परिवार गर्मी की छुट्टियों में घर गया हुआ है, यही दिन होते हैं जब हम अकेले होते हैं और बेटेलाल अपने दादा दादी और नाना नानी का भरपूर स्नेह पाते हैं। बेटेलाल सुबह से रात तक अपने हमउम्र दोस्तों के साथ खेलने में व्यस्त होते हैं, वहाँ उनकी भरपूर मंडली है, और यहाँ बैंगलोर में गिनेचुने एक या दो और वे भी किसी ना किसी गतिविधि मॆं व्यस्त होते हैं । अभी बेटेलाल का क्रिकेट प्रेम सर चढ़कर बोल रहा है, शाम पाँच बजे से जो गली क्रिकेट शुरू होता है तो अँधेरा होने तक चलता रहता है। बचपन में तो हम इतना खेलने के बाद खाना खाने के बाद स्ट्रीट लाईट की रोशनी में खेलते थे। पर भला हो नगर निगम का कि उसने हमारे घर के आसपास बड़ी स्ट्रीट लाईट नहीं लगाई है।
क्षिप्रा नदी में शाम के समय नाव के मजे लेते हुए बेटेलाल
यही दिन होते हैं बच्चों के मजे के जब गर्मी की छुट्टियों में मौज होती है और दोस्तों में कोई भेदभाव नहीं होता कि तू किसका बेटा है, क्या करता है और भी पता नहीं क्या क्या… आजकल बड़े शहरों में हमने देखा है कि दोस्त भी हैसियत देखकर बनाते हैं, बड़ा अजीब लगता है यह सामाजिक बदलाव, जो कि कहीं ना कहीं बच्चों के लिये खालीपन भरता है।
बेटेलाल के साथ क्रिकेट खेलने वालों में उनका एक साथी जो कि उनके साथ रोज ही खेलता था, एक शाम एक दुर्घटना में नहीं रहा, मेरे बेटे ने मुझे फ़ोन पर बताया – “डैडी, वह हमारे साथ खेलता था, और रात नौ बजे वो जो बिल्डिंग बन रही है उसकी तीसरी मंजिल से उसका पैर फ़िसल गया और नीचे गिर गया, मेरे दोस्त ने बताया कि जब वह गिरा तो उसके सिर के पास बहुत सारा खून बह रहा था और उसके पापा मम्मी एकदम अस्पताल ले गये, पर डैडी वह नहीं बचा, उसकी डैथ हो गई” और फ़िर वह चुप हो गया ।
फ़िर थोड़े अंतराल के बाद बोला “डैडी, अब मैं आपकी बातें माना करूँगा, मैं ध्यान से सड़क पार करूँगा, ध्यान से खेलूँगा, आप बिल्कुल चिंता मत करना” उस रात बेटेलाल मम्मी का हाथ पकड़कर सोये और थोड़ी थोड़ी देर में सहम रहे थे, बेटेलाल के मन पर दोस्त की मौत का बहुत असर हुआ था।
इतनी छोटी उम्र में दोस्त की मौत ने हमारे बेटे को पता नहीं कहाँ से इतनी परिपक्वता दे दी, बेटा एकदम से बड़ा हो गया। बेटे को किसी को खोने का मतलब समझ में आ रहा है, जो कल तक उससे हाथ मिलाकर खेलता था, आज वह उसे कहीं दिखाई नहीं दे रहा और वह अब कभी नहीं आयेगा।
चिंता मत कीजिये बेटेलाल जल्द इस सदमे से उबर जाएंगे … उनके पास अब भी एक बेहद उम्दा मित्र है – आप !
वैसे इस ज़िन्दगी ने बहुत जल्द जीवन के सबक सिखाने शुरू कर दिये है आजकल ! बच्चों का बचपन कहीं खो न जाये … संभालिएगा !
हाँ सदमे से तो उबर चुके हैं..
बच्चों का बचपन बना रहे – बेटू जी सावधान हो गये यह ठीक ही हुआ! , शिप्रा नदी में खूब पानी देख कर खुशी हुई -आभार !
बेटेलाल सावधान तो हो गये हैं, क्षिप्रा नदी में पानी रूका हुआ है यह रामघाट का फ़ोटो है ।
कई बार दुखद घटनायें एकदम से परिपक्वता ले आती हैं।
जी हाँ
समझ और प्यार अन्दर से आता है, बस कोई ऐसी ही घटना उसके सब बन्ध खोल देती है।
जी बिल्कुल, पर उस समय उसकी तकलीफ़ मैं महसूस कर सकता था ।
आज की ब्लॉग बुलेटिन तुम मानो न मानो … सरबजीत शहीद हुआ है – ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है … सादर आभार !
धन्यवाद !
जी हाँ अब थोड़ा ठीक लग रहे हैं..
जिन्दगी के सबक कब, कहॉं मिल जाऍं – पता नहीं।
जी हाँ पर सबक बहुत कठोर होते हैं.. बालमन के लिये
जिन्दगी को कैसे जिएं जिन्दगी सिखाती है..बेटेलाल आपकी अभिभाविकी में सही रहेंगे…नो फिकर!