर नमी थी, और जितने भी लोग घूम रहे थे या बैठे थे, वे अपने भरपूर गरम कपड़े होने के बावजूद ठिठुर रहे थे। वैसे भी बैंगलोर में इस तरह से रात बिताने का संयोग से बनता है।
खैर जल्दी ही चाँद के आँचल से निकल कर हवाईअड्डे की पक्की इमारत के आगोश में आ गये। पता चला कि फ़्लाईट एक घंटा देरी से है, सोचा कि पहले लगता था कि केवल ट्रेन और बस ही देरी से चलते हैं और तो और ये हवाई कंपनी वाले एस.एम.एस. भी नहीं करते हैं । जब चेक इन के काऊँटर पर देखने पहुँचे तो लंबी लाईन लगी थी, और वेब चेकइन की लाईन खाली थी, हमारे एक और मित्र भी मिल गये थे लाईन में लगने के पहले, तो दोनों साथ ही चेक इन की लाईन में लग लिये और कब एक घंटा बातों में व्यतीत हो गया, पता ही नहीं चला, जब काऊँटर पर पहुँचे तो अधिकारी महोदय मुस्कराकर बोले कि आपने तो वेबचेक इन कर लिया था फ़िर इधर, हम कहे नींद नहीं आ रही थी, तो सोचा कैसे टाईम पास किया जाये सो लाईन में लग लिये, वे भी हँस पड़े। इमिग्रेशन फ़ॉर्म भरने के बाद इमिग्रेशन और सुरक्षा की बाधाएँ पार कीं, तो पाया सब हिन्दी बोलने वाले थे, और सुरक्षा में जो अधिकारी मौजूद थे वे तो ठॆठ हिन्दी बोल रहे थे, जैसे कि अधिकतर उत्तर भारत के राज्यों में बोली जाती है।
फ़िर लंबी कुर्सी पर लेट लिये पर नींद को हम आने नहीं दे रहे थे क्योंकि ३ घंटे बचे थे और एक बार हम सो जायें तो उठने की गारंटी तो अपनी है नहीं, तो बेहतर था कि जागकर नींद को न आने दिया जाये। जब फ़्लाईट में घुस गये तो सुबह के पाँच बज चुके थे और साढ़े पाँच को उड़नी थी, अपन तो कंबल ओढ़कर सो लिये।
लगभग चार घंटे की फ़्लाईट में पूरा समय सोकर निकाला, जब सुबह अबूधाबी पहुँचे तो केवल आठ ही बज रहे थे, याने की भारत में दस, हम समय से दो घंटे तेजी से भाग लिये थे, और अब हमें फ़िर ७ घंटे का इंतजार करना था, सो फ़िर लंबी आराम कुर्सी पकड़ी और सो लिये । घर से परांठे बनवाकर लाये थे, जब भूख लगी खाकर फ़िर सुस्ता लिये।
आखिरकार आठ घंटे इंतजार करने के बाद अपनी अगली फ़्लाईट का वक्त हो गया और सऊदी पहुँच गये, इधर भी पूरी फ़्लाईट में सोते सोते गये। इमिग्रेशन में १ घंटा लग गया फ़िर आधे घंटे में होटल पहुँच गये और फ़िर जल्दी ही शुभरात्रि कर बिस्तर में घुस गये।
कुछ फ़ोटो खींचे थे, अबूधाबी के ऊपर से वो हमारे टेबलेट में पड़े हैं, अभी लोड करने में आलस आ रहा है, तो फ़ोटो अगली पोस्ट में लगा देंगे।
काश आपके पास एक अपना जेट होता तो इतना समय यात्रा में न व्यर्थ होता..
वाकई इस तरह की ज़बरदस्ती वाली यात्राएं तो सज़ा ही हैं
एकदम सही बात कही है आपने संवैधानिक मर्यादाओं का पालन करें कैग आप भी जाने अफ़रोज़ ,कसाब-कॉंग्रेस के गले की फांस